मुझे विश्वास है कि आप में से अधिकांश लोगों ने बलवंत सिंह राजपूत का नाम नहीं सुना होगा. गुजरात के कुछ लोग शायद जानते होंगे. हार्दिक पटेल का नाम तो बहुतों ने सुना होगा, लेकिन तेजश्रीबेन पटेल का नाम नहीं सुना होगा, मैंने तो ये नाम आज ही पहली बार सुना है. लेकिन आप में से बहुत-से लोगों ने अहमद पटेल का नाम अवश्य सुना होगा.
अहमद पटेल गुजरात से आते हैं. कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद सबसे शक्तिशाली नेता माने जाते हैं. पिछले 40-42 वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं. 1975 में युवक कांग्रेस के जिलाध्यक्ष बने, 1976 में ग्राम पंचायत का चुनाव जीते, 1977 में भरूच से सांसद चुने गए. उसी वर्ष गुजरात युवक कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष भी बनाए गए और 1981 तक इस पद पर रहे. फिर 1982 में राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचे और कांग्रेस में सह-सचिव बनाए गए. 1984 में फिर सांसद निर्वाचित हुए. फिर प्रधानमंत्री राजीव गांधी के संसदीय सचिव भी रहे. उसी वर्ष अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के महासचिव भी बने.
1986 में गुजरात प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने. 1992 में कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यसमिति में शामिल किए गए. 1993 में राज्यसभा में पहुंचे. 2001 तक कांग्रेस में महासचिव और कोषाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहे. 2001 में सोनिया गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनीं और पटेल उनके राजनैतिक सलाहकार नियुक्त हुए. उसके बाद से आज तक कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद सबसे शक्तिशाली व्यक्ति अहमद पटेल ही हैं. गुजरात में मोदी-शाह को प्रताड़ित करने के लिए उन्होंने क्या-क्या किया, उसमें मैं नहीं जाऊंगा क्योंकि वो सब खुली किताब है.
लेकिन उनकी राजनैतिक यात्रा का वर्णन इसलिए बताया, ताकि आपको अनुमान हो जाए कि जो व्यक्ति लगभग 40-42 वर्षों से राजनीति में सक्रिय है और इतने महत्वपूर्ण पदों पर रहा है, उसके समर्थक और शुभचिंतक कितनी बड़ी संख्या में होंगे व अपनी पार्टी की राजनीति पर उसकी कितनी मज़बूत पकड़ होगी. लेकिन आज क्या स्थिति है?
शक्ति सिंह राजपूत किसी समय मात्र एक किराना दुकान चलाते थे. वहां से शुरू करके वे अहमद पटेल की कृपा से ही सैकड़ों करोड़ के व्यावसायिक साम्राज्य के मालिक बने. उनके सभी शिक्षा संस्थानों में अहमद पटेल का विशाल चित्र लगा रहता था. आप समझ ही गए होंगे कि वे अहमद पटेल के खास लोगों में से थे.
22 जुलाई को बलवंत सिंह राजपूत अहमद पटेल से मिलने दिल्ली गए. उस बैठक में क्या हुआ, ये तो पता नहीं लेकिन सुना है कि उसके बाद 3 दिनों तक राजपूत का फोन बंद रहा. और फिर अचानक एक राजनैतिक भूकंप हुआ. बलवंत सिंह राजपूत को भाजपा ने अहमद पटेल के खिलाफ अपना राज्यसभा उम्मीदवार घोषित कर दिया!
ये कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका था. वाघेला का जाना एक और झटका था. फिर कुछ और विधायकों ने भी पार्टी छोड़ी, वो अगला झटका था. लेकिन भूकंप के ये आफ्टरशॉक अभी थमे नहीं हैं. इसीलिए घबराहट में कांग्रेस को अपने बचे-खुचे विधायकों का राजनैतिक अपहरण करके उन्हें बेंगलुरु भेजना पड़ा.
उधर हार्दिक पटेल वाले पाटीदार आंदोलन में तेजश्रीबेन पटेल की प्रमुख भूमिका थी. उन्हीं के घर से हार्दिक पटेल के इस आंदोलन की शुरुआत हुई थी. तेजश्रीबेन भी अहमद पटेल के विश्वासपात्र लोगों में से थीं. अहमद पटेल ने जब राज्यसभा का फॉर्म भरा, तो उनके प्रस्तावकों में तेजश्रीबेन का भी एक नाम है.
अब अचानक उन्होंने भी कांग्रेस से किनारा कर लिया है और भाजपा में शामिल हो गई हैं. ये भी कांग्रेस के लिए कम बड़ा झटका नहीं है. इन सारे कारणों से न सिर्फ अहमद पटेल की ताकत कम हुई है, बल्कि हार्दिक पटेल वाले पाटीदार आंदोलन की भी हवा निकल गई है.
जो अहमद पटेल कांग्रेस में इतनी ताकत रखते हैं, मोदी-शाह ने उनकी ज़मीन हिला दी है. अब राज्यसभा चुनाव में जीत भी गए, तो भी वह जीत बेअसर ही है. अगर हार गए, तब तो अपमानित होना ही पड़ेगा. बेहतर होता कि ममता बनर्जी की सलाह मान लेते और गुजरात की बजाय बंगाल से राज्यसभा में पहुंचते. लेकिन उन्होंने राहुल गांधी की सलाह मानी और अपना ये हाल कर लिया.
अब सोचिए कि जिस कांग्रेस के सबसे बड़े राजनैतिक सलाहकार अहमद पटेल की ये हालत हो गई है, उस कांग्रेस पार्टी की हालत क्या हो रही होगी!
मोदी-शाह का गेम जितना लगता है, उससे कहीं ज़्यादा गहरा और तेज़ है. 2019 अभी दूर है. तब तक देखते जाइये और क्या-क्या होता है. कश्मीर, केरल, बंगाल जैसे राज्यों के बारे में आपके जितने सवाल हैं, उनमें से बहुतों के जवाब आपको 2018 में ही मिल जाएंगे. फिलहाल तो मुझे आठ अगस्त को होने वाले राज्यसभा के चुनाव और उसके परिणाम की प्रतीक्षा है.