हुर्रियत की ‘हुज्जत’ में “अब्दुल्ला” दीवाना!

अभी तक तो सबने यही गाना सुना था ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’, पर लगता है कश्मीर की घाटियों में अब यह तराना गूंजने वाला है ‘हुर्रियत की हुज्जत में अब्दुल्ला दीवाना’, क्योंकि अपने को काश्मीर की रियासत में खानदानी शहंशाह समझने वाले, इन फारूख महोदय ने बिलावजह अपनी टांग फटे में फंसा कर बोल दिया कि ‘कश्मीर की आग बुझाने के लिये चीन या पाकिस्तान को न्यौता दे दीजिये.’

अरे… अब्दुल्ला साहेब ज़रा बोलने के पहले इन्दिरा गांधी और आपके अब्बा के बीच हुए करार को तो पढ़ लेते. हजरत, अगर 1974 में यह करार नहीं होता, तो आपके अब्बा तो मरते दम तक जेल की हवा खा रहे होते.

फारूख अब्दुल्ला साहेब, कुछ कहने के पहले अपने वालिद हुजूर शेख अब्दुल्ला की आत्मकथा वाली किताब भी पढ़ना भूल गए, जिसमें लिखा है कि फारूख अब्दुल्ला के परदादा ‘राघव राम कौल’ नाम के कश्मीरी पंडित थे. सन 1722 में मुगलों के अत्याचार से छुपने और ‘रशीद बल्की’ नाम के हैवान से बचने के लिए उन्होंने इस्लाम धर्म स्वीकार करके अपना नाम ‘शेख मोहम्मद अब्दुल्ला’ रख लिया था.

फारूख अब्दुल्ला साहेब के दादाजी ‘शेख मोहम्मद इब्राहीम’ थे. दादाजी श्रीनगर के पास शौरा गाँव में रह कर कश्मीरी शाल बेचने का छोटा-मोटा धंधा करते थे. फारूख मियाँ के पिताजी ‘शेख अब्दुल्ला’ का जन्म इसी शौरा गाँव में 8 दिसम्बर 1905 को हुआ था.

उनके जन्म के 11 दिन बाद ही शेख अब्दुल्ला के पिताजी का इन्तकाल हो गया. शेख अब्दुल्ला का सौतेला भाई अपनी सौतेली अम्मी से बहुत बुरा बर्ताव करता था, कहा जाता है कि बहुत बेरहमी से मारता-पीटता था.

फारूख मियाँ क्या आपको पता है आपके अब्बा जान ‘शेख अब्दुल्ला’ गरीबी में कितने परेशान थे, वह तो राम भला करे उनके चचाजान की हजामत बनाने वाले नाई का, जिसके बहुत कहने के बाद आपके अब्बा को उन्होंने स्कूल में भर्ती कर दिया.

उस समय आपके अब्बा को स्कूल जाने के लिये रोज़ दस मील पैदल चलना पड़ता था. जैसे-तैसे रूखी रोटी, चना चबाकर आपके अब्बा ने जम्मू से मेट्रिक पास किया. फिर लाहौर से बीएससी करके अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी अलीगढ़ से एमएससी केमिस्ट्री में कर लिया.

1930 में यहीं पर अंग्रेजी के प्रोफेसर ‘क्वारी मेहमूद’ से उनको साया मिला और 1932 में उन्होंने कश्मीरी मुस्लिम कांफ्रेंस का गठन करके हुकूमत के खिलाफ झण्डा खड़ा कर दिया.

आजादी के बाद 30 अक्टूबर 1948 को नेहरू की कमज़ोरियों का फायदा उठाकर, फारूख जी, आपके अब्बा हुजूर ‘शेख अब्दुल्ला’ को कश्मीर का वजीरे आज़म बना दिया गया. नेहरू की दोस्ती का फायदा उठाकर पाकिस्तान से शान्ति वार्ता का झांसा देकर जब आपके अब्बा हुजूर पाकिस्तान गए तो वहां पर अयूब खान और जुल्फिकार अली भुट्टो की चाल बाजी में फसकर ‘शेख अब्दुल्ला’ ने ड़बल क्रॉस करके पाकिस्तान का ऐजन्ट बन कर काम करना शुरू कर दिया.

वह तो राम भला करे भारतीय गुप्तचर ऐजन्टों का जिन्होंने षड़यन्त्र का भांडा फोड़ कर दिया. जब नेहरू ने आपके अब्बा के भाषणों के सुबूत देखे तो उन्होंने शेख अब्दुल्ला को सीधे जेल में बन्द करा दिया.

फारूख अब्दुल्ला साहेब, ज़रा याद कीजिये वह दिन जब आप तो महज 15 साल की उम्र के थे, उस समय देश के साथ गद्दारी करने के आरोप में आपके अब्बा हुजूर शेख अब्दुल्ला को जेल के सीखचों में बन्द कर दिया गया था. उसके बाद जिस वक्त श्रीमान फारूख अब्दुला साहेब आप जयपुर के एसएमएस कॉलेज में मेडीकल की पढ़ाई कर रहे थे, उस समय आपकी क्या हालत थी यह किसी से छुपा नहीं है.

आप हजरत जब विलायत में जाकर नौकरी कर रहे थे, (तब बस रहने दीजिये, माफ करिये) अंग्रेज नर्स मौली और आपके इश्क को पूरी दुनिया जानती है जिनसे आपका निकाह हो गया. आपके पिता की भी अंग्रेज बीबी थीं और आपकी भी. फिर कश्मीरियत के जींस तो कम होंगे ही.

जिन अपराधों के अन्तर्गत आपके पिता शेख अब्दुल्ला को पूरी जिन्दगी जेल की हवा खानी चाहिये थी, अगर उनके मुकदमे की पूरी फाईल को खोल कर आज पढ़ लिया जाए तो आपके अब्बा हुजूर की पूरी पोल खुल जायेगी कि कैसे पाकिस्तान के अयूब खान से मिलकर कश्मीर को भारत से अलग करने का षड़यन्त्र रचा गया था.

वह तो खुदा का शुक्र था कि उस समय लाल बहादुर शास्त्री आ चुके थे, और पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी थी तथा आपके अब्बा को जेल के सीखचों की रोटियां तोड़ना पड़ी.

जब 1971 की लड़ाई के बाद पाकिस्तान का अंग भंग करके इन्दिरा गांधी ने पूर्वी पाकिस्तान बना दिया तब आपके अब्बा हुजूर ने इन्दिरा के सामने माफी माँगी होगी और तभी तो सब कायदे-कानूनों को अनदेखा करके आपके अब्बा को 1974 में जेल से रिहा किया गया.

दोनों के बीच एक समझौता किया गया जिसे ‘शेख अब्दुल्ला और इन्दिरा गांधी समझौता’ कहते हैं. उस समझौते की पहिली लाईन है कि “कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है”.

अरे मियाँ फारूख साहेब, अपनी ज़ुबान से कुछ बोलने के पहले मेहरबानी करके अपने अब्बा हुजूर शेख अब्दुल्ला-इन्दिरा गांधी वाला इकरारनामा तो पढ़ लिया होता. डिप्लोमेटिक कारणों का आधार मान कर शेख साहेब को सशर्त माफी दे दी गई थी.

आपको तो इन्दिरा गांधी के ऐहसान को सात जन्म तक नहीं भूलना चाहिये. अगर उन्होंने आपके अब्बा हुजूर को माफ नहीं किया होता तो हो सकता है आप अभी जो ऐशो आराम फरमा रहे हैं उसकी जगह आप लन्दन के किसी गली कूचे में अपना बुढ़ापा काट रहे होते.

Text of the Indira–Sheikh accord

The State of Jammu and Kashmir which is a constituent unit of the Union of India, shall, in its relation with the Union, continue to be governed by Article 370 of the Constitution of India.

The residuary powers of legislation shall remain with the State; however, Parliament will continue to have power to make laws relating to the prevention of activities directed towards disclaiming, questioning or disrupting the sovereignty and territorial integrity of India or bringing about cession of a part of the territory of India or secession of a part of the territory of India from the Union or causing insult to the Indian National Flag, the Indian National Anthem and the Constitution.

Where any provision of the Constitution of India had been applied to the State of Jammu and Kashmir with adaptation and modification, such adaptations and modifications can be altered or repealed by an order of the President under Article 370, each individual proposal in this behalf being considered on its merits ; but provisions of the Constitution of India already applied to the State of Jammu and Kashmir without adaptation or modification are unalterable.

With a view to assuring freedom to the State of Jammu and Kashmir to have its own legislation on matters like welfare measures, cultural matters, social security, personal law and procedural laws, in a manner suited to the special conditions in the State, it is agreed that the State Government can review the laws made by Parliament or extended to the State after 1953 on any matter relatable to the Concurrent List and may decide which of them, in its opinion, needs amendment or repeal.

Thereafter, appropriate steps may be taken under Article 254 of the Constitution of India. The grant of President’s assent to such legislation would be sympathetically considered. The same approach would be adopted in regard to laws to be made by Parliament in future under the Proviso to clause 2 of the Article. The State Government shall be consulted regarding the application of any such law to the State and the views of the State Government shall receive the fullest consideration.

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