दहशतगर्दों के लिए दिग्विजय की दरियादिली, आतंकियों के लिए ‘अध्यक्षा’ की आँखों में आंसू, इशरत की असलियत ढंकने की चिदंबरम की चालाक चालें, मुल्क-ए-आतंक से मणिशंकर का मेल-जोल, जिन्ना-इंस्टिट्यूट में जनाब सलमान खुर्शीद का हिन्दुस्तान पर ज़हरीला इज़हार, मुंबई-हमले में पाकिस्तान को क्लीन चिट का दिग्विजयी ढिंढोरा – ऐसे तमाम प्रकरणों से कांग्रेस का एक ख़ास ‘पैटर्न’ उभर कर सामने आता है और कांग्रेस की ऐसी कई कवायदें कांग्रेस की किसी कु-मंत्रणा की कहानी कहती है.
स्वाधीन भारत के आरंभिक दिनों में भी कांग्रेस यही पैटर्न प्रदर्शित करती दिखती है. पाकिस्तान के निर्माण में नेहरु की नायाब दिलचस्पी, कश्मीर के भारत-विलय में नेहरु का निरुत्साह, कश्मीर में कबायली हमले पर वहां सेना भेजने में नेहरु की आनाकानी, पाकिस्तान के साथ सांठ-गाँठ में गिरफ्तार शेख अब्दुल्ला को नेहरु द्वारा छोड़ दिया जाना, हिन्दुओं के प्रति नेहरु की ना-पसंदगी, पाकिस्तान के विरुद्ध भारतीय सेना की तैयारियों के प्रस्ताव को तत्कालीन कांग्रेस-सरकार द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिया जाना आदि ऐसे कई कांग्रेसी अंदाज कांग्रेस के उसी ‘पैटर्न’ की ओर संकेत करते हैं.
कांग्रेस के सभी तारों को एक साथ जोड़ कर देखें तो उसकी एक संदेहपूर्ण तस्वीर उभरती है. कांग्रेस की सामूहिक-चेतना साफ तौर पर संदेहास्पद दिखती है. ऐसे में, ये प्रश्न उठना क्या स्वाभाविक नहीं है कि “भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस” वास्तव में “भारतीय राष्ट्रीय” है, या “कुछ और” ?
(सन्दर्भ : (1) The then Chief Justice M Mahajan’s book, “Looking Back” , (2) Minister in Nehru cabinet N V Gadgil’s book, “Governments from Inside”, (3) The then.t General B M Kaul’s book, “The untold story”, (4) Tarik Ali’s book, “The Clash of Fundamentalism: Crusades, Jihads,and Modernity”)