तिथि के आधे भाग को “करण” कहते है ये कुल 11 होते हैं. इनमे से “विष्टिकरण” को “भद्रा” भी कहते हैं. एक महीने में 30 तिथि होती है “भद्रा” हर महीने 30 में से 8 तिथियों को होती है.
हर पूर्णिमा के “पूर्वार्द्ध” को “भद्रा” होती है अतः श्रावण पूर्णिमा “रक्षा बंधन” को भी “भद्रा” है जो इस साल सुबह लगभग 11 बजे तक है.
अब सवाल यह है क्या इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन भद्रा त्याज्य है कि नहीं?
क्या रक्षा बंधन सुबह 11 बजे बाद ही होगा?
वृष्टिकरण यानि भद्रा के सम्बन्ध विधान इस प्रकार है
“न सिद्धिमायाति कृतं च विष्टियां….”
विष्टिकरण यानि भद्रा में किया कार्य सिद्ध नहीं होता है इसलिए भद्रा में मंगल कार्यों के साथ रक्षा बंधन का निषेध किया गया. किन्तु क्या भद्रा सदैव त्याज्य है?
इस सम्बन्ध में शास्त्र का सुनिश्चित मत है कि भद्रा केवल तभी त्याज्य है जब “भद्रा” का वास “भूलोक” में हो.
भद्रा वास का निर्णय होता है भद्रा वाले दिन विष्टिकरण के समय चन्द्रमा की राशि के आधार पर.
“कन्याद्वये धनुर्युग्मे चन्द्रे भद्रा रसातले…”
जब चन्द्रमा कन्या, तुला, धनु अथवा मकर राशि में होता है तब भद्रा का वास पाताल में होता है.
इस वर्ष रक्षाबंधन के दिन चन्द्रमा “मकर” राशि में हैं अतः भद्रा का वास है पाताल में है अतः भूलोक पर कोई निषेध नहीं है.
भद्रा के शुभ अथवा अशुभ फल का विधान इस प्रकार है.
“स्वर्गे भद्रा धनं धान्यं पाताले च धनागमः.
मृत्युलोके यदा भद्रा कार्यसिद्धिस्तदा नहि..”
सिर्फ मृत्यु लोक की भद्रा हो तभी कार्य सिद्धि नहीं होती है, यह स्पष्ट ही है.
मेरे विचारे से इस वर्ष सुबह 11 बजे तक यानि भद्रा काल में रक्षा बंधन ज्यादा प्रशस्त है क्योकि भद्रा पाताल में है जो कि धन प्रदायी है. अतः धन के आकांक्षी के लिए इसी समय तक रक्षा बंधन करना ज्यादा हितकर है .
शास्त्र के अनुसार इस साल सूर्योदय से लेकर दोपहर 2 बजे तक रक्षाबंधन करने में कोई दोष नहीं है.
रक्षाबंधन और चंद्र ग्रहण विचार
रक्षाबंधन के दिन चंद्रग्रहण: विशेष योग
दोपहर 2 बजे से रक्षा बंधन का निषेध भद्रा की वजह से नहीं वरन चंद्र ग्रहण के सूतक लग जाने के कारण है.
क्योकि ग्रहण के सूतक में किसी भी प्रकार के अन्न, मिष्ठान आदि का उपभोग नहीं किया जाता है इस कारण सूतक लगने के बाद रक्षा बंधन नहीं होगा.
यँहा यह भी ध्यान देने योग्य है कि इस साल रक्षाबंधन के दिन पड़ने वाला ग्रहण “चूड़ामणि योग” का निर्माण कर रहा है.
यद्यपि श्रावण पूर्णिमा यानि रक्षाबंधन के दिन ग्रहण प्रशस्त नहीं होता किन्तु इस वर्ष जो ग्रहण योग बन रहा है वह ग्रहण “चूड़ामणि” होने के कारण विलक्षण है.
रविग्रहः सूर्य्यवारे सोमे सोमग्रहस्तथा.
चूड़ामणिरिति ख्यातस्तदा अनंतफलं भवेत्..”
श्रावण में सोम वार का विशेष महत्त्व है क्योकि चन्द्रमा का वार होता है सोम वार और साथ ही श्रावण शिव जी का माह है तथा चन्द्रमा शिव जी के मस्तक पर सुशोभित रहता है.
जब सोमवार को चंद्र ग्रहण होता है तब “चूड़ामणि ग्रहण योग” बनता है और सोम चूड़ामणि ग्रहण योग में पड़ने वाले ग्रहण में किये गए दान पूण्य का फल अन्य दिन पड़ने वाले ग्रहण की अपेक्षा अनंत गुना होता है.
…….तत्पुण्यं कोटिगुणितं ग्रासे चूड़ामणौ स्मृतम्.”
निष्कर्ष
1.रक्षा बंधन सूर्योदय के उपरांत दोपहर 2 बजे तक कभी भी अपनी सुविधानुसार कर सकते है. भद्रा का वास पाताल में है अतः कोई दोष या निषेध नहीं है.
2. चंद्र ग्रहण क्योकि चूड़ामणि योग बना रहा है अतः दान पूण्य अवश्य करें. क्योकि यह दान, पूण्य अनंत गुना अधिक फलदायी है अपेक्षाकृत अन्य ग्रहणों में किये गए दान, पूण्य इत्यादि से.
3. श्रावण पूर्णिमा रक्षाबंधन सोमवार को पड़ने वाला यह वर्तमान 21 वीं सदी का प्रथम “चूड़ामणि चंद्र ग्रहणथा. योग” है ऐसा संयोग पिछले 100 साल में सिर्फ सन् 1990 में हुआ
अब विक्रम संवत् 2100 तक यानि सन् 2043 तक “चंद्र चूड़ामणि ग्रहण” के संयोग की कोई संभावना नहीं है अतः यथा इच्छा और यथा शक्ति इस ग्रहण के दिन में दान, पूण्य,जप इत्यादि कर अनंत लाभ ले सकते हैं. संभवतः आपके जीवन काल में यह दुर्लभ योग पुनः नहीं मिल पायेगा.