बहना की राखी की थाली में उल्लास होना चाहिए, मनहूसियत नहीं

भारत की राष्ट्रीय मिठाई जलेबी है किताबों में. अब राखी पर बहन का भाई को रसगुल्ला खिलाना ‘चीप’ लगने लगा है. अब ‘कुछ मीठा हो जाए’ का ज़माना है. दीप पर्व, राखी, दशहरा और सारे ‘विदेशी डे’ के लिए चॉकलेट उपलब्ध है.

जैसे ही राखी नज़दीक आएगी, आप अख़बारों में नियमित रूप से पढ़ेंगे कि मिठाई वाले, मावे वाले के यहां खाद्य विभाग का छापा, सैम्पल प्रयोगशाला भेजे गए. और चॉकलेट का कोई सैम्पल क्यों नहीं लिया जाता. ले देकर हमारा मिठाई उद्योग ही क्यों.

2004- कैडबरी के सात उत्पादों में ‘सलमोनेला’ बैक्टेरिया पाया गया. इन्फेक्टेड बोर्नविटा तो फैक्टरी के बाहर भी चला गया था.

2007- बर्मिंघम सिटी कॉउंसिल ने घोषणा कर बताया कि इस बैक्टेरिया से 21 लोग बीमार हुए.

2008- कैडबरी की बीजिंग स्थित तीन फैक्टरियों के उत्पादों में ‘मेलामाईन’ पाया गया. मेलामाईन पेस्टिसाइट होता है. ये मानव शरीर के लिए नुकसानदेह होता है.

2009- इस साल तक कैडबरी अपने उत्पादों में ‘हैड्रोजिनेशन ऑयल’ का प्रयोग करता रहा. इस ऑयल के कई साइड इफेक्ट्स हैं जैसे दिल की बीमारी.

2014- मलेशिया में कैडबरी की रोस्टेड आल्मंड बार चॉकलेट की जाँच में ‘पोर्क डीएनए’ पाया गया. हड़कंप मच गया. कैडबरी के खिलाफ जिहाद की नौबत आ गई. बाद में कंपनी ने उत्पाद से ये कंटेंट हटा दिया. मलेशिया के खाद्य विभाग ने पुनः उत्पाद की जांच की. इस बार पोर्क डीएनए नहीं पाया गया.

भारत के किसी शहर में आज तक कैडबरी के किसी उत्पाद की जाँच नहीं की गई होगी. यदि मैं गलत हूं तो मित्र भूल सुधार करवा सकते हैं. मिठाई हमारी परंपरा की ‘चाशनी’ है. इसके बगैर हमारा कोई आयोजन पूरा नहीं हो सकता लेकिन अब हो रहा है, ख़ुशी से हो रहा है. कैडबरी जो है.

किसी भी मिठाई वाले से पूछिये, वो आपको बताएगा कि कैसे सुनियोजित ढंग से उन्हें बर्बाद किया जा रहा है. त्यौहार के समय ही छापेमारी होती है, दूषित मावा मिलता है लेकिन चमकीली पन्नी में लिपटी चॉकलेट पर कोई संदेह नहीं है.

1947 में अंग्रेज गए और 1948 में अपनी कैडबरी को भेज दिया. आज देश के सत्तर प्रतिशत चॉकलेट बाजार पर उसका कब्ज़ा है. भारत विश्व में कैडबरी का सबसे बड़ा बाजार है. 2016 में यहाँ इस कंपनी ने 60 हज़ार टन चॉकलेट बेच डाली. कैसे? राखी पर जब बहनें भाई के लिए मिठाई न लेकर चॉकलेट ले लेती है, ऐसे.

एक तो आप नहीं जानते कि आप कैसी चॉकलेट खा रहे हैं और दूसरा हमारी मीठी परंपरा अपने हाथों खत्म कर रहे हैं. ये पाश्चात्य रिवाज़ हमारा नहीं है. घर के घी में बने बेसन के लड्डुओं का कोई तोड़ नहीं है.

इस राखी, बहनें इनमें से चुनाव कर सकती हैं.

अनरसा, इमरती, कलाकंद, काजू कतली, कालाजाम, केसरी छेना, किशमिश वाला खाजा गज़क, गुझिया, गुलाब जामुन, घेवर, चमचम, जलेबी, तिरंगी बर्फ़ी, तिलकुट, दाल हलवा, दूधपाक, नारियल बर्फ़ी, परवल की मिठाई, पुआ पेठा (मिठाई), पेड़ा, फिरनी बर्फ़ी, बासुंडी, बादाम की बर्फ़ी, बालूशाही, मगदल मलाई, पान मालपुआ, मैसूर पाक, मोतीचूर मोदकर, बड़ी रसखीर, रसगुल्ला, रसमलाई, राजभोग, लड्डूलापसी, शकरपारे, श्रीखंड, संदेश, सिंगोरी, सोहन पापड़ी, सोहन हलवा.

एक फ़ोटो मस्त लुभावने लड्डुओं का और दूसरा कीड़ा लगी चॉकलेट का. लड्डू को देखिये कितने उल्लसित लग रहे हैं और चॉकलेट कितनी बुझी-बुझी. बहना की थाली में उल्लास ही होना चाहिए, मनहूसियत नहीं मित्रों.

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