नाराज़गी के हज़ार कारणों के बावजूद हिन्दुओं का इस वक़्त प्रधानामंतरे नरेंद्र मोदी को समर्थन देना बनता है, यह आज की रणनीति की ज़रूरत है. समझ लीजिये क्यों.
कारण इतिहास में है. हिन्दुओं ने जो भी लड़ाई हारी है, जीती हुई लड़ाई भी हारी है, उसका कारण एक ही रहा है – राजा का मार गिराया जाना. एक बार राजा गिरा, कोई संभाल नहीं पाया है हर निर्णायक लड़ाई में.
दुर्भाग्य से यह भी परंपरा रही है कि सेकंड इन कमांड, राजा गिरने के बाद सेना को कमांड नहीं कर पाये. शायद सेना के सभी दलीय नायकों को राजा के ही हुक्म मानने थे, दूसरे किसी का हुक्म मानना अपनी आन बान शान के खिलाफ लगता होगा.
जो भी कारण थे, कारण यह भी था कि परिणामकारक नेतृत्व की दूसरी पंक्ति नहीं होती थी. दूसरी पंक्ति राजा के हुक्म पर सही तरीके से अमल करती-करवाती तो थी लेकिन अपना हुक्म नहीं चला पाती.
आज भी परिस्थिति यही है और राजा को मार गिराने की कोशिशें हज़ार हो रही है. क्या यह राजा इतना अच्छा है कि उसके लिए हम मर मिटें? खुद के लिए, खुद की आनेवाली पीढ़ी के लिए निर्णय लीजिये.
इस देश को मुग़लिस्तान न होने के लिए निर्णय लीजिये. आज आप के लिए संगटित हो कर लड़ने का एकमात्र पर्याय इस राजा का सैनिक बनकर ही लड़ना है, आप अकेले लड़ नहीं सकेंगे इतना तो आप को भी पता होगा. आप के साथ आप की लड़ाई कब, कहाँ कैसे समाप्त कर दी जाएगी, किसी को पता नहीं चलेगा.
आज की तारीख में कोई व्यवहारिक विकल्प हमारे सामने नहीं है और 2019 तक समय बहुत कम है. इसलिए 2019 की लड़ाई के लिए और 2019 तक राजा का साथ देना ही हमारे लिए ठीक होगा.
वैसे पितृश्राद्ध के बाद बहुत सुपरिणाम दिखने लगे हैं. हो सकता है कई सुकर्म पितृ रोष या असहकार के कारण अटके पड़े हों जिसका हमें पता भी न चला हो. कई काम ऐसे हैं जिनके लिए कहा जाता है कि एक हस्ताक्षर पर्याप्त है. लेकिन जब तक वो हाथ आप के पीठ पर आश्वासक न हो, हस्ताक्षर कहाँ से होंगे ?
तो क्या अब होंगे हस्ताक्षर? ज्योतिषी तो हूँ नहीं, बस उम्मीद और अनुमान है.
तो मित्रों, 2019 को दुबारा यही कप्तान को लाना हमारी विवशता ही सही लेकिन जो है सो है. रही बात भक्तों की; भक्त भले ही खुश हों, लेकिन नेतृत्व की विकल्पहीनता देश के लिए कोई अच्छी बात नहीं, खास कर जब नेता 70 की उम्र के दरवाजे पर दस्तक देता हो.
आप खुद अगर 60 साल के बाद अपनी जिंदगी बोनस मानते हैं तो देश को विकल्पहीन छोड़ना, देश को और बतौर प्रजा हमें और हमारे वंशजों को भी विकलांग कर देगा. आज से ही हमें 2024 की सोचनी है, 2019 का निर्णय तो लेकर उस पर अधिक ना सोचें.
बस ये सोचें कि 2024 में हमारा निर्णय ज़मीनी परिणाम भी देगा. 2019 में भले ही मोदी जी को दुबारा लाएँ, सांसदों के मामले में सेतु के पत्थर न चुने जो उन पर राम नाम न लिखा तो तैरने की क्षमता नहीं रखते.
लेकिन 2019 में दुबारा मोदी जी का आना बतौर हिन्दू हमारी आवश्यकता है. बाकी कोई पक्ष ही नहीं जो हमारी बात सुनें, और हमें अपनी संगठित ताकत को बिखेरने नहीं देना है. क्योंकि आप जानते ही हैं, हमारे सभी शत्रु इसी प्रयास में लगे हैं.
हाँ, 2024 तक विचार, मंथन और कृति से ऐसा कुछ जरूर करें कि हम विकल्पहीन न हों, और कोई भी पक्ष हिंदुओं को बांटकर अनदेखा करने की हिम्मत न करें.
आप अगर मेरे लेख पढ़ते रहे हैं तो आप को पता होगा कि मेरी गिनती न मोदी भक्तों में होती है और न ही उनके चमचों में. लेकिन फिर भी आज ये लिखने को मजबूर हूँ.
हो सकता है 2019 आते-आते मैं खुशी से लिख सकूं, ऐसे भी काम यह सरकार करे, दो ही दिनों में काफी कुछ उथल पुथल हो रही है जिससे साफ है कि दिन बदलने वाले तो हैं. उम्मीद कीजिये कि आने वाले दिन अच्छे होंगे.