मौजूदा हालत में अगले दशक में नहीं मिलेगा पाकिस्तान

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यादों के झरोखों से निकाल कर, दो साल पहले का ये लेख सामने आया है जो मैंने गुरदासपुर पर हुए फिदायीन हमले के वक्त लिखा था. जब कुछ नया लिखने की गुंजाइश नहीं होती है तो यह पूर्व में लिखे लेख, बड़े काम आते हैं क्योंकि यह भविष्य की आहटों के प्रति आपके विश्वास को और सुदृढ़ करते हैं.

गुरदासपुर पर हुए फिदायीन आतंकी हमले के बाद लोग रोष से भर कर अनर्गल प्रलाप करने लगे हैं. कुछ देश भक्त तो मोदी को ही कोसने में लग गए हैं और इस बात पर लानत भेज रहे हैं कि भारत, पाकिस्तान पर जवाबी कार्यवाही क्यों नहीं कर रहा है?

क्या चाहते हैं? कौन सी कार्यवाही की बात कर रहे हैं? आप होते तो एक ही मिनट में पाकिस्तान को चित्त कर देते? जब यह पाकिस्तान को सबक सिखाने या जवाबी कार्यवाही की बात करते हैं तो, साथ में यह भी ज़रूर लिखा करें कि आप होते तो पाकिस्तान के अलावा भारत में क्या करते.

दरअसल आप लोग सिर्फ जोश वाले हैं और होश को किसी ऊँची अटारी में रख आए हैं. भाई मेरे, आप कुछ तो होश का रिज़र्व स्टॉक रक्खा करें! अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य का और अपने भारत के भारतीयों के, मिजाज का भी जायज़ा ले लिया करें! आप को लगता है कि कुछ नहीं बदला है और कुछ नहीं होगा तो फिर मेरी बात मान लें कि इस कूटनीति और अंतर्राष्ट्रीय सामरिक शक्तियों के माया जाल का आपको ‘म’ भी नहीं मालूम है.

वैसे मैं इस विषय को पहले कई बार लोगों को समझा चुका हूँ, इस लिए इस विषय पर मैंने बोलना बंद कर रखा था. लेकिन गुरदासपुर आक्रमण के बाद, राष्ट्रवादियों की एक जमात को जब वामपंथियों के फिकरों को बिना समझे हुंकार भरते देखा, तब यह ज़रूरी हो गया कि थोड़ा बताया जाये ताकि लोग जोश को होश के साथ इस्तेमाल करें और धैर्य रखें.

यह एक कटु सत्य है कि राष्ट्र के प्रति निष्ठा और अंध प्रेम करने वाले हर व्यक्ति की एक कमज़ोरी होती है कि वह अपने होश खो कर, अपने राष्ट्र की औकात का बढ़ा-चढ़ा कर के आंकलन करता है. तटस्थ हो कर सोचिये क्या औकात थी भारत की 2014 में?

आप अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति जगत में विश्व में अलग थलग थे. आप अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बन सकते हैं कि हमारा बड़ा जलाल था और हमारी तूती बोलती थी लेकिन जो विदेशी शक्तिशाली राष्ट्र आपको देख रहे थे, उनके लिए आप एक लिजलिजे लोकतंत्र की पैदाइश और दूरदृष्टि से दिवालिया नेतृत्व की खान थे.

आप के राष्ट्र की नीतियां, राष्ट्र के लिए नहीं बनती थी, बल्कि मौजूदा हालत से निपटने के लिए, आयातित नीति से राष्ट्र को चलाया जा रहा था. बीते दशकों में तो राष्ट्र की नीति, विदेशों के पैसों से चलने वाले एनजीओ के सिरमौरों के हाथों में थी.

यह हमारी हकीकत थी और कोई भी विश्व का प्रभावी राष्ट्र, ऐसे राष्ट्र की ज़रूरतों को न तवज्जो देता है और न ही उसके उत्थान में अपना पैसा और समय व्यर्थ करता है.

जब 80 के दशक में शीत युद्ध की समाप्ति हुयी तब, सारे वह राष्ट्र जिनके नेतृत्व में दूरदृष्टि थी, उन्होंने अपने को समयानुसार ढाल लिया. अब क्यूंकि भारत महान है और महानता का शुक्राणु यहां के लोगों में रचा-बसा है इसलिए भारत उन 20 सालों में अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति और संबंधो में जहां था, वहां थम गया. वहीं, विश्व के अन्य राष्ट्र जो आज प्रभावी है, वो आगे निकल कर के, दोस्ती और शत्रुता की नई-नई परिभाषाएं गढ़ रहे थे. यहां यह याद रखिये कि थमा हुआ राष्ट्र सिर्फ, शनै: शनै: क्षीण होता है, बढ़ता नहीं है.

आज के विश्व में कोई भी राष्ट्र, किसी भी अन्य राष्ट्र का न स्थायी शत्रु है, न मित्र है. सब धंधे के हैं. जिससे फायदा है, उससे ही मित्रता है, इस बात की समझ मोदी को थी. उन्होंने पूरा एक साल लगाया है उन तमाम सभी शक्तियों को धंधे के माया जाल में बांधने में और भारत की आर्थिक के साथ सामरिक शक्ति का एहसास करने में.

यह सब इसलिए किया गया ताकि जब कल, अपने हितों की रक्षा के लिए भारत द्वारा कोई आक्रामकता दिखाई जाती है तब ये राष्ट्र, भारत का विरोध न कर सकें और भारत को कोई आर्थिक चोट न दे सकें.

क्या भारत की जनता इतनी चैतन्य है कि वो यह जानती है कि उसको चीन ने ‘पर्ल ऑफ़ स्ट्रिंग्स’ की सामरिक एवं व्यापारिक नीति के तहत हिन्द महासागर, अरब सागर और उत्तरी अफ्रीका में बांध कर, लंगड़ा-लूला बना दिया था?

चीन, एक के बाद एक देशों और उनके सामरिक महत्व के बंदरगाहों पर पैर जमाते हुए आपको नपुंसक बना चुका था और राष्ट्र का नेतृत्व, पूंजीवादी पैसे से चलती वामपंथी और नक्सल एनजीओ की लोरी सुन कर सो रहा था.

इस ‘पर्ल ऑफ़ स्ट्रिंग’ को मोदी ने अपना ‘पर्ल ऑफ़ स्ट्रिंग’ बना कर न केवल निष्प्रभावी बनाया है बल्कि ‘लुक ईस्ट’ की जगह ‘गो ईस्ट’ और ‘गो सेंट्रल एशिया’ बनाया.

भारत ने म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, ईरान, मालदीव्स और सैशल्स को जोड़ ‘पर्ल ऑफ़ स्ट्रिंग’ बनाया है, वहीँ चीन को वियतनाम, जापान, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया और ताज़िकस्तान से बाँध दिया है.

यहाँ काम आने वाले सब मोहरे रक्खे गए हैं और ये विशुद्ध दूरगामी सामरिक और व्यापारिक मित्रता है. जिसमें एक हाथ देगा और दूसरा हाथ लेगा. मारियो पूज़ो की ‘द गॉडफादर’ में वीटो कारलियोन कहता है, “इट्स नथिंग पर्सनल, इट्स बिज़नेस”, ये सब भी वही है.

नवाज़ शरीफ को शपथ समारोह में बुलाने और बाद में आगे की बातचीत के लिए तैयार होने का फैसला सिर्फ एक ही मकसद से लिया गया है और वह यह कि विश्व को संदेश देना कि हम बड़े शरीफ हैं, दोस्ती करना चाहते हैं और इस प्रयास में हम शेष विश्व को भी साथ लेकर चलना चाहते हैं. इस को इससे ज्यादा बिलकुल भी न पढ़ें.

पिछले एक साल में धंधे की बिसात बिछ चुकी है. चीन का बलूचिस्तान में अब तक का 2 बिलियन डालर और पूरा 42 बिलियन डॉलर का पाकिस्तान में निवेश, जो सामरिक एवं व्यापारिक दृष्टि से चीन की मौजूदा आर्थिक स्थिति के लिए अति महत्वपूर्ण है, उहापोह की स्थिति में फंसा दिख रहा है. चीन को वहां अपनी 2 ब्रिगेड सेना रख कर अपने इन्वेस्टमेंट की सुरक्षा करनी पड़ रही है.

अब ज़रा थोडा सा पाकिस्तान के अंदर घूम आइये और यदि किसी के कोई सम्पर्क सूत्र है, तो वहां का माहौल का जायजा ले लीजिये, तब शायद हकीकत से आप वाकिफ हो सकेंगे. लेकिन आपका राष्ट्र प्रेम तो शायद परिणामों की बात करता है और जिन परिणामों की आपको अपेक्षा है वो परिणाम रातों रात नहीं आते है.

बिना पूरी तैयारी के, बिना ज़मीनी नेटवर्क को परिपक्व किये, तमाम पैसा खर्च करके और पाकिस्तान विरोधी ताकतों को समर्थन दे कर भी, आप कुछ नहीं कर सकते क्यूंकि इन सब में समय लगता है. जो आप देना नहीं चाहते है.

इन योजनाओ के परिपक्व होने में समय लगता है और इसका प्रचार NDTV, ABP News या Times पर नहीं किया जाता है और न ही मानवतावादी व अमन की आशा वाले काहिलों के ज्ञान को सुना जाता है.

बलूचिस्तान में पाकिस्तान सेना द्वारा चलाये जा रहे ‘अवारन ऑपरेशन’ का नाम सुना है? बलूचिस्तान में आपका क्या ख्याल है अचानक पाक मिलट्री ऑपरेशन क्यों हो रहा है? चीन की वहां ग्वादर बंदरगाह में बढ़ती दिक्क्त के तहत पाकिस्तानी सेना को वहां नरसंहार करना पड़ रहा है.

पाकिस्तान की सेना यह सब कोई खुशी से नहीं कर रही है, यह पाकिस्तान की मजबूरी है क्यूंकि बिना चीन की मौजूदगी के पाकिस्तान खुद के वजूद के बने रहने पर भरोसा नहीं कर पा रहा है. उधर चीन भी हर हालत में बलूचिस्तान के उस बंदरगाह पर से कब्जा छोड़ना नहीं चाहेगा. यह एक विराट पर्दे में खेला जा रहा खेल है, जहां जज़्बातों का कोई दखल नहीं है.

इस लिए आप धैर्य रखें, वक्त से पहले, आपकी कोई भी इच्छा मोदी पूरी करने वाले नहीं है क्यूंकि वह यह जानते है कि भारत की जनता टमाटर, आलू, गोभी, पेट्रोल के भाव में बिकती है. जहाँ भारत की जनता ने अभी बिना अपने शौकों में कटौती किये, एक महीने जीना नहीं सीखा है, वहीं भारत की जनता कान की कच्ची और हवा हवाई किले भी खूब बनाती है.

ये अगर नहीं होता तो क्या ये जनता 7 दशकों से जाति और क्षेत्रवाद में फंसी रहती? यदि अगर ये न होता तो, हवाई जहाज पर चलने वाले, फाइव स्टार होटल में रहने वाले मानवतावादी, वामपंथी, बुद्धिजीवी और विदेशी एनजीओ से मोटी तनख्वाह पा रहे उनके कारिंदो के, भारत के हितों के विरुद्ध दिए जा रहे उनके ज्ञान का मकसद, जनता नहीं समझ लेती?

मोदी जब तक जमा पूंजी के हिसाब से, तिजोरी पक्की नहीं कर लेंगे और 6 महीने तक बाहरी दुनिया के बिना, आपको जीवित रख पाने का भरोसा नहीं कर लेंगे, तब तक किसी बवाल में हाथ नहीं डालेंगे, सिर्फ दूर से भट्टी गर्माएंगे.

अभी गुरदासपुर में हुआ है, इससे परेशान मत होइये. आगामी दो सालों में भारत की सीमा पर या आंतरिक जगहों पर 3-4 और इससे बड़ी घटनाएं हो सकती हैं क्यूंकि लाख सुरक्षा के बाद भी फिदायीन/ आतंकवादी अपने समर्थकों और वैचारिक मित्रों की सहायता से आ जायेंगे. आप लाशें गिनते रहिये, हिसाब बाद में होगा.

इस सब बातों में ये ध्यान रखियेगा कि भारत को जो नुकसान 2 दशकों में हुआ है, उसको संजोने और फिर से जोड़ने में, एक-दो महीने नहीं लगते हैं, उसमें समय लगता है. यह समय न आपके हिसाब से और न ही पाकिस्तान के हिसाब से होगा, यह सिर्फ मोदी की आंतरिक सुरक्षा टीम के आंकलन के हिसाब से होगा.

फिलहाल 2017 तक अपने जोश पर काबू रखें. तब तक पाकिस्तान और चीन की झुंझलाहट भारत के लिए खून और लाशो को लेकर आयेगा और देकर जायेगा वह असली खेल, जो उसके उसके बाद ही होगा. हमें पाकिस्तान मौजूदा हालत में, अगले दशक में नहीं मिलेगा.

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