वर्ग संघर्ष, ऑक्सीजन, संघी, एनसेफेलाइटिस और कपिल शर्मा

भारत की गिनती आज भी, तमाम प्रगति के बावजूद, दुनिया के निर्धन देशों में होती है. पर कम से कम एक मामले में यह सही नहीं है. बल्कि इस मामले में तो हम दुनिया के समृद्धतम देशों में से एक हैं. और यह क्षेत्र है – विशेषज्ञता.

करीब करीब हर “पढ़ा लिखा” शख़्स संसार की करीब करीब हर विधा का विशेषज्ञ है. बवासीर के इलाज से लेकर क्वांटम भौतिकी तक, भारत चीन सम्बंध की बारीकियों से लेकर गेहूँ उगाने की विधियों तक. हत्या से लेकर आत्महत्या तक. लोक से ले कर परलोक के रहस्यों तक. हो धरती, हो नभ, हो पाताल – कुछ भी अछूता नहीं हमारे विशेषज्ञ से.

पिछली बार भारत गया था तो मैंने रिक्शे वालों से लेकर इतिहास के प्रोफ़ेसरों और बैंक कर्मचारियों से स्ट्रोक के कारणों और उपचार पर गंभीर ज्ञान प्राप्त किया था. अब यह बात दीगर है कि पिछले 37 वर्षों से स्ट्रोक जैसी चीज़ें ही मेरा धंधा रही हैं. पर मेरा गम्भीर ज्ञानवर्धन तो हुआ ही. विशेषज्ञों ने अपने कर्तव्य पालन में कोई कोताही नहीं बरती.

गोरखपुर में बच्चों की मृत्यु हुई. हम सब दुखी हैं. पर हमारे ज्ञानपुंज पब्लिक हेल्थ विशेषज्ञों ने तुरंत जाँच की और समस्या की जड़ तक धड़ाम से पहुँचे. लोग-बाग इसे प्रगतिशील जनवाद पर प्रहार, सर्वहारा पर अन्याय, वर्ग संघर्ष और गोहत्या से जोड़ आए. विशेषज्ञ हैं न. हर बात का मूल आनन-फ़ानन में खोज लेते हैं.

अब जो मैं कहने जा रहा हूँ, उसे पढ़े या बिना पढ़े विशेषज्ञ लोग तुरंत मुझ पर संघी होने का और लीपापोती करने का आरोप लगा देंगे. इसलिए अच्छा हो कि मैं यहाँ डिस्क्लेमर दे दूँ. पहली बात तो यह कि मैं मानता हूँ संघियों में लल्लुओं की कमी नहीं, वैसे ही जैसे सेकुलरों, प्रगतिशीलों, बुद्धिजीवियों में कमी नहीं. पर भइए, यह मामला संघी-जनवादी युद्ध का नहीं, पब्लिक हेल्थ का है.

अस्पताल में ऑक्सीजन ज़रूरी है, कई मर्तबा जान बचा सकता है, पर ऑक्सीजन एनसेफेलाइटिस का इलाज नहीं है. वैसे ही जैसे पैरासिटामॉल मस्तिष्क के ट्यूमर का इलाज नहीं है. बच्चे एनसेफेलाइटिस से मरे. दशकों से मर रहे हैं. आप हजार मेडिकल स्कूल और बड़े-बड़े अस्पताल खोल दो, डॉक्टरों से पाट दो, ऑक्सीजन के सिलिंडरों से ठसाठस भर दो – कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.

एन्सेफेलाइटिस जानलेवा बीमारी है. मच्छरों के काटने से फैलती है, मलेरिया की तरह. मच्छर गंदगी और पानी के जमा होने से बढ़ते हैं, बजबजाती नालियों में चूने के छिड़काव से मच्छरों के स्वास्थ्य पर कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता.

तो भइए, जब तक गंदगी रहेगी, गंदे पानी का जमाव होगा, बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाएँ नहीं रहेंगी, बच्चे यूँ ही मरते रहेंगे. और इसको ठीक करने के लिए जिस बुद्धि और मेहनत की ज़रूरत है, उसमें आपकी कभी दिलचस्पी नहीं रही. आप कपिल शर्मा के संग ठहाके लगा कर हँसने में मशगूल जो हैं. वैसे आप नारा लगाएँगे तो मैं भी शामिल हो जाऊँगा.

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