बड़े पद पर पहुंच जाने से हृदय भी बड़ा हो जाये, संकीर्ण विचार दूर हो जायें या मानसिक क्षुद्रता समाप्त हो जाये, इसकी कोई गारंटी नहीं है. उपराष्ट्रपति पद को ‘सु’शोभित करनेवाले हामिद अंसारी इसके अन्यतम उदाहरण हैं.
इन्हें अपने कार्यकाल की समाप्ति पर यह लगने लगा है कि भारत के मुसलमानों में असुरक्षा और भय का भाव व्याप्त है. जब एनडीए ने इन्हें राष्ट्रपति नहीं बनाया या उपराष्ट्रपति के रूप में एक और कार्यकाल नहीं दिया तब अचानक इन्हें ये सब दिखायी देने लगा.
इन महोदय से कुछ प्रश्न पूछने का जी करता है –
1. भारत में यदि ऐसा होता तो डॉ ज़ाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, ए पी जे कलाम आदि भारत के सर्वोच्च पद पर नहीं पहुँचते.
2. हिन्दू विधायकों के बूते एक मुसलमान अहमद पटेल राज्यसभा नहीं पहुँचता. क्या 44 मुसलमान विधायक किसी हिन्दू को राज्यसभा में भेजेंगे? है कोई उदाहरण?
3. अब्दुल गफूर या ए आर अंतुले हिन्दू बहुल प्रदेशों के मुख्यमंत्री न हुये होते. क्या जम्मू-कश्मीर में किसी हिन्दू मुख्यमंत्री की कल्पना कर सकते हैं?
4. क्या मुसलमानों के किसी त्यौहार पर हिंदुओं ने रोक लगाई है? इसके विपरीत अनेक मुसलमान बहुल क्षेत्रों में दुर्गापूजा बंद है. कश्मीर में सैकड़ों मन्दिर मुसलमानों ने ध्वस्त कर दिये.
5. क्या रेलमार्ग या सड़क निर्माण की राह में आनेवाली कोई मज़ार आज तक हटायी गयी है? ऐसे मामलों में अनेक मन्दिर हटा दिये गये हैं और हिन्दुओं में कोई रोष नहीं.
6. डॉ कलाम के जनाज़े में मुसलमान से अधिक हिन्दू शामिल थे. आपकी बिरादरी के लोग बड़ी संख्या में आतंकी याक़ूब मेमन के जनाज़े में गये थे.
7. क्या हिन्दू अपने ही सैनिकों पर पत्थर मारते हैं? पत्थर आपकी बिरादरी के लोग मार रहे हैं.
8. मुसलमान आतंकवादियों को शरण कौन दे रहा है? आपकी बिरादरी के लोग ही दे रहे हैं.
9. क्या आपने कभी किसी मन्दिर में दर्शनार्थ गये या ललाट पर टीका लगवाया?
हामिद साहब, फेहरिस्त बड़ी लम्बी है. वस्तुतः आप इस पद के योग्य थे ही नहीं. आपको सोनिया भक्ति के कारण यह पद मिला था. राज्यसभा के सत्रों का संचालन भी आप सुचारू ढंग से नहीं कर पाये. आप तो सदन स्थगित करने का कारण ढूँढ़ते रहते थे.
विपक्षी दल के नेता से आँखों-आँखों में संवाद कर सदन की कार्यवाही दिनभर के लिये मुल्तवी कर देते थे. कभी-कभी मुझे यह गीत बरबस याद आ जाता था – नैन सो नैन नाहिं मिलाओ.
आज आप सेवानिवृत हो रहे हैं. आपके अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता हूँ. यह भी आशा करता हूँ कि जीवन के अन्तिम चरण में आपके मन में दुर्विचार के बदले सद्विचार उत्पन्न होंगे.