सामान्य भौतिकी है कि किसी भी पिंड की स्थिति का समय के सापेक्ष परिवर्तन गति कहलाती है. अब आपने स्थिति की तरह पिंड की गति में भी परिवर्तन देखा होगा ??
जो कारक गति को परिवर्तन प्रदान करता है समय के सापेक्ष उसे त्वरण कहते है (acceleration). इसका कर्ता होता है बल, अन्यथा हर वस्तु जो गतिशील है वह गतिशील बने रहना चाहती है और स्थिर वस्तु स्थिर जिसे जड़त्व (inertia) कहते है.
अब जब बल लगता है तो दो बातें होती है, एक तो नियंत्रित बल जो समान मात्रा में लगता है वह सतत समान (constant ) त्वरण उत्पन्न करता है, दूसरा जब अनियंत्रित बल जब असमान परिमाप में लगता है फिर वह चाहे किसी पैटर्न में हो या रैंडम, वह असमान त्वरण उत्पन्न करता है. जिसके किसी विशेष हिस्से को, ‘जब अत्यंत कम समय में बहुत अधिक मात्रा में त्वरण के परिमाप में अंतर आता है अचानक तो इसे जर्क कहते है माने ” झटका “.
अब देखिए पहाड़ों पर चढ़ती हुई बस में जी क्यों घबराता है उसे समझिये, पहला यह जर्क जो झटका है, अब झटके (शॉक) से तो इंसान हमेशा से घबराता है. हमारे संतुलन और आपेक्षिक स्थिति में अचानक हुए तीव्र परिवर्तन की सूचना मस्तिष्क में पंहुचाने वाली नर्व ही इसे execute करती है ताकि शरीर तक खतरे अथवा उस असहज स्थिति से निकलने का प्रयास किया जाए. ऐसे में शरीर को मिलने वाले संकेतो में से एक है धड़कनों की गति, आवृति और स्पंदन की प्रकृति जिसकी वजह से आपको जी घबराने का अनुभव होता है.
अब दूसरा, मानव शरीर को सबसे सुगम है सरल रेखा में गति एकविमिय गति बिल्कुल सीधी रेखा में. उसे कुछ असहज होती है द्विमिय गति जैसे आप का वृत्ताकार पथ पर गति करना जिसमें भी थोड़ी सी भी गति में तीव्रता से आपको चक्कर आने लगते हैं.
सबसे असहज है त्रिविमीय गति ( three-dimensional motion ). जैसे एक कुण्डलीबद्ध सर्पाकार पहाड़ी सड़क पर गति करना. यह आपको सबसे ज्यादा प्रभावित करती है क्योंकि आपकी स्थिति में परिवर्तन अंतिम उपलब्ध स्थिति के सापेक्ष तीनो आयामो में होता है. यह अधिक महत्वपूर्ण है आपके जी घबराने को लेकर. इसे आप 3D रोलर कोस्टर की सवारी से भी समझ सकते हैं और अनुभव कर सकते हैं कि यह नए व्यक्ति (अनुभवहीन) के लिए क्यों अधिक भयभीत कर देने वाला होता है.
तीसरा कारण है, एकाधिक बलों का समेकित प्रभाव.
उपरोक्त सभी चर्चा लगभग अंतरिक्ष में स्वतंत्र एवं आदर्श परिस्थितियों में अवलंबित सी है जबकि धरती पर गति और क्लिष्ट हो जाती है जब पिंड और मुख्य संचालक बल के अलावा और भी कई सक्षम बल पिंड को प्रभावित करने लगते है. जैसे विषमतल (उतार-चढ़ाव) पर गुरुत्वाकर्षण. सामान्य घर्षण. वायु से उत्पन्न घर्षण आदि.
पहाड़ पर घूमते हुए चढ़ती बस में इन सभी बलों के साथ ही अपकेंद्री बल भी जुड़ जाता है. वही जो वृत्ताकार गति करते हुए पिंड को बाहर की ओर धकेलता है.
ऐसे में अलग अलग दिशाओं से अलग अलग समीकरणों से लगते ये बल उस गति को और क्लिष्ट बना देते है जिससे जर्क की आवृत्ति और इंटेंसिटी और अधिक मात्रा में बढ़ जाती है.
इसी के साथ एक और मुख्य कारक है उनके पहाड़ी इलाको में जो “altitude सिकनेस”. अधिक ऊंचाई पर प्राणवायु ऑक्सीजन विरल हो जाती है जिससे श्वसन में भी कष्ट उत्पन्न होने लगता है जो कि ऐसी घटनाओं की तीव्रता को अत्यधिक मात्रा में बढ़ा देता है.
अब जब वह विशिष्ट नर्व मस्तिष्क से ऐसे सभी संकेत लेकर लौटती है तो जी घबराने की वैज्ञानिक घटना होती है जो कई अन्य कारणों के चलते वमन तक भी जा पहुंचती है.
(सैद्धान्तिक रुप से भी, स्थिर से गतिशीलता एवं गतिशीलता से स्थिरता का कोई भी प्रयास बिना non uniform acceleration के संभव ही नही है.)
अब समझिये कि आपको यह विज्ञान इतने सरल रूप में क्यों समझाया गया है?
वस्तुतः यह बस है हमारी अर्थव्यवस्था,
इस बस के वर्तमान संचालक ठेकेदार है प्रधानमंत्री जी,
ड्राइवर/चालक है वित्तमंत्री अरुण जेटली,
सहचालक / कन्डक्टर है ब्यूरोक्रेसी और अफसरशाह,
यात्री है व्यापारी एवं वस्तु उत्पादक (मेन्युफेक्टरर),
ऊंचाइयां है विकास की,
घर्षण है भ्रष्टाचार,
अन्य राष्ट्रों से प्रतिष्पर्धा है अपकेंद्री बल
और यह जर्क /झटका हैं GST.
निश्चित रूप से ये विकास की ऊंचाईयों की तरफ बढ़ने का प्रयास है लेकिन निसंदेह प्रारंभ में उतना ही जटिल है जितना मैंने ऊपर वर्णन किया हैं, अन्य सभी उपरोक्त कारकों की उपस्थिति में बस के अंदर बैठे यात्रियों का जी घबराना पूर्णतः प्राकृतिक है और अपेक्षित भी. इस पर तुर्रा यह कि इस परिस्तिथि में यात्रियों को एक एक मटका सर पर रखना है जिससे जल छलकना नहीं चाहिए, यदि छलका तो पेनाल्टी भरने का भय अलग से है.
स्वयं चालक अभी तक अपने अनुभवी होने और दूरदर्शक होने का कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर पाया है कि वह अपनी कुशलता से इन झटकों से बचाते हुए स्मूथली ड्राइव कर सकेगा. पिछली बार की यात्रा (नोटबन्दी ) के दौरान इन्होंने बस कैसे चलाई थी गियर बदल बदल के इससे सभी परिचित है.
सहचालक को ऐसी परिस्थितियों में परेशान यात्रियों से धन निकलवाने में महारथ हासिल है, इस बार भी वह हमेशा की तरह बेलगाम है.
भ्रष्टाचार बिल्कुल पृथ्वी पर गति के साथ अपरिहार्य हो चुका है और अभी दिन दूनी रात चौगुनी की दर से वृद्धि कर रहा है.
ऐसे में जो लोग व्यापारियों को चोर. बेईमान बता रहे हैं वे साक्षात वज्रलेप हैं. इस समय उन्हें आपके सकारात्मक आश्वासन की आवश्यकता है कि भाई सब कुछ ठीक हो जाएगा थोड़ा प्रतीक्षा कीजिये. ऐसा इस तरह की यात्रा में होता ही है. आप अपवाद नही हैं थोड़ा गहरी गहरी श्वास लीजिये. यह निम्बू सूंघीये /पीजिये. विकास की इन दिलकश चोटियों से दिखने वाले सुंदर दृश्य के बारे में सोचिये.
ऐसी बाते /प्रयास ही यात्री को जी घबराने से बचा सकते है जो कि GST पर होने वाले वर्कशॉप वगेरह द्वारा किये जा रहे है.
ये देश ये धर्म पहले ही कई फिरको में बंटा पड़ा है ऐसे में व्यापारी बनाम नौकरीपेशा का एक और फिरका पैदा ना कीजिये की अगली बार हम चाहकर भी कभी साथ साथ बस लूटने वाले लुटेरों से लड़ ही ना पाये.
घटनाओं को सहजता से ले. त्वरित प्रतिक्रियाएं हर बार उचित परिणाम नहीं देती, थोड़ा संयम रखें और सहयात्रियों को सहायता दे इस कष्टकारक समय से बाहर निकलने में.
कई जगह विरोध प्रदर्शन एवं बंद वगैरह हो रहे हैं. ये वे यात्री है जिनका मन बहुत ज्यादा व्याकुल है. जिन्हें यात्रा ही खतरनाक लग रही है उन्हें संवाद और सुधारों की औषधि की आवश्यकता है जो एक संवेदनशील ठेकेदार की जिम्मेदारी है अन्यथा वमन (अनिश्चितकालीन हड़तालें ) का खतरा है जो बस की गति को और झटके देगा.
ये फेसबुक पर, ” कुछ नहीं है. कुछ नहीं है (दरवाजे पर कोई सूत्र नहीं है ) कहकर यात्रियों का मजाक उड़ाने वाले उसी चौकीदार की तरह है जो थ्री इडियट फ़िल्म में बस एक ही मंत्र जपता रहता था.
All is well
All is well
All is well
जपिये यह मंत्र अच्छा है लेकिन कबूतर की तरह बिल्ली को देख आंख मूंदकर नहीं, बल्कि स्थितियों को समझकर तर्कसहित, जानकारी सहित किसी के हृदय को स्थिर करने के उद्देश्य से कहिये, तब अच्छा लगेगा.
यात्रियों को भी अच्छी तरह से पता है कि संचालक /ठेकेदार को उनसे प्राप्त इस यात्रा भार से ही वर्ल्ड बैंक की किश्ते और वर्ल्ड ट्रेड संघ की शर्तें चुकानी है जिसके पास यह “बस” पूर्व में की गई विकास यात्रा के कर्ज तले गिरवी हुई है.