भाषा की क्लिष्टता का उपयोग अधिकतर वहां किया जाता है जहाँ कहने को कम और प्रदर्शन के लिए अधिक होता है. लेकिन जहां सामान्य मनुष्य को कोई महत्वपूर्ण जानकारी पहुँचाना हो तो भाषा सीधी सरल ही रखी जाती है. और ये किसी पर आक्षेप नहीं, मेरा व्यक्तिगत अनुभव है. जब मुझे अपनी लेखन क्षुधा के चलते कोई ऐसा भाव प्रेषित करना हो जो पूरी तरह बताना ना हो, यानी बात व्यक्त होने के बाद भी व्यक्तिगत रखना हो तो मैं सरल भाषा को जटिल बनाकर अलंकारों और रूपकों में प्रस्तुत करती हूँ. लेकिन जो सीधे सन्देश देने हो उसके लिए भाषा भी बिलकुल वैसी होती है जो सामान्य व्यक्ति को भी एक बार पढ़ने में समझ आ जाए.
फिर उस बात पर विश्वास करना न करना ये पाठक की अपनी स्वतंत्रता होती है जो उसके उपलब्ध ज्ञान, आस्था और संस्कारों पर निर्भर करती है. आध्यात्मिक गुरु श्री एम की पुस्तक “हिमालयीवासी गुरु के साए में” एक ऐसी ही पुस्तक है जो उन्होंने अपने गुरु के आदेश पर बिलकुल सरल भाषा में लिखी है. ताकि उनकी आध्यात्मिक यात्रा के दौरान हुए जादुई अनुभवों को एक सामान्य व्यक्ति भी समझ सके और अपनी सीमित जानकारी के बावजूद विशाल ब्रह्माण्डीय रहस्यों पर कम से कम इतनी आस्था रख सके कि उस तक यह सन्देश पहुंचे कि सतत अभ्यास और ध्यान से वह भी उन चमत्कारों को अनुभव कर सकता है.
यह भी मेरा अपना अनुभव है कि मैं, जिसे कभी गायत्री मंत्र भी ठीक से उच्चारित करना नहीं आया, जिसने पूजा पाठ हवन जैसी चीज़ों को हमेशा आडम्बर माना, जिसे अपनी भावनाओं को कभी उच्च साहित्यिक भाषा में व्यक्त करना नहीं आया, जिसने खुद को हमेशा एक दोयम दर्जे का इंसान समझा जिसमें गुण से अधिक अवगुण है, उसके लिए भी ब्रह्माण्डीय रहस्यों के द्वार खुले मिले. अब इन रास्तों की भूल भुलैया को मैं कैसे पार कर रही हूँ ये मेरे पूर्व जन्मों के कर्म, मेरी आत्मा पर पड़े अनावश्यक संस्कार और इस जन्म की परवरिश पर निर्भर करता है.
ऐसी ही एक कठिन आध्यात्मिक यात्रा श्री एम ने प्रारम्भ की जिसको पार करने पर उनको मिला गुरु और परम गुरु का आशीर्वाद. और उनके आशीर्वाद के फलस्वरूप उन्होंने जो कुछ भी अलौकिक अनुभव पाए उनमें से एक अनुभव ऐसा है जो कदाचित सब स्वीकार ना भी कर पाए. लेकिन चूंकि मेरे स्वयं के अनुभव भी मुझे वैसे ही जादुई लगते हैं तो मेरी उनकी बातों पर शत प्रतिशत आस्था है. आपकी ना हो तब भी यही कहूंगी एक बार उस पुस्तक को पढ़ अवश्य लीजिये. कदाचित आपकी शंका को कोई समाधान मिल जाए.
तो बात उन दिनों की है जब श्री एम अपने गुरु जिनको वो “बाबाजी” कहते हैं, के पास आध्यात्मिक शिक्षा-दीक्षा ले रहे थे. उन दिनों हिमालय की एक गुफा में धूनी के सामने बैठे जब वो ध्यान में बैठे थे तो ऊपर आसमान से उन्हें एक आग का गोला सा उतरता दिखाई देता है, जो खुलकर दो भागों में विभाजित हो जाता है और उसमें से निकलकर आता है एक नीला नाग. वो नाग बाबाजी के चरण स्पर्श करता है और सांप की तरह फुसकारते हुए कोई सन्देश बाबाजी को देता है, जिसके जवाब में बाबाजी भी उसी भाषा में उसको जवाब देते हैं.
श्री एम के लिए ये उतना ही अचंभित कर देने वाला अनुभव था जितना पाठकों को तब होता है जब बाबाजी आगे बताते हैं कि – “आकाश गंगा में एक तारकीय मंडल है जिसमें सात ग्रह और अठारह चाँद हैं. उनमें से एक ग्रह को “सर्प-लोक” कहा जाता है. उस पर अत्यंत उन्नत, फन वाले सांप रहते हैं. उनमें से भुजंगों को नाग देवता कहा जाता है. जो व्यक्ति तुमने देखा वह उस लोक का उपनायक है. उसे नागराज कहा जाता है. नागों का परम नायक पांच फनों वाला सुनहरी सांप है जिसे प्राचीन भारतीय शास्त्रों में अनंत कहा गया है.”
बाबाजी आगे बताते हैं कि कभी पृथ्वीवासी से उन उन्नत नागों का परस्पर संपर्क था और कुण्डलिनी ऊर्जा का रहस्य भी इन नागों ने ही बताया है. परन्तु मनुष्य के स्वार्थी स्वभाव के कारण नागों की दी हुई शक्ति का उपयोग वो उनके ही विरुद्ध करने लगा. तब नागों के परम नायक ने सभी नागों को वापस नागलोक लौट जाने का आह्वान किया. तो जो उन्नत नाग थे वो लौट गए परन्तु कुछ बूढ़े और विद्रोही यहीं रह गए.
वे आगे बताते हैं कि शिर्डी के साईं बाबा ने भी जब तीन दिन के लिए अपनी देह त्यागी थी तब वो उसी नाग-लोक में हुए किसी विवाद को सुलझाने गए थे.
बाबाजी की बात सुनकर श्री एम कहते हैं कि यदि आपके आदेश अनुसार मैंने अपनी आत्मकथा में यह सब लिखा तो लोग इसे मेरे असंतुलित दिमाग का अनर्गल प्रलाप या कल्पना कह कर खारिज कर देंगे. और यही बात मुझ पर भी उतनी ही लागू होती है कि कभी मैंने अपने अनुभव अपने गुरु के आदेश पर लिखना प्रारम्भ किये तो आज के इस आधुनिक युग में इसे सिर्फ और सिर्फ दिमाग़ी फितूर समझकर खारिज कर दिया जाएगा.
लेकिन बाबाजी जो जवाब देते हैं, उससे मुझे भी उतनी ही प्रेरणा मिलती है जितनी श्री एम को मिली कि – “सत्य कल्पना से भी अधिक अनोखा होता है और अगर तुम्हारी कहानी से उनकी कल्पना को उत्तेजना मिलती है, तो आशा की जा सकती है कि उन्हें शायद कभी यह भी ज्ञान हो जाएगा कि चेतना के और भी ऊंचे स्तर होते हैं जिन्हें शुष्क तर्क से नहीं समझा जा सकता या कि मनुष्य द्वारा अभी प्राप्त बुद्धि द्वारा. इसके अलावा, यह भी ध्यान रखो कि किसी भी बात को, जो स्थापित मानदंडों के अनुसार नहीं है, उसे अवैज्ञानिक कह कर खारिज कर दिया जाता है, इसलिए कोई विशेष आशा मत रखो.”
आशा तो मुझे भी अधिक नहीं है क्योंकि उनकी पुस्तक की भाषा चाहे कितनी ही सरल हो मेरी आध्यात्मिक यात्रा बहुत कठिन है. इसलिए सामान्य मनुष्य के लिए चाहे वें सुलभता से उपलब्ध हों परन्तु एक साधक के लिए उन तक पहुंचना बहुत दुर्लभ है. क्योंकि गुरु से मिलन के दुर्लभ क्षणों को प्राप्त करने का आनंद तभी प्राप्त होता है जब आपने वास्तविक रूप से शिष्य बनकर एक लम्बी, कठिन, मृत्यु सदृश्य यात्रा तय की हो.