झारखंड की राजधानी रांची से करीब 150 किलोमीटर दूर गुमला जिले में एक पहाड़ पर स्थित है टांगीनाथ धाम. पत्थर से बनी असंख्य मूर्तियों, शिवलिंगों के बीच इस धाम का सबसे बड़ा आकर्षण है जमीन में काफी गहराई तक गड़ा विशाल फरसा. किवदंतियों के अनुसार यह फरसा भगवान परशुराम ने यहां खुद गाड़ा है.
इसके इतर गौरतलब बात यह भी है कि इस तथाकथित फरसे के ऊपर आईआईटी, मुंबई की ओर से रिसर्च भी किया जा रहा है. यह जानने के लिए कि आखिर इस लोहे को बनाने में कौन सी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है कि अब तक इसमें जंग नहीं लगा. और दूसरी विशेषता यह है कि ये जमीन में कितना नीचे तक गड़ा है इसकी भी कोई जानकारी नहीं है. एक अनुमान 17 फ़ीट का बताया जाता है.
झारखंड में लकड़ी काटने की कुल्हाड़ी को टांगी कहा जाता है. फरसा उसी का बड़ा रूप है, जो एक शस्त्र है. टांगीनाथ धाम का का नामकरण भी फरसा और टांगी की इस समानता के कारण स्थानीय लोगों ने किया होगा, ऐसा विशेषज्ञों का मानना है.
परशुराम और टांगीनाथ धाम
बात त्रेतायुग की है. जनकपुर में स्वयंवर के दौरान शिवजी का धनुष तोड़ने के बाद सीताजी से विवाह कर श्रीराम भाई लक्ष्मण और अन्य परिजनों के साथ अयोध्या लौट रहे थे. रास्ते में विष्णु के ही एक अन्य अवतार माने जाने वाले परशुराम ने उन्हें रोक लिया. वे शिवजी का धनुष तोड़े जाने से नाराज थे, क्योंकि शिवजी ही परशुराम के गुरु थे. परशुराम ने राम को खूब बुरा-भला कहा, लेकिन वे मौन रहे पर लक्ष्मण को गुस्सा आ गया. उन्होंने परशुराम के साथ लंबी बहस की और इसी बीच परशुराम को पता चल गया कि राम भी उनकी तरह विष्णु के ही अवतार हैं.
यह जानकर परशुराम बहुत लज्जित हुए और अपने किए का प्रायश्चित करने के लिए घनघोर जंगलों के बीच एक पहाड़ पर आ गए. उस पहाड़ पर उन्होंने अपना फरसा गाड़ दिया और बगल में बैठकर तपस्या करने लगे. गुमला के लोग पीढ़ियों से यह किवदंती सुनते आए हैं कि परशुराम ने जिस जगह तपस्या की थी वह टांगीनाथ धाम ही है. धाम में परशुराम के पदचिन्ह भी मौजूद हैं.
टांगीनाथ धाम में परशुराम के तपस्या की बात इसलिए भी सटीक लगती है क्योंकि उस समय इस इलाके में घनघोर जंगल रहा होगा, जो कि थोड़ी बहुत बसाहट के साथ आज भी है. तपस्या के लिए ऐसी एकांत वाली जगह अच्छी मानी जाती थी.
शिवजी से भी जोड़ा जाता है टांगीनाथ का सम्बन्ध
कुछ लोग टांगीनाथ धाम मे गड़े फरसे को भगवान शिव का त्रिशुल बताते हुए इसका सम्बन्ध शिवजी से जोड़ते है. इसके लिए वो पुराणों की एक कथा का उल्लेख करते हैं जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव किसी बात से शनि देव पर क्रोधित हो जाते हिया. गुस्से में वो अपने त्रिशूल से शनि देव पर प्रहार करते है. शनि देव त्रिशूल के प्रहार से किसी तरह अपने आप को बचा लेते हैं. शिवजी का फेंका हुआ त्रिशुल एक पर्वत को चोटी पर जा कर धंस जाता है. वह धंसा हुआ त्रिशुल आज भी यथावत वहीं पड़ा है. चूंकि टांगीनाथ धाम में गड़े हुए फरसे की ऊपरी आकृति कुछ-कुछ त्रिशूल से मिलती है इसलिए शिव जी का त्रिशुल भी मानते हैं.
फरसे से छेड़छाड़ का खामियाजा और किंवदंती
फरसा जिस स्थान पर गड़ा है, वहां अब कंक्रीट से पक्की ढलाई कर दी गई है. स्थानीय लोगों ने ऐसा क्यों किया इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी बतायी जाती है. लोहे की जंग न लगने की खासियत से आकर्षित होकर इलाके में रहने वाली लोहरा जनजाति के कुछ लोगों ने फरसे को ले जाने की कोशिश की थी. उखाड़ने की कोशिश में असफल होने पर उन्होंने फरसे के ऊपरी भाग को काट दिया, लेकिन उसे भी नहीं ले जा सके. शायद लोगों ने उन्हें पकड़ लिया था. इस घटना से सबक लेते हुए लोगों ने जमीन की ढलाई करवा दी और उसी ढलाई में फरसे का टूटा हुआ हिस्सा भी स्थापित कर दिया.
परशुराम के फरसे से छेड़छाड़ का खामियाजा लोहरा जाति को अब भी भुगतना पड़ रहा है. पीढिय़ां बीत गईं पर अब भी उस जाति का कोई व्यक्ति टांगीनाथ धाम के आस-पास के गांवों में नहीं रह पाता. कहते हैं उक्त घटना के बाद से ही इलाके में लोहरा जाति के लोगों की एक-एक कर मौत होने लगी. इससे डर के लोहार जाति ने वो क्षेत्र छोड़ दिया और आज भी धाम से 15 km की परिधि में लोहार जाति के लोग नहीं बसते हैं.
खुले में पड़ी हैं दुर्लभ प्रतिमाएं
टांगीनाथ धाम में सैकड़ों की संख्या में शिवलिंग और प्राचीन प्रतिमाएं खुले आसमान के नीचे पड़ी हैं. उनका लगातार क्षरण हो रहा है, लेकिन पुरातत्व विभाग ने उनके संरक्षण के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की है. ये प्रतिमाएं उत्कल के भुवनेश्वर, मुक्तेश्वर, गौरी केदार आदि स्थानों से खुदाई में प्राप्त मूर्तियों से मेल खाती हैं. पुरातत्व विभाग गंभीरता दिखाए तो यह एक पौराणिक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है.
अचानक बंद कर दी गई खुदाई
पुरातत्व विभाग ने 1989 में टांगीनाथ थाम में खुदाई करवाई थी. इसमें सोने-चांदी के आभूषण समेत कई कीमती वस्तुएं मिली थीं. कुछ कारणों से यहां खुदाई जल्दी ही बंद कर दी गई और हमारे धरोहर फिर जमीन में दबे रहे गए.
खुदाई में हीरा जड़ित मुकुट, चांदी के अर्धगोलाकर सिक्के, सोने के कड़े, सोने की कनबालियां, तांबे की बनी टिफिन जिसमें काला तिल व चावल रखा था, आदि चीजें मिलीं थीं. यह सब चीज़े आज भी डुमरी थाना के मालखाने में रखी हुई हैं. खुदाई का अचानक बंद होने और वस्तुओं को मालखाने में पड़ा होने के पीछे क्या वजह थी, यह आज भी रहस्य है.
टांगीनाथ धाम के विशाल क्षेत्र मे फैले हुए अनगिनत अवशेष यह बताने के लिए काफी है कि यह क्षेत्र किसी जमाने मे हिन्दुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल रहा होगा लेकिन किसी अज्ञात कारण से यह क्षेत्र खंडहर मे तब्दील हो गया और भक्तों का यहां पहुंचना कम हो गया. रही सही कमी वर्तमान समय में सरकारी उपेक्षा और नक्सलवाद ने कर दी.
जय बाबा टांगीनाथ.