उदयन : Dare We Look Up

ग्राम-स्वराज के साथ ही भारत में ‘खादी’ की बात शुरू हुई थी. इसका मकसद था कि प्राकृतिक उत्पादों को गाँव के लोग स्वयं ही गाँव के लिए बना लें और उन्हें गाँव के बाहर से खरीदारी कम करनी पड़े. सवाल उठा कि ऐसे में जो माल ज्यादा होगा, गाँव में खपत नहीं हो पाई उसका क्या होगा ? यहीं से ‘खादी’ का जन्म हुआ. जो भी गाँव की जरुरत से ज्यादा तैयार माल होगा उन्हें इकट्ठा कर के बेचने के लिए एक ब्रांड था खादी.

खादी के साथ आत्मसंतुष्टि जुड़ी होती है. खरीदार को पक्का पता होता है कि उसने किसी का हक़ नहीं मारा. सड़क के किनारे गुब्बारे बेचते बच्चे से जब आप एक गुब्बारा खरीदते हैं तो आप भी ये जानते हैं कि उस बच्चे का खुद भी उन गुब्बारों से खेलने का मन होता होगा. जो वक्त वो गुब्बारे बेचने में लगा रहा है वो समय उसे स्कूल में देना चाहिए था. प्रत्यक्ष तो नहीं लेकिन परोक्ष रूप से गुब्बारा खरीदना एक बच्चे का शोषण ही होता है.

कुछ साल पहले ऐसी ही भावनाओं के साथ उदयन शुरू हुआ था. इरादा था कि गाँव के ऐसे महादलित समुदाय ‘मुसहर’ बच्चे एक ऐसे गाँव के ही स्कूल में जा सके जहाँ उन्हें उचित शिक्षा के साथ साथ भोजन-शौच जैसी चीज़ें भी सिखाई जाएँ. इस अभियान से कई लोग सोशल मीडिया के ही जरिये जुड़ते गए. आज अजित सिंह जी का उदयन इस स्थिति में है कि हाल में ही दूरदर्शन के पत्रकार इस क्राउड फंडिंग से चलने वाली संस्था पर भी एक एपिसोड बनाने आ पहुंचे. ‘उदयन’ किसी सरकारी या नेताजी के फण्ड से नहीं बल्कि जनता की मेहनत की कमाई से चलता है.

पैसे की बात से याद आता है कि खादी के साथ ही जुड़ी होती है ‘उचित मूल्य देकर’ की भावना. यानि जो भी आपने ख़रीदा है उसके बिलकुल सही सही कीमत चुकाई हो, कामगार के साथ किसी तरह का शोषण ना किया गया हो, ना ख़रीदार को लूटने की कोशिश व्यापारी ने की हो तभी वो वस्तु ‘खादी’ की हो सकती है. ‘उदयन’ के पैसे की बात चलने पर हम भी पैसे की बात करते हिचक जाते हैं. कारण ये होता है कि ज्यादातर लोग जिन्होंने एक दो बच्चों को गोद ले रखा है वो किसी भी किस्म के प्रचार से दूर रहने वाले लोग हैं.

इसके वाबजूद भी हम कुछ लोगों का नाम लिए बिना नहीं रह पाते. जैसे कि ये जो पेंटिंग है इसे चम्पा श्रीनिवास जी ने बनाया है. करीब चार साल पहले जब उज्जवल पाण्डेय उदयन गए थे तो उन्होंने एक तस्वीर अपने कैमरे से ली थी, ये उसी पर आधारित है. ‘Dare We Look Up’ नाम से बनाई इस पेंटिंग के जरिये वो अमेरिकी संस्था ‘युगेन’ की मदद से ‘उदयन’ का काम दुनिया के सामने ला रही हैं. वो कई बार अलग से ऐसी पेंटिंग्स बनाती हैं जिनकी कीमत से ‘उदयन’ के बच्चों की पढ़ाई चलती है.

ऐसा भी नहीं है कि वो अकेली ऐसे प्रयासों में जुटी हैं. एक हैं Manish Shrivastava जिन्होंने ‘रूही’ नाम की किताब हाल में ही लिख डाली है. किताब अमेज़न पर 96 रुपये में उपलब्ध है (http://amzn.to/2uIuRWC) और इसका पैसा उन्होंने पहले ही ‘उदयन’ के नाम कर डाला है. जो गाँधी का उचित मूल्य देकर, गाँव के लिए, गाँव में ही के सपने थे, वो ऐसे ही प्रयासों में साकार होते दिखते हैं. बाकी जो गांधीवाद के नाम की भाषणबाजी है, वो भी है ही.

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