जग्गा जासूस में एक जगह रणवीर कपूर डायलॉग बोलता है- बीकानेर की तो हर गली में भुजिया और नमकीन मिल ही जाता है और हॉल में बैठे अचानक ही रोमांचित हो उठता हूँ. ठीक इसी वक्त बीकानेर के सिनेमा हॉल में शायद इसी डायलॉग को सीटी, तालियों और हो-हुल्लड से भारी ध्वनिमत से पास किया गया होगा जिसका एक छोटा सा हिस्सा शायद में भी होता, अगर सशरीर वहां होता (मन तो सदा वही है). हमारे बीकानेर का भला राजनेताओं, प्रशासनिक अधिकारियों, व्यापारियों और हम आम लोगों ने भले ही ना किया हो पर इसके नाम से एक खास उबाल जरूर हम बीकानेरी महसूस कर ही लेते है. इससे प्यार तो सभी को है पर वफा किसी ने नही की. सालो-साल पीछे जाता जा रहा है. अजब गजब मामला है.
बहरहाल, भुजिया-नमकीन बीकानेर की पहचान है, इसमें कोई किन्तु-परन्तु नही. कहते हैं कि भुजियों के बनने के लिए मोठ को जब बीकानेर की हवा-पानी मिलती है तो ही वो खास जायका भुजियों में आता है. विदेशों तक खुले हल्दीराम और बीकाजी के काउंटर पर बिकने वाला भुजिया दरअसल बनता बीकानेर में ही है. हमारा मान-मनौवल, खिदमत, तोहफा, मनुहार सब भुजिया ही है. जयपुर के ऑफिसों में तो बाकायदा “बीकानेरी फाइल” के भुजियों के भार से ही निकलने का रिवाज है.
भुजिया बीकानेर को बाकी दुनिया से भूमध्यरेखा की तरह अलग करता है.
एक तरफ भुजिया, दूसरी तरफ दुनिया.
इसलिये बीकानेर और बीकानेरी भुजियों के इस डायलॉग पर जयपुर के सभ्रांत मॉल में सीटी, ताली न बजाने का अफसोस है.
हमारे बीकानेर में फिल्मों की शूटिंग होती रहती है. गुलामी, लैला मजनू, गदर, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों, खूबसूरत, हाइवे और भी बहुत सारी फिल्मों की शूटिंग यहां हुई है. लम्बी फेहरिस्त है. सस्ती जगह है और सुलभ लोक है. अच्छे-अच्छे प्रतिभाशाली थिएटर के कलाकार छोटे-मोटे रोल के लिए मिल जाते है. रास आता है फिल्मकारों को बीकानेर. मिलन लुथरिया की आ रही फिल्म बादशाहों का रश्क इ कंवर गाना जो अभी रिलीज हुआ है, उसमें भी बीकानेरी हवेलियों और स्थापत्य की खूबसूरती आप अजय देवगन और इलियाना के साथ देख सकते है.
कपिल शर्मा की आने वाली फिल्म फिरंगी की शूटिंग भी किस्तों में बीकानेर में हो रही है. अपने शहर को पर्दे पर देखकर बांवले होने वाले लोगो ने इस डायलॉग पर क्या रियेक्ट किया होगा, ये जानना था. छोटे शहरो का ये अपना खास इजाद किया हुआ पागलपन है. इन्हें कभी किसी “सयानेपन” की नजर नहीं लगे. अनुराग बसु की फिल्म में बीकानेर का नाम आया तो इससे जुडा किस्सा भी याद आया.
बीकानेर से दीपक पारीक कुछ सालों से मुम्बई में बडा नाम कमा रहा है. बड़े टीवी सीरियल और विज्ञापनों में लगातार अच्छा काम कर रहा है. अभी & टीवी पर बकुला बुआ का भूत नाम से जो सीरियल आ रहा है उसमें आप इसकी अदाकारी देख सकते है. तो बात ये है कि दीपक के टाटा टी के एक विज्ञापन में अभिनय को देख कर खुद अनुराग बसु ने फिल्म बर्फी में एक रोल के लिए ऑफिस बुलाया. कहा- ऑडिशन की जरूरत नहीं, तुम फिट हो इस रोल में.
बात-बात में अनुराग बसु ने दीपक से पूछा- कहाँ से हो और दीपक ने कहा- बीकानेर से. अनुराग बसु ने कहा- बीकानेर. वहां एक थिएटर ग्रुप था ना. दिमाग पर जोर डाल कर अनुराग बसु ने कहा- अनुराग कला केंद्र नाम था शायद. मेरा हमनाम है इसलिए अब तक याद है.
दीपक ने कहा- अनुराग नाम से ही है, हमारा ही ग्रुप है और मेरा सारा थिएटर उसी के साथ किया हुआ है. अनुराग बसु ने कैजुअल सा कहा कि 70ज में वहां के टाउन हॉल में मैंने एक नाटक में अभिनय किया हुआ है. अब चौकने की बारी दीपक की थी. अनुराग बसु ने बताया कि 70ज में अनुराग कला केंद्र की और से एक अखिल भारतीय नाटक प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भाग लेने हमारा ग्रुप आया था बीकानेर. बुरी हालत थी तुम्हारे शहर के टाउन हॉल की.. दीपक ने कहा- हालत तो अब भी बुरी ही है.
गुमनामी के दिन भी कमाल होते है. सफल हो जाओ तो इसकी जुगाली भी बडा लजीज स्वाद देती है. साइन के ऑटोग्राफ में बदलने की प्रक्रिया लाजवाब होती है, यादगार होती है, जूनूनी होती है. कई किस्से, कहानियों के प्रसव का पेट लिए होती है.
पेमेंट की बात फंसी और दीपक बर्फी फिल्म में अभिनय करते करते रह गया पर एक अच्छा किस्सा इस बहाने हम सब के हाथ लगा कि बीकानेर के बिल्कुल छोटे से और न्यूनतम सुविधाओं के टाउन हॉल में निर्देशक अनुराग बसु अभिनेता के रूप में नाटक कर चुके है और उन्हें अब तक बीकानेर और बीकानेर का टाउन हॉल याद है. छोटे स्तर की एक छोटी सी ही संतुष्टि.
आह बीकाणा. बहाना चाहिए बस तेरे जिक्र का.