स्वतंत्रता आंदोलन में संघ और BJP की भूमिका के सम्बन्ध में संघ और BJP वाले ना जाने क्यों बैकफुट पर आ खिसिर खिसिर करने लगते हैं.
भाई साफ़ सी बात है डॉ हेडगेवार जी को लगा भारत की तमाम समस्याओं का हल राजनितिक आंदोलनों से नहीं बल्कि समाज के अनुशासन चरित्र राष्ट्रीय व संगठनात्मक भाव से होगा.
उनका विचार था कि गुलामी केवल दो ढाई सौ साल पुरानी नहीं है बल्कि हजारों साल की गुलामी ने भारत राष्ट्र को जर्जर करके रख दिया है. अकेले अंग्रेजों के भगाने या विरोध करने से भारत का कोई भला नहीं हो पायेगा. भारत के भले के लिए यहां हजारों वर्षों से मानसिक दासता झेल रहा हिन्दू समाज उक्त भावों के साथ संगठित हो जाएं तो राष्ट्र स्वतः ही संगठित हो जाएगा.
इसीलिए उन्होंने हिन्दू संघटन के लिए हिन्दू संगठन खड़ा किया और साफ़ कहा We are neither anti-Muslim nor Christian, we are only Pro Hindu.
जाहिर है संघ स्थापना का उद्देश्य भारत को केवल अंग्रेजों से ही नहीं इस्लामिक दासता से भी मुक्त कराना था. लेकिन किसी का विरोध करके नहीं बल्कि केवल हिन्दुओं का संगठन खड़ा करके.
बोलिये साब! क्या 15 अगस्त 1947 को देश इस्लामिक दासता से मुक्त हुआ? उलटे देश का विभाजन और हो गया. क्या अंग्रेजी मानसिकता से ये देश आज़ाद हुआ?
और जनसंघ तदनंतर BJP की तो स्थापना ही स्वतंत्र भारत में हुयी है. इनको आज़ादी के आंदोलन के प्रश्न का सामना या उत्तरदायी क्यों होना चाहिए?
और यदि कांग्रेस ने आंदोलन किया उस पर क्या किसी की बपौती है. आंदोलन करने वाले गए. उनके उद्देश्य और मूल्य उनके साथ गए. फिर भी दशकों तक राजसुख भोग लिया. अब कितनी पीढ़ी तक खाओगे उस आंदोलन का!
अब हमने अंग्रेजों के विरुद्ध आंदोलन में भाग नहीं लिया तो आखिर कौन सा आंदोलनकारी जिन्दा है? मूल कांग्रेस सौ पार्ट में बंट गयी. वे भी सवाल करें और गद्दार कम्युनिस्ट भी ये ही सवाल करें. और तो और देश के दो हिस्से ले जाने वाले मुसलमान भी ये सवाल करें.
तो भाजपा और संघ आखिर क्यों जबाबदेह हों? किसके समक्ष जबाब दें? किस प्रकार दें? मेरे जैसे वर्ग के वैचारिक स्वयंसेवक तो एलानियां कहते हैं राष्ट्र अभी गुलाम है क्रिश्चियनीटी का भी और इस्लाम का भी.