कश्मीर में जारी कन्फ्लिक्ट का चेहरा भी बदल रहा है और साथ में चरित्र भी. अभी तक कश्मीर में जारी आतंकवाद पाकिस्तान समर्थित था. उसके दो चेहरे थे, एक मिलिटेंसी, जिसमे हिज्बुल मुजाहिदीन, लश्करे तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन थे. दूसरा कश्मीर के अलगाववादी नेता, हुर्रियत, मीरवाइज फैक्शन, JKLF जो सॉफ्ट टेररिस्ट की भांति थे.
दोनों ही चेहरे पाकिस्तान से कंट्रोल होते थे. आजाद कश्मीर या पाकिस्तान में मिल जाना ही उद्देश्य था. लेकिन अब ये दोनों चेहरे बदल रहे हैं. अब कश्मीर कन्फ्लिक्ट भारत-पाकिस्तान का मामला नहीं रहने वाला है. इसका भी इस्लामिक आतंकवाद की तरजीह पर वैश्वीकरण हो रहा है.
बुरहान वानी के समय से आतंकवाद की मांग अब आज़ादी नहीं रह गयी है बल्कि कश्मीर में इस्लामिक स्टेट की तरह खलीफा का शासन और शरिया के कानून की स्थापना है.
अल कायदा ने कुछ ही दिन पहले “अंसार गज़वात उल हिन्द” संगठन की स्थापना की है. जिसका चीफ बुरहान वानी का सहयोगी रह चुका जाकिर मूसा है.
ज़ाकिर मूसा वही आतंकवादी है जिसने कुछ समय पहले अलगाववादी नेताओं को मार देने की बात कही थी.
खुद भारत सरकार कश्मीर में आतंकवाद के बदलते चेहरे को देख रही है, ये इसी से साफ है कि पिछले तीन सालों में मोदी सरकार ने अलगाववादी नेताओं से बात करने में कोई रूचि नहीं दिखाई. कश्मीर मसले पर किसी से कोई बात नहीं होगी ये सरकार साफ़ कर चुकी है.
इसी का नतीजा है कि सात अलगाववादी नेता आज पाकिस्तान से पैसा लेकर आतंकवाद फ़ैलाने के आरोप में हिरासत में हैं और जाँच चल रही है.
जबकि ये भी हकीकत है कि इन्ही नेताओं को पूर्व सरकारें पैसा देती रही हैं और इनके बेटे-बेटियों, रिश्तेदारों को सरकारी मदद, नौकरी सब कुछ मुहैय्या रहा है.
ये अलगाववादी नेता पाल-पोस कर रखे गए कि कभी कश्मीर समझौता होगा तो ये काम आएंगे. लेकिन अब लगता है कि भारत, पाकिस्तान, कश्मीर, आतंकवाद सबके लिए इन नेताओं की उपयोगिता खत्म हो रही है.