कश्मीर की डी-कम्पनी है हुर्रियत

NIA ने दो टूक कह दिया है और गृह मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट भी दे दी है. जाँच एवं मिले सबूतों के आधार पर NIA ने कहा है कि क्रॉस एलओसी ट्रेड तुरंत बंद किया जाए…. वो ट्रेड जो POK और काश्मीर के बीच हो रहा है. लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई ऐसा बयान नहीं आया कि क्या किया जाए… या क्या करने का इरादा है?

उधर राज्य की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ताल ठोक कर कह दिया है कि किसी भी सूरत में यह ट्रेड बंद नहीं किया जाएगा. अब क्या करेगी केन्द्र की सरकार? राज्य की गठबंधन सरकार में शामिल भाजपा क्या करेगी? क्या भाजपा सत्ता के लिए अपनी कश्मीर नीति से समझौता कर लेगी? या भाजपा दब जाएगी महबूबा की परंपरागत नीतियों के तले जिन नीतियों का पोषण अलगाववादी तत्व करते आ रहे हैं?

क्या है महबूबा की नीतियाँ, कम से कम ये तो अब किसी से छिपा नहीं. फारुख अब्दुल्ला और कांग्रेस की नीतियाँ क्या है… इसके बारे में भी किसी को कोई भ्रम है? तो इनकी नीति है, कश्मीर एक ‘समस्या’ है…कश्मीर एक डिस्प्यूटेड लैंड है… जिसका सोल्यूशन या समाधान भारत को करना है.

अरे नहीं,… सिर्फ भारत को अकेले समाधान नहीं करना है बल्कि पाकिस्तान को साथ लेकर करना है… फारुख अब्दुल्ला तो एक कदम आगे जाकर चीन को भी शामिल करना चाहते हैं इस समस्या के समाधान में.

ये सभी एक सुर में एक कॉमन बात जरूर कहते हैं कि यह समाधान कश्मीरी आवाम के कहे अनुसार हो. अब कश्मीरी अवाम कौन है?… तो कश्मीरी अवाम हैं उनकी आवाज़ उठाने वाले दर्जन भर नेता, जो कभी अलग-अलग थे… बाद में सभी मिलकर हुर्रियत कांफ्रेंस बन गए.

वे ही हैं कश्मीर के सर्वेसर्वा, वे ही हैं कश्मीर के भाग्यविधाता जो चुनाव नहीं लड़ते पर जिसे चाहें सत्ता पर बिठाते हैं. तीनों पार्टियाँ इनका सहयोग लेकर सत्ता पाती रही हैं. ये तीनों पार्टियाँ (कांग्रेस भी) हुर्रियत की चरण वंदना करती हैं, हुर्रियत की चिरौरी करती हैं, पैसे देती हैं… उन्हें विदेशी फंड और हथियार मंगाने की छूट देती हैं.

ये तीनों पार्टियाँ हुर्रियत को एक अघोषित शासक की तरह सम्मान देती हैं, उन्हें सिर पर बैठाती हैं, उनके सभी गैर कानूनी कामों से नजरें फेरती हैं. हुर्रियत के गैर कानूनी कामों में इन तीनों पार्टियों का बड़ा सहयोग है… बताता हूँ…

याद होगा आपको 2008 में जब अमरनाथ लैंड का डिस्प्युट हुआ था… राज्यपाल के कहने पर 40 हेक्टेयर वन भूमि को तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद ने अमरनाथ श्राइन बोर्ड को दिया था… ताकि यात्रियों की सहूलियत के लिए कुछ स्थायी रास्ते और शिविर बनाए जाएँ… पर अलगाववादी नेताओं ने कश्मीरी जनता को भड़का दिया, घाटी में जबर्दस्त विरोध हुआ… सरकार झुक गई, सरकार ने दी हुई ज़मीन वापस ले ली.

अब श्राइन बोर्ड से ज़मीन वापस लेने की वजह से हिन्दू आक्रोशित हुए, बहुत बड़ा हंगामा हुआ, तीन महीने जम्मू जलता रहा… आंदोलन, हड़ताल, नाकेबंदी, कर्फ्यू और सब कुछ अस्त व्यस्त रहा, दर्जनों हिन्दू आंदोलनकारी मारे गए. इन घटनाओं का मैं स्वयं गवाह रहा हूँ, सांबा में भी तीन आंदोलनकारी मारे गए थे.

सरकार में शामिल पीडीपी के मुफ्ती ने मौका देखकर समर्थन वापस ले लिया… तीन महीने तक हिन्दुओं ने आंदोलन चलाया था… जम्मू से होकर जाने वाले एकमात्र नेशनल हाइवे की नाकाबंदी कर दी गई थी… तब हुर्रियत एवं कश्मीरी नेताओं की माँग पर केंद्र की तत्कालीन कांग्रेसी सरकार ने पीओके की ओर से LOC का बार्डर खोला था, ताकि कश्मीर के लोगों को जरूरी वस्तुओं की कमी की वजह से परेशानी ना हो. साथ ही इसे पाकिस्तान के साथ विश्वास बहाली के रूप में भी इसे देखा गया था.

पर तब खोले गए दो बॉर्डर अब तक खुले हुए हैं, जिनसे होकर जरूरत की वस्तुओं के साथ हथियार, नशीले पदार्थ, हवाला का पैसा आता रहा. हुर्रियत के लीडरों को मनचाही मुराद मिल गई थी, पाकिस्तान से आने वाले गैरकानूनी सामान इन लीडरों तक आसानी से पहुँच रहे थे.

मैं ज्यादा पीछे की बात नहीं करूँगा, इसी वर्ष यानी 2017 जनवरी में मुज़फ्फराबाद (पीओके) से आए एक ट्रक से 114 पैकेट ब्राउन शुगर पकड़ी गई थी जिसकी कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाजार में 100 करोड़ थी, पाकिस्तानी ड्राइवर पकड़ा गया. इस कार्रवाई से भड़के पाकिस्तान ने बदले में 27 कश्मीरी ट्रकों को अपने इलाके में बंधक बना लिया.

उसी महीने, जनवरी में ही एक ट्रक को उरी में पकड़ा गया जो पाकिस्तान से आया था, उसकी तलाशी में भारी मात्रा में हथियार और गोला बारूद पकड़ा गया था. बिलकुल अभी पिछले महीने में, यानी जुलाई में एक ट्रक जो पीओके से आया था उससे 300 करोड़ की हीरोइन बरामद किया गया था.

इन बॉर्डर्स से होकर ऐसे सामान इन अलगाववादी नेताओं तक पहुँचते हैं उसके बाद इसे इनके द्वारा ही देश के अन्य भागों में पहुँचाया जाता है. इनके तार दिल्ली, चंडीगढ़, अमृतसर जैसे शहरों में बैठे ड्रग तस्करों से जुड़े हुए हैं. ये हुर्रियत नेता कश्मीर की डी- कम्पनी है, दाउद इब्राहीम की तरह इनका गिरोह देश में फैला हुआ है.

अब NIA द्वारा धरे गए हुर्रियत के नेताओं से मिले क्लू और सालों से क्रोस बॉर्डर ट्रेड के जरिए घाटी में लाए जा रहे हथियार और ड्रग्स के अनगिनत खेप इन अलगाववादी नेताओं को आतंक फैलाने और कश्मीर को अशांत करने में मदद पहुँचा रहे हैं.

अब महबूबा के लिए यह करो या मरो की स्थिति बन गई है क्योंकि यदि यह ट्रेड बंद हुआ तो हुर्रियत कांफ्रेंस वाले इसका दोष महबूबा पर थोपेंगे… महबूबा की राजनीति को अब्दुल्ला बाप-बेटे ले उड़ेंगे… महबूबा की राजनीति खत्म हो जाएगी. फारुख अब्दुल्ला अभी चुपचाप बगुले की तरह नजरें जमाए हालात को देख रहे हैं… महबूबा की हताशा और बयान को तौल रहे हैं.

अब तो यह मसला मोदी जी के पाले में है, क्या वो इस ट्रेड को बंद करेंगे जो LOC पर हो रहा है? क्या वो राज्य में पहली बार बनी भाजपा की साझेदार सरकार को तिलांजलि देंगे?

यदि कश्मीर घाटी के अंदर जेहादियों का सफाया करना है… आतंकवाद और हुर्रियत की बादशाहत को खत्म करना है… पाकिस्तानी एजेंटों की कमर तोड़नी है… तो इस बॉर्डर को लॉक करना ही होगा, मोदीजी से यही अपेक्षा मैं भी करता हूँ.

वर्तमान में आपके अश्वमेध के अश्व को पकड़ने वाला कोई नहीं है… विरोधी हताश हैं… ऐसे में कश्मीर को लेकर जो भी कड़े फैसले लेंगे वो देशहित होगा, जनहित होगा.

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