कश्मीर : कुछ अनकही, कुछ अनसुनी बातें

नेपाल में राजशाही ख़त्म होने के बाद प्रजातंत्र आया. डेमोक्रेटिक तरीके से सरकार की स्थापना हुई और शासन चलाने के लिए संविधान बना. नेपाल की मुख्य पार्टियों में नेपाल कांग्रेस, प्रचंड की नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी और बाकी छोटी-छोटी पार्टियां हैं. नेपाल में हिल और तराई क्षेत्र दो मुख्य इलाके हैं.

तराई में रहने वाले मधेशी कहलाते हैं जिनके भारत से अभिन्न सम्बन्ध रहे हैं. मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद नेपाल से भारत के सम्बन्ध बिगड़े. क्योंकि नेपाली सरकार का आरोप था कि नेपाल में चलते मधेशियों के आंदोलन को भारत की मोदी सरकार हवा दे रही है, भड़का रही है. नेपाल की सरकार को झुकाने के लिए अघोषित ब्लॉकेड कर रही है.

सवाल ये है कि मधेशियो का आंदोलन क्या था? वो अपनी ही सरकार के खिलाफ क्यों थे? इतने खिलाफ कि महीनों उन्होंने ब्लॉकेड रखा. अन्न, जल, पेट्रोल, डीज़ल हर चीज़ की किल्लत होने दी.

नेपाल में लोकतंत्र स्थापित के बाद जब संविधान बना तब चुनाव करवा कर सरकार की स्थापना के लिए नेपाल को चुनावी क्षेत्रों में बांटा गया.

उस समय की सरकार में कम्युनिस्ट ज्यादा थे जो पहाड़ी क्षेत्रों से संबंध रखते थे. आबादी ज्यादा तराई इलाकों में थी, जहां मधेशी ज्यादा थे.

लेकिन संसदीय सीटें इस तरह निर्धारित की गईं ताकि हिल रीजन से ज्यादा सांसद चुने जाएँ और तराई इलाकों से कम, ताकि इससे सत्ता में हमेशा पहाड़ी लोगों का वर्चस्व रहे, सरकार उनकी रहे.

और यही नेपाल में अशांति का कारण बना. आज तक असंतोष है और मधेशी आंदोलनरत हैं. कम जनसँख्या, कम इलाका होते हुए भी नेपाल में एक वर्ग ने सत्ता पर पकड़ हासिल कर ली.

क्या पहले भी ऐसा हुआ है कभी. जब ऐसी ही किसी तरकीब से किसी वर्ग ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत की हो?

इस लेख के साथ लगी तस्वीर देखिये. ये नक्शा जम्मू कश्मीर का है. कुल इलाका 2 लाख वर्ग किलोमीटर. जिसमे करीब 1 लाख भारत के पास है, 78 हजार पाकिस्तान के पास और शेष चीन के पास.

भारतीय जम्मू कश्मीर प्रदेश के तीन रीजन हैं. लद्दाख जो सबसे बड़ा डिवीज़न है, जिसमें दो जिले हैं. ये बौद्ध बहुल इलाका है.

जम्मू दूसरा बड़ा डिवीज़न जिसमें दस जिले हैं, ये हिन्दू बहुल है और कुछ जिले मुस्लिम बहुल.

कश्मीर, जिसका कुल एरिया 15 हजार किलोमीटर है, में दस जिले हैं और मुस्लिम प्रधान है. कश्मीर का कुल एरिया लद्दाख के कारगिल जिले के बराबर है और लेह जिला कश्मीर एरिया का तिगुना है.

अब तमाशा देखिए… जम्मू एरिया से कुल 37 विधायक चुने जाते हैं. लद्दाख से 4 और कश्मीर से 46… यानी कुल 87 विधायकों में 46 विधायक कश्मीर से. प्रदेश के सबसे छोटे इलाके से.

फिर अचरज की क्या बात कि जम्मू कश्मीर को हम कश्मीरी राजनीति से ही जानते हैं. महबूबा मुफ़्ती, अब्दुल्ला बाप-बेटा, गुलाम नबी आज़ाद. यही जम्मू कश्मीर का प्रतिनिधित्व करते हैं.

जम्मू कश्मीर की कुल आबादी में 68% मुस्लिम हैं. और इसीलिए गुलाम नबी आज़ाद ने पिछले चुनाव में कहा था कि जम्मू कश्मीर में कोई मुख्यमंत्री बनेगा तो वो मुस्लिम ही होगा.

लेकिन क्या आबादी में बहुलता ही सब कुछ है?

क्षेत्र छोटा-बड़ा होना महत्वपूर्ण नहीं है?

लद्दाख के हिस्से में 4 विधायक संतोषजनक हैं. जिनमें एक विधायक का एरिया 35 हजार वर्ग किलोमीटर हैं. कश्मीर का ढाई गुना. क्या ये न्यायोचित है?

और प्रदेशों में आबादी कम होते हुए भी ज्यादा सीटें नहीं हैं? प्रदेश की राजनीति, सत्ता पर अपनी पकड़ बनाये रखने का ये बेहद आसान तरीका है.

कब-कैसे ये विधानसभा सीटें निश्चित हुईं? किसने किया, किसने साज़िश रची, मालूम नहीं?

कश्मीर को लेकर फैली तमाम उत्तेजना में कुछ सवाल कभी नहीं पूछे गए. लेकिन अब वो सवाल सामने आएंगे ज़रूर.

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  1. चूँकि सम्पूर्ण भारत में लोकसभा /विधानसभा क्षेत्र जनसँख्या के अनुसार निर्धारित होते हैं ।जम्मू कश्मीर के लिए अलग तरीका इस्तेमाल करना था तो शुरू से ही करना था ।

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