यात्रा करने के भी अपने अनुभव होते हैं, जब आप तरह तरह के लोगो से मिलते हैं. पुरानी यादें ताजा हो ही जाती हैं. और जब ये यादें आपकी मेहनत, सफलता, खास कर किसी की जिंदगी बचाने से जुड़ी हो तो फिर क्या कहने. आइये आपको एक अनुभव सुनाता हूँ. पिछले दिनों मैं किसी काम से भिलाई (छत्तीसगढ़) गया हुआ था. मेरी एक आदत है जब जब खाली होता हूँ तब अपने मोबाइल में अपने पुराने मरीजों की तस्वीरें देखने लग जाता हूँ, जिनके बेहतर इलाज के लिए हम मुहीम चलाते आये हैं. इससे खुशी भी मिलती है कि चलो अब सभी बेहतर अवस्था में तो हैं और ताकत मिलती है वो अलग.
तस्वीरों को देखते देखते मेरी नजर एक तस्वीर पर ठहर गयी, वो तस्वीर थी एक प्यारी सी बच्ची महिमा सिंह की. तभी याद आया कि महिमा तो भिलाई में ही रहती है. तो क्यों न आज उससे मिलने चला जाए. बात 2 साल पुरानी है. जब मुझे पता चला कि ऑटो चालक की बेटी को ब्लड कैंसर है और वो उसका इलाज नहीं करवा पा रहे हैं.
आदतन मैंने महिमा के पिता दिनेश सिंह जी से जानकारी ली. फिर तय किया कि महिमा के परिवार की भरपूर मदद की जायेगी. जब तक की महिमा इस ब्लड कैंसर की बीमारी से पूरी तरह ठीक ना हो जाए. हमारे जीवनदीप की पूरी टीम फण्ड जुटाने से ले कर के सरकारी मदद के लिए प्रयास करने लगी, जिसमे हम काफी हद तक सफल हुए.
महिमा के लिए देश के अन्य जगहों से भी आर्थिक मदद मिली. शुरूआती दौर में महिमा का इलाज रायपुर के मेकाहारा (सरकारी), एम्स (सरकारी) हॉस्पिटलों में चला. फिर समस्या काफी बढ़ती चली गयी तो डॉ ने माहिम को एम्स हॉस्पिटल (दिल्ली) रेफर कर दिया. हमारे सहयोगियों ने ट्रैन से जाने की व्यस्था से ले कर एक मेडिकल स्टाफ, और ऑक्सीजन सिलेंडर भी ट्रैन में साथ ले जाने के लिए उपलब्ध कराया ताकि महिमा बिना किसी रिस्क के दिल्ली तक पहुंच सके.
उसकी हालत फ्लाइट में ले जाने लायक नहीं थी और एयर एम्बुलेंस के लिए बहुत बड़ी धनराशि की जरुरत पड़ती है. तो उसे ट्रैन में ले जाना तय हुआ. और भगवान् के आशीर्वाद से उसकी तबियत रस्ते में बिलकुल भी नहीं बिगड़ी, वह सकुशल दिल्ली एम्स हॉस्पिटल अगले दिन पहुंच गयी अब आगे की कहानी बड़ी दिलचस्प है ध्यान से पढियेगा दोस्तों.
चूँकि एम्स रायपुर हॉस्पिटल से महिमा को दिल्ली एम्स रेफर किया गया था तो तुरंत वहां डॉक्टरों द्वारा उसका चेकअप किया गया. हम सब खुश हो गए कि चलो अब इलाज में कोई रूकावट नहीं आएगी और वह जल्दी ठीक हो जायेगी. अगले दिन देर शाम मेरे पास उनके पापा जी का फोन आया और उन्होंने बताया कि सर डॉक्टरों ने महिमा के लिए कुछ टेस्ट लिखे हैं, और उसके बाद ही एडमिट करने को कहा है.
ऐसे करते करते तकरीबन 20 दिन से ज्यादा लग जाएंगे. महिमा की हालत बिगड़ रही है सर मैं क्या करू. कहाँ जाऊं इस हाल में उसे लेकर. उनके यह शब्द सुनकर थोड़ी देर के लिए मैं निराश हो गया था. मैंने उन्हें कहा आप वहां से कहीं मत जाना. हम सब कुछ उपाय निकालते हैं.
उस वक़्त मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं जिससे महिमा को एडमिशन मिल जाए और सारे टेस्ट जल्दी से जल्दी हो जाएँ. मैंने फटाफट व्हाट्सअप में महिमा को भर्ती करने की मदद अपील के साथ एक मैसेज बना कर तक़रीबन १०० से ज्यादा ग्रुप्स में वायरल कर दिया. उस मैसेज को पढ़ कर थोड़ी ही देर में मुझे, उड़ीसा, दिल्ली, राजस्थान से कॉल आने लगे. सभी ने कहा कि अपने अपने स्तर पर प्रयास करते हैं. पर देर रात तक कोई नतीजा नहीं निकला.. पर मेरा प्रयास जारी रहा.
अगले दिन सुबह मुझे एक सज्जन मनीष बंछोर भैया जी की कॉल आयी, सारी स्थिति का जायजा ले कर उन्होंने कुछ घंटो का वक़्त माँगा और सहमति दी कि आप चिंता न करे उसका एडमिशन हो जाएगा. अंत की बात पहले बताता हूँ. अंततः महिमा का एडमिशन भी हो गया उस दिन और उसके टेस्ट की डेट भी बहुत करीब की मिल गयी. उसके पापा की खुशी का ठिकाना नहीं था. हम सब की उम्मीद और बढ़ गयी कि अब महिमा जल्दी ही ठीक हो जायेगी.
पर सवाल यही था कि मनीष भैया ने आखिर कौन से जादू की छड़ी घुमाई. दरसल मनीष भैया ने मुझसे सारी जानकारी ले US में अपने किसी करीब की पारिवारिक महिला डॉक्टर को कॉल किया, उन्हें सारी परेशानी से अवगत कराया और वो महिला डॉक्टर एम्स दिल्ली से ही पासआउट थी. उन्होंने तत्काल मदद का आश्वासन देकर एम्स दिल्ली हॉस्पिटल में सम्बंधित अपने जूनियर्स और अन्य को कॉल किया. थोड़ी देर में डॉक्टर्स की टीम महिमा के पास पहुंच गयी. और महिमा के इलाज की प्रक्रिया युद्धस्तर पर प्रारम्भ हुई. यह सब इतनी जल्दी हुआ कि आप यकीन नहीं कर पाएंगे.
महिमा का इलाज चालू होते ही, कुछ जरुरी टेस्ट व् कीमो थैरेपी हुई, महिमा टकलू भी हो गयी. पहले से स्थिति सुधरने लगी. फिर डॉक्टरों ने एक लम्बे इलाज के बाद रेगुलर चेकअप के लिए आने को कह उन्हें विदा किया. अब महिमा कुछ महीनो के अंतराल में दिल्ली जाया करती थी. और इस तरह वो पूरी तरह ठीक हो गयी. अब सारे कीमो भी बंद हो गए और न ही कोई मेडिसिन खानी पड़ती है.
बस हर 5 महीने में चेकअप के लिए जाना पड़ता है. महिमा और उसके परिवार से मेरी मुलाकात पूरे 2 साल बाद हुई है. आज तक हम सिर्फ एक दूसरे को फोन से ही जानते थे. उसे हँसता खेलता स्वस्थ देखकर हम सबकी मेहनत सफल नजर आयी. अब वह पहले की तरह स्कूल जाने लगी है. कहती है बड़े होकर डॉक्टर ही बनूँगी और सबका यही इलाज करुँगी ताकि मेरी तरह किसी को दिल्ली का चक्कर न काटना पड़े.
उम्मीद है इसे पढ़कर कुछ लोगों को अकल जरूर आएगी और वो सोशल मिडिया की उपयोगिता को समझना शुरू कर देंगे. मैंने अभी तक के अनुभव में यही पाया है कि अगर आप किसी भी मुहीम को शिद्दत से सोचना और करना चालू कर देते हैं. तो नए रास्ते अपने आप खुल जाते हैं. मंजिल खुद ब खुद करीब आने लगती है. जी हाँ आप किसी की जान बचा सकते हैं. जो दुनिया में सबसे बड़ा नेकी का काम है. वर्ना हमें थोड़ी न पता था कि कॉल US से आएगा. और सब कुछ एक झटके में ठीक हो जाएगा. हमने तो बस कोशिश जारी रखी थी, जो सफल हुई.
अंत में आप सभी सहयोगियों, डॉक्टरों को ह्रदय से धन्यवाद करता हूँ, आज आप सबकी वजह से ही महिमा ने अपने ब्लड कैंसर की बीमारी को मात दी है. उसकी यह मुस्कान आप सबने ही दी है. पहली महिमा की पुरानी तस्वीर है जब वह कैंसर से जूझ रही थी. और दूसरी तस्वीर परसों उससे मुलाकात की.
रविंद्र सिंह क्षत्री (सुमित फाउंडेशन, जीवनदीप) Date – 02/08/2017
(विशेष निवेदन- इस लेख को पढ़कर सरकारी हॉस्पिटल की अव्यवस्था/मज़बूरी को बिलकुल भी दोष न दें, क्योंकि उसके जिम्मेदार भी हम खुद ही हैं. कोई अच्छा डॉक्टर नहीं चाहता कि एक मरीज तड़प तड़प कर मर जाए. वह सिर्फ आपको स्वस्थ देखना चाहता है.)