इधर बरसात शुरू हुई है और एक नए गीत ने प्रवेश किया है. भारत की बरसातों के लिए ये गीत फिटम-फिट बैठ रहा है. बरसातों में ही कॉलेज गुलज़ार होते हैं. एक ही छाते के नीचे इश्क भी भीगते हैं, अश्क भी. अभी कहीं से चला आया ये गीत.
कोई उम्दा शायरी भी नहीं है. बस किसी पुरानी छत के उखड़े पलस्तर से कोई ‘पीपल’ उग आया हो, ऐसा ही गीत है. ‘अभिजात्य कानों’ से नहीं सुना जाएगा लेकिन पान की दुकान पर खूब चलेगा.
इसे स्वर दिए हैं सोनू निगम और श्रेया घोषाल ने. संगीत विकी प्रसाद का है और लिखा है सिद्धार्थ गरिमा ने. फ़िल्म है टॉयलेट.
सोनू निगम के नशे में और श्रेया की खुमारी में इस गीत को सुनना बस इतना ही है जितना किसी कस्बे की टापरी में देसी चाय पीते हुए रूकती-बरसती बारिश को देखना.
ये कोई माइल स्टोन गीत नहीं है, ये एक तितली है जो कुछ देर गुदगुदाती है हथेली पर और उड़ जाती है.
तुझसे यूं थोड़ा खुल गया हूं मैं
यूं तेरी आँखों में घुल गया हूँ मैं
दिल अब कुछ भी करने को
तैयार हो जाएगा
हंस मत पगली प्यार हो जाएगा…
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