भारत विकल्पहीन कभी नहीं रहा है, आगे भी नहीं रहेगा

भारत में ‘विकल्प कौन’ का पहला प्रश्न तब खड़ा हुआ था जब राजा वेन निरंकुश हो गये थे. फिर सिकंदर के आक्रमण और मगध के विशाल साम्राज्य पर बैठे महापद्म नन्द की निष्क्रियता के समय भी भारत शंकित था कि विकल्प कौन है? विकल्पहीनता का ये संकट तब भी था जब मिनियांडर की सेना मगध के विशाल साम्राज्य को रौंदने आ चुकी थी और देश इस चिंता में था कि यवनों का पराभव इस दुर्बल राजा बृहद्रथ से तो होगा नहीं तो फिर विकल्प कौन है?

ग्रीकों के उन्मूलन के बाद जब भारत की ओर शक चढ़ दौड़े थे और उनके अश्व लगभग सम्पूर्ण उत्तर भारत के आंगन में बंधने लगे थे, विकल्पहीनता का प्रश्न भारत के सामने तब भी बना हुआ था. जिन हूणों के आतंक से चीन भी सहमा हुआ था वो भी जब हमारे समूल नाश के लिये जब यहाँ आ गये थे तब भी इसी विकल्पहीनता का संकट था. ये संकट तब भी था जब यूसुफ़ बिन हज्ज़ाज के द्वारा भेजे अरब से निकले टिड्डी जिहादी दल यहाँ आये थे.

‘विकल्प कौन’ के इस प्रश्न से भारत को एक नहीं सैकड़ों बार जूझना पड़ा है और हर बार विधाता ने इस देव-भूमि और हिन्दू जाति के रक्षण के लिये संकट काल में विकल्प उपलब्ध कराये हैं.

वेन के विकल्प रूप में ऋषिगण पृथु को लाये थे, सिकंदर से आक्रमण से सहमे भारत को विधाता ने विकल्प रूप में एक सामान्य कुल में जन्मे युवक चन्द्रगुप्त को भेज दिया था जिसको सम्राट बनने तक कोई जानता तक नहीं था. नियति ने मिनियांडर को पराभूत करने पुष्यमित्र शुंग को भेजा तो उनके बाद विकल्प तलाश रहे भारत को सम्राट विक्रमादित्य मिले जिनसे अधिक गौरवान्वित भारत को पिछले पांच हज़ार सालों में किसी ने नहीं किया.

सन 2000 के बाद के कुछ सालों को छोड़कर लगभग दस साल विधाता ने हिन्दू समाज की कड़ी परीक्षा ली, हम अपने देश में दोयम दर्जे के नागरिक हो गये थे, बुढ़ाये और थके नेतृत्व से उकता चुके भारत ने तो विकल्प की आस ही छोड़ दी थे तब विधाता ने भारत को ‘नरेंद्र’ दिया था जिसने समाज और राष्ट्र में एक नई आशा और शक्ति का संचार किया था.

परन्तु अब जब वही संकट हमारे सामने है तब ये प्रश्न उठाये जा रहे हैं कि इनसे खुश नहीं हो तो विकल्प बताओ तो भैया, मेरा भारत विकल्पहीन कभी भी नहीं रहा है, हर आपत्ति काल में जब हम विकल्प के लिये राजघरानों का मुंह देख रहे होते थे तब प्रकृति किसी गरीब की कुटिया में हमारे लिये विकल्प बनाकर चन्द्रगुप्त को पाल रहा था और इन तमाम संकटकालों में हमें जो विकल्प मिले उनसे भारत हमेशा गौरवान्वित ही रहा है.

प्रश्न जब धर्म और राष्ट्र का हो, उससे भी बढ़कर आने वाली पीढ़ी की सुरक्षा और सम्मान का हो तो कम से कम हमसे ‘विकल्प कौन है’ का भोंडा सवाल मत पूछो.

भारत विकल्पहीन कभी नहीं रहा है, आगे भी नहीं रहेगा… ‘वयम अमृतस्य पुत्रा:’ केवल कहने के लिये थोड़े है.

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