चीन की अनिश्चितताएं भारत को दे रहीं तैयारियों का दुर्लभ समय

डोकलाम क्षेत्र को लेकर भारत की चीन से तनातनी पर अपने पिछले लेख में मैंने यह लिखा था कि अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए, चीन द्वारा भारत पर आक्रमण करने के लिए, आज का समय सर्वोत्तम समय है. मेरा अपना मानना है कि यदि चीन, डोकलाम भूटान सीमा पर सीमित युद्ध के असीमित युद्ध की ओर बढ़ जाने के डर से, आज हिम्मत नहीं कर पाया तो फिर भविष्य में चीन की ओर से कोई भी आक्रामकता, चीन को जहां क्षति पहुंचायेगी वही विश्व भी अपने को तीसरे विश्व युद्ध से नहीं बचा पायेगा.

मैं यह इसलिये कह रहा हूँ क्योंकि आज भारत अपने तमाम आत्मविश्वास के बाद भी, चीन से अकेले युद्ध के लिये सक्षम नहीं है. यह ज़रूर है कि उसके पास कूटनीतिक हथियार और मित्र राष्ट्र है, जो चीन को एक सीमा से आगे जाने पर रोकेंगे लेकिन वैश्विक व्यवहारिकता यही कहती है कि आज के युद्ध में कोई राष्ट्र, भारत के लिये परोक्ष रूप से नहीं कूदेगा.

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ऐसा नहीं है कि भारत के मित्र राष्ट्र ऐसा करना नहीं चाहेंगे लेकिन ज़मीनी हकीकत यही है कि अभी राष्ट्रों में चीन व एशिया को लेकर युद्ध की मानसिकता नहीं बन पायी है और साथ में, खेमो में बंटे विश्व की रूपरेखा भी अभी पूर्ण नहीं हुई है.

इस सबके बाद भी भारत, चीन से टक्कर ले सकता था लेकिन अभी भारत स्वयं में ही तैयार नहीं है. हां यह ज़रूर है कि तैयारी की ओर है लेकिन उसमें अभी समय लगेगा.

भारत का यह दुर्भाग्य रहा है कि जिस बीच, 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार, 10 वर्षो में लूट खसोट, दलाली और आंतरिक सेक्युलरता की परिभाषा गढ़ने में व्यस्त थी, उसी बीच चीन, भारत को चारों तरफ से बांध कर रखने वाली सामरिक नीति ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ को पूरी तरह से सजा चुका था. आज का भारत उसी खोये हुये 10 वर्षो की भरपाई करने में जल्दी से जल्दी लगा हुआ है.

ऐसा नहीं है कि चीन को भारत के बढ़ते हुये कदमों का पता नहीं है लेकिन यह सब उस काल में हो रहा है जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अपने पाँच साला अतिमहत्वपूर्ण अधिवेशन में सन्नद्ध है, जहां से, अगले 5 वर्षो की चीन की राजनीति, सामरिक नीति, विदेश नीति और भविष्य के उत्तराधिकारियों को तय होना है. इसी के साथ चीन की अर्थव्यवस्था और उसके थमती हुई विकास दर पर भी प्रश्न खड़े हो रहे है.

एक तरफ उसकी OBOR (One Belt One Road) व CPEC (China–Pakistan Economic Corridor) जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं द्वारा चीनी अर्थव्यवस्था के साम्राज्य को यूरोप, मिडिल ईस्ट व अफ्रीका तक बढाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है.

वहीं दूसरी ओर दक्षिण चीन महासागर में चीन की विस्तारवादी नीति व उसके आर्थिक दोहन पर एकाधिकार के प्रयास को, अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून द्वारा अवैध घोषित किये जाने के बाद से मुखर विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है. चीन की यही अनिश्चितताएं, उसको दिग्भ्रमित और भारत को वह दुर्लभ समय प्रदान कर रही है, जो भारत की अखंडता और संप्रभुता के लिये अतिआवश्यक है.

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