बेटी कैसे रहे सुखी, जब दूल्हे का दिल आज भी उलझा है सेक्युलरिज्म नाम की पुरानी गर्लफ्रैंड से

यहाँ लंदन के कुछ इलाकों में चोरियाँ बहुत होती हैं. खासतौर से जिधर भारतीय ज्यादा रहते हैं क्योंकि उनके घरों में सोना बहुत होता है… और वो भी 22 कैरट का. भारतीय शुद्धता के बड़े दीवाने हैं. शुद्धता का मानक तो 24 कैरट ही माना जाता है, पर उसके गहने नहीं बन सकते. तो हमारे यहाँ शादी ब्याह में 22 कैरट के गहने ही बनवाये जाते हैं.

आज कल थोड़ा चमक दमक प्रधान हो गया है, हीरे की पूछ है… तो हीरे के गहने सामान्यतः 18 कैरट सोने में जड़े होते हैं. यहाँ UK में कहीं 22 कैरट के गहने नहीं बिकते. बल्कि सामान्यतः पहनने के गहने तो 9 कैरट के ही मिलते हैं. मुझे तो अंतर समझ में नहीं आता. सुंदर तो ये गहने भी लगते हैं, समय के साथ पुराने भी नहीं होते. पर गहने पहनने वाली महिलाएँ ही जाने, शुद्धता से उन्हें क्या आंतरिक अनुभूति होती है. मुझे शुद्धता से कोई ऐसी अनुभूति नहीं होती. सुंदरता से होती है…

गुजरात के राज्यसभा चुनावों में भाजपा ने अहमद पटेल को हराने के लिए जो भी प्रयास किये, उनकी शुद्धता पर आप चाहे जो भी सवाल उठाएं, उसकी सुंदरता संदेह से परे है. मज़ा आ गया.

कल तक जो सत्ता की धुरी था, उसका एक राज्यसभा सीट के लिए तेल निकल गया. कल तक जो राज्यसभा सीटें खैरात में बांटते थे, आज उन्हें अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है. मज़ा आ गया…

अहमद पटेल हार जाते तो पूरा मजा आता… पर खुशी हुई, मोदी-शाह को इस राजनीतिक अशुद्धि से कोई परहेज नहीं है… 9 कैरट का ही सही, गहना सोहता है…

उधर इससे बड़ा एक और प्रश्न है जो पूछा नहीं गया…

बेटी की शादी के लिए आप गहने बनवाते हैं… अपने मनपसंद और भरोसे के सुनार से. लेटेस्ट डिज़ाइन के. किसी पर भरोसा ना हो तो तनिष्क से लेते हैं… नाम का भरोसा है. चमक दमक में कोई कमी नहीं करते. जिंदगी भर की कमाई लगा देते हैं. लड़का भी बहुत काबिल ढूंढा है… अच्छी नौकरी करता है, अच्छा सुंदर और खानदानी है… पढ़ा लिखा, देश-विदेश घूमा है…

पर एक सवाल कोई नहीं पूछता है… पूछते डर लगता है… बेटी सुखी रहेगी या नहीं?

बेटी को खुश रखेगा या नहीं, प्यार करेगा या नहीं, लॉयल होगा या इधर-उधर डोरे डालने की आदत होगी… ज़रूरत पड़ने पर उसकी इज्ज़त-आबरू की रक्षा के लिए खड़े होने की हिम्मत रखता है या नहीं… ये सवाल नहीं पूछे जाते…

उत्तर तो इनका अनिश्चिय के गर्भ में छुपा है, पर फिर भी इस कोण से देखने की हिम्मत नहीं होती… हम सोचते हैं, हमने तो अपनी तरफ से सब कुछ अच्छा-अच्छा कर दिया, आगे उसका भाग्य… पर उसका भाग्य इस पर निर्भर नहीं करता है कि आपने शादी में 22 कैरट के गहने चढ़ाए, हीरे का सेट दिया, तनिष्क से गहने बनवाये या नहीं…

सोचता हूँ, देश और हिन्दू समाज के भाग्य में क्या लिखा है? सारे देश में चुनावी जीतों के आभूषण से लदने के बाद भी मिलेगा क्या यह भाग्य का प्रश्न है… या फिर संगठन और संघर्ष क्षमता का.

यह नहीं पूछ रहा कि ये जो सारी जीत मिल रही है, उसका मूल्य क्या है… नैतिकता से मिली या शुद्ध राजनीति की मिलावट है उसमें. मूल प्रश्न है कि अंत में निकलेगा क्या? क्या हिन्दू संगठित और सुरक्षित होगा? क्या हिन्दू मूल्यों की रक्षा और संवृद्धि के प्रयास किये जायेंगे… क्या हिन्दू राष्ट्र का सपना है भी सत्ता के पास या सपने देखना भी छोड़ दिया है?

बेटी कैसे सुखी रहेगी उस घर में इतने सारे गहने लेकर… जबकि दूल्हे का दिल आज भी सेक्युलरिज्म नाम की पुरानी गर्लफ्रैंड से उलझा हुआ है…

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