वैश्विक जगत की राजनीति और उसमें उपयोग हो रही कूटनीति को पढ़ने और समझने जहाँ बुद्धिजीवियों को नई-नई धाराएं निकालने का मौका देती है, वहीं पर मुझे यह सब बेहद उत्तेजक लगता है. भारत में कई वर्षो से यह एक परिपाटी रही है कि भारत के गणतंत्र दिवस के अवसर पर विदेशी राष्ट्राध्यक्ष को मेहमान के तौर बुलाया जाता है. भारत जिस राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष को बुलाता है वह जहाँ भारत की विदेश नीति का परिचायक होता है, वहीं शेष विश्व को संदेश देने के लिए भी इसका उपयोग भी किया जाता है.
जब से मोदी जी भारत के प्रधानमंत्री बने हैं तब से 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर आमंत्रित किये गये राष्ट्राध्यक्षों की उपस्थिति द्वारा शेष विश्व को, भारत की विदेश नीति और उसमें इस्तेमाल की जा रही कूटनीति को संकेतों से समझाने के कारण विशेष रही है.
वह चाहे 2015 में चाहे अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा रहे हो, 2016 में फ्रांस के राष्ट्रपति होलाण्डो रहे हो या फिर 2017 में यूएई के राजकुमार रहे हो, यह सब भारत की विदेश नीति और कूटनीति के हिस्सा रहे है. मोदी जी के इज़राइल दौरे के बाद से ही यह अनुमान लगाया जा रहा था कि हो सकता है 2018 में इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को इस बार भारत आमंत्रित करेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ है.
इस बार भारत ने 2018 के गणतंत्र दिवस पर जो आमंत्रण भेजा है उसने मुझे चौंका दिया है. इस बार भारत ने एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे दस राष्ट्रों को आमंत्रित किया है. दरअसल यह सारे राष्ट्र आसियान (दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन) ASEAN के सदस्य है.
यह सारे छोटे राष्ट्र वह देश हैं जिन्होंने यह संगठन इस लिए बनाया है कि आपसी सहयोग से अपनी अंखडता बनाये रखते हुए आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की जाये. इसका पहला ही उद्देश्य सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को कायम रखना है.
इस संगठन के सदस्य राष्ट्र जिनको आमंत्रित किया गया है वह है इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, और वियतनाम. यह सारे ही वे देश हैं जिनकी या तो चीन के साथ सीमा लगी हुयी है या फिर जिनका साउथ चीन सागर में चीन की घुसपैठ को लेकर विवाद है या जो चीन की विस्तारवादी नीति को लेकर सशंकित है.
इन 10 राष्ट्रों को एक साथ आमंत्रित कर के चीनी कूटनीति की ‘कैरट एंड स्टिक’ नीति को, मोदी सरकार ने वजीर को प्यादे से पिटवा कर, प्रतिद्वंदी को शह और मात देने की नीति से जवाब दिया है. यह आमंत्रण, दक्षिण पूर्वी एशिया के राष्ट्रों में, सिर्फ और सिर्फ चीन की आधिपत्य की लालसा और विस्तारवादी नीति को लेकर उठी आशंकाओं का सामना करने में सहयोग और ऐसी किसी भी कोशिश के खिलाफ, आर्थिक व सामरिक गठजोड़ की संभावना को तलाशना भी है.
मैं आज मोदी जी की विदेश नीति का कायल हो गया हूँ क्यूंकि चीन के खिलाफ बिना ऊँची आवाज किये यह व्यूहरचना बड़ी चातुर्यपूर्ण है. अब देखना यह है कि चीन अपना छद्म संयम कब तक सहेज के रखता है.