नितीश कुमार वापिस एनडीए में आ गये है और उसके साथ ही कई तरफ से फुलझड़ियां भी निकल आयी है. भाई लोग, पिछले वर्षो में नितीश के विरुद्ध भाजपा के नेताओं और समर्थकों द्वारा कही गयी बातों को याद करा रहे है. लोग ‘इशरत के अब्बू’ की याद दिला कर अपने-अपने गम और छटपटाहट का प्रदर्शन कर रहे है.
आज इन जुमलों को याद कराने वाले, भाजपा को आदर्शो और शुचिता की याद करा रहे है. हालाँकि देखा जाय तो सत्य यही है कि जो यह जुमलों को याद करा कर राजनैतिक मर्यादा और नैतिकता की बात कर रहे हैं, वे वही लोग हैं जिनका खुद का वजूद इन आदर्शो और शुचिता की चिता जला कर बना है.
सच तो यह है कि किसी भी देश की राजनीति में यह आरोप-प्रत्यारोप, यह छींटाकशी, यह तंज उसी वक्त तक के साथी होते हैं जब तक एक बंधी हुई परिधि में कोई राजनैतिक व्यूह रचना होती है. राजनैतिज्ञ, इसको आज के लिए ही इस्तेमाल करते हैं क्यूंकि उन्हें यह पता होता है कि ‘कल’ किसने देखा है?
मैंने तो यही अनुभव किया है कि एक अस्वस्थ लोकतंत्र में शुचिता और आदर्शो को प्राथमिकता देना, हमेशा से ही घातक रहा है. मुझे भाजपा के समर्थक, यह अक्सर कहते हुए मिल जाते थे कि भाजपा की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि उन्हें शासन करना नहीं आता है और इसी लिए हमेशा से ही लोक के तंत्र के दांव पेच में कांग्रेसियों से मात खा जाती है. उनकी इसी कमी ने उन्हें शासन ने उतना काल कभी नहीं दिया है कि वह धरातल पर अपनी विचारधारा को संबल दे सके.
लेकिन यह सब कल की बातें थी, आज भाजपा में मोदी युग है जिसकी प्राथमिकता लम्बे काल तक शासन में बने रहने की है, ताकि धरातल पर अपनी विचारधारा को दृढ़ता से स्थापित कर सकें क्यूंकि यह दीर्घकालीन कार्य है. इसके लिए जरुरी है कि जो हमारे भारतीय चरित्र और मानसिकता में जो कोढ़ लगा था उसको छील-छील कर कोई निकाल फेंके ताकि नव भारत का निर्माण हो सके.
आज जो इशरत के अब्बू की बात याद करा रहे हैं, उन्हें मोदी जी से कुछ सीखना चाहिए. इन्ही नितीश ने इन्ही नरेंद्र मोदी का पिछले 7-8 वर्षो में बार-बार सार्वजनिक अपमान किया है, इन्ही नितीश की पटना के गाँधी मैदान में बम विस्फोट होने में विवादास्पद भूमिका रही है, लेकिन आज तक मोदी जी ने इन अपमानों और हत्या के प्रयासों को व्यक्तिगत नहीं लिया है.
ऐसा मोदी ने इसलिए नहीं किया है क्यूंकि वह दयावान है या साधु हैं बल्कि उन्होंने व्यक्तिगत इसलिए नहीं लिया है क्यूंकि उनका लक्ष्य ‘आज’ है ही नहीं. उनकी एकाग्र गिद्ध दृष्टि ‘कल’ पर लगी हुयी है, जहाँ तक कोई भी न तो देख पा रहा है और न ही सोच पा रहा है.
यह ‘कल’ क्या है, इस पर अलग से लिखूंगा, लेकिन इसको एक उदाहरण से थोड़ा सा जरूर समझा जा सकता है. यह जो हम नितीश के एनडीए में हुए मिलाप पर विरोधाभास, आरोप, कटाक्ष और जुमलों को याद कर रहे हैं, उसका महत्व उतना ही है जितना एक रॉकेट को उड़ा कर किसी उपग्रह को अंतरिक्ष में स्थापित करने में है.
यह ‘आज’ है. लेकिन धरती की गुरुत्वाकर्षण सीमा से बाहर ले जाकर रॉकेट को अंतरिक्ष में अंतहीन यात्रा में भेजना ‘कल’ है. मोदी जी भारत को उसकी बनी और समझी हुयी सीमाओं को तोड़ कर एक अलग स्थान पर स्थापित करना चाहते है. उनके लिए इस प्रारब्ध को पाने के लिए जहाँ गाँधी, आंबेडकर काम आ सकते हैं, वही इशरत के अब्बू भी काम आयेंगे.
आखिर में एक मोटी बात, मोदी जी को इशरत के अब्बू इसलिए प्रिय हैं क्यूंकि अब्बू की घरवापसी से इशरत की अम्मी, खाविन्द, भाई, बहन, चचा, मामू व तमाम रिश्तेदारों के सर से बड़े का साया उठ गया है.