आपने कभी पढ़ा होगा कि जम्मू-कश्मीर में कुछ लोग (हिन्दू) ऐसे हैं जो भारत के नागरिक तो हैं (यानी लोकसभा चुनाव में वोट डाल सकते हैं), परन्तु जम्मू-कश्मीर राज्य के नागरिक नहीं हैं (यानी वहां के विधान सभा चुनाव में वोट नहीं डाल सकते). इस उलटबांसी की जड़ यही अनुच्छेद 35A है. आजकल इसको समाप्त करने की याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय विचार कर रहा है.
देश के बंटबारे के समय देश की बहुत बड़ी जनसंख्या इधर उधर हुई थी. पाकिस्तान से भारत आये हुए लोगों को भारत की नागरिकता मिली और ऐसे लोग भारत के प्रधानमंत्री तथा उपप्रधानमंत्री तक बन चुके हैं. लेकिन पाकिस्तान से आकर कश्मीर में बसे हिन्दुओं (विशेषकर दलितों) को आजतक जम्मू-कश्मीर की नागरिकता नहीं मिली है. धारा 370 के कारण जम्मू-कश्मीर के नागरिकों की दो नागरिकतायें हैं.
ऐसे हिन्दुओं को न तो सरकारी नौकरी मिल सकती है, न ही इनके बच्चे सरकारी स्कूलों-कालेजों में पढ़ सकते हैं और न ही इनको सरकारी योजनाओं का लाभ मिल सकता है. उनको वोट डालने का अधिकार भी नहीं है. वे केवल लोकसभा चुनाव में वोट दे सकते हैं लेकिन पंचायत से लेकर विधान सभा तक किसी भी चुनाव में इन्हें वोट डालने का अधिकार नहीं है.
भारत के संविधान में 35A क्रमांक का कोई अनुच्छेद था ही नहीं और संविधान में कोई धारा जोड़ने या हटाने का अधिकार केवल संसद को है, वह भी दो तिहाई बहुमत द्वारा. परन्तु 35A एक ऐसा अनुच्छेद है जिसे संसद ने पारित नहीं किया बल्कि नेहरु की सलाह पर राष्ट्राध्यक्ष द्वारा पारित किया गया था.
इसे ’14 मई 1954 को धारा 370 की उपधारा (1) के अंतर्गत पारित किया गया था. यह उपधारा जम्मू & कश्मीर की विधानसभा को यह अधिकार देती है कि वह किसको स्थाई नागरिक माने और किसको न माने. इस उपधारा का शिकार केवल हिन्दू (खासकर दलित हिन्दू) बने. कई पीढ़ियों से वहां रहने के बाबजूद वे आजतक वहाँ शरणार्थी ही हैं.
इसको शामिल करने का तरीका ही असंवैधानिक है. अब इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में तीन जजों की संविधान पीठ सुनवाई कर रही है, अगर 35ए अवैध घोषित हो गई (जिसकी पूरी संभावना है) तो पाकिस्तान से आये उन हिन्दुओं का बहुत भला होगा. यह संविधान का एक ऐसा अदृश्य भाग है, जिसने कश्मीर में लाखों लोगों के जीवन को नर्क बना रखा है.
अगर 35A की समाप्ति हो जाती है तो इससे 370 को खत्म करने में बहुत मदद मिलेगी. इसको इस दिशा में बढ़ा हुआ पहला कदम माना जा रहा है. इस कारण इस पर अलगाववादी तत्व स्वाभाविक रूप से तिलमिला रहे हैं, जिनमें जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती भी शामिल हैं.