21 मई 1991 को Ltte ने राजीव गांधी की मानव बम से हत्या कर दी थी. इस हत्याकांड की जांच के लिये 27 मई 1991 में दो आयोग बनाये गये. सुरक्षा में चूक की जांच करने के लिये जेएस वर्मा आयोग और हत्या के घटनाक्रम की जांच के लिये एमसी जैन आयोग. इन आयोगों ने पूरे षड़यंत्र की जांच कर अपनी रिपोर्ट 1997 में सरकार को सौंपी. रिपोर्ट मे बताया गया कि राजीव गांधी हत्याकांड में डीएमके ने सक्रिय भूमिका निभाई.
उस समय सीताराम केसरी कांग्रेस के अध्यक्ष थे जो “बिहारी” थे और इंद्रकुमार गुजराल प्रधानमंत्री थे जिनके मंत्रिमंडल में डीएमके के दो मंत्री थे. कांग्रेस इससे पहले देवगौड़ा सरकार से भी समर्थन वापस लेकर उनको पद से हटा चुकी थी. अब जैन आयोग की रिपोर्ट के बाद कांग्रेस ने मांग शुरू कर दी कि प्रधानमंत्री गुजराल डीएमके के मंत्रियो को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करें नही तो वो समर्थन वापस ले लेगी.
गुजराल सरकार ने झुकने से साफ इंकार कर दिया. डीएमके के दोनो मंत्री पद पर बने रहे. अंत मे कांग्रेस ने नवम्बर 1997 को समर्थन वापस ले लिया और सरकार गिरने के साथ ही लोकसभा भी भंग हो गयी.
2004 मे हुऐ लोकसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप मे उभर कर सामने आई पर उसे स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. तब उसने कई दलो को एकत्र कर यूपीए का गठन किया और सरकार बनाई. इसमें डीएमके भी शामिल था. डॉ. मनमोहन सिंह ने 22 मई 2004 को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली. राजीव गांधी हत्याकांड की 13वीं बरसी के अगले दिन. और कांग्रेस और डीएमके का ये गठबंधन पूरे दस साल चला और इस दौरान ए राजा और कनिमोझी न सिर्फ मंत्री बने रहें बल्कि उन्होने “टूजी, थ्रीजी” में भ्रष्टाचार के विराटतम नये रिकॉर्ड बना डाले.
तेजस्वी पर लगें भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद हाल ही में बिहार में लालू और नीतीश का महागठबंधन टूट गया है. लालू के साथ राहुल और कांग्रेस भी नीतीश पर सत्ता के लिये अवसरवादी होने का आरोप लगा रहे हैं.
अब आप खुद अंदाजा लगाइये कि ज्यादा अवसरवादी कौन है?