गुजरात में पटेलों की जनसंख्या कितनी हैं? 15% है कुल आबादी के, लेकिन गुजरात में इनकी पैठ और हैसियत से सब वाकिफ है. देश के 15% और गुजरात के 70% बिजनेस पर पटेलों का कब्जा है. टेक्सटाइल, मेडिकल, डायमंड, एजुकेशन, कृषि में भी इनकी ही तूती बोलती है. पोलिटिकल रूप से सबसे सशक्त भी पटेल ही हैं. लॉ-मेकर्स में पटेल्स निर्णायक होते हैं. अतिश्योक्ति नहीं कि पटेलों के दम पर गुजरात खड़ा है.
अब आते है झारखण्ड पर…
यहाँ अलग-अलग ट्राइब्स हैं. मसलन संथाल, मुंडा, हो, उराँव, खड़िया आदि आदि. और सभी आदिवासी समुदाय मिलकर झारखण्ड की 24-25% आबादी को कवर करते हैं. लेकिन कुड़मी/ कुर्मी महतो झारखण्ड की एकल आबादी है जो सबसे ज्यादा है.
टोटल आबादी का 25% हिस्सा कुड़मी/ कुर्मी महतो की हैं. जमीन भी कम न है. एक तरह से झारखण्ड के भूमिहार कुड़मी ही है. झारखण्ड आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले बिनोद बिहारी महतो कुड़मी समुदाय से ही, लेकिन हमारी झारखण्ड में हैसियत?
ईसाई मिशनरीज़ के फंदे में फंसे विभिन्न आदिवासी समुदाय… लेकिन कुड़मी/ कुर्मी उधर हुलकने भी न गए. आज जो आदिवासी तड़क-भड़क और रौनक दिखाई देती हैं उनमें 90% से ज्यादा तो कन्वर्टेड लोग हैं. बाकि सब वैसे ही हालत में हैं. नौकरियों पर इन्हीं लोगों का दबदबा हैं…
झारखण्ड नाम बोल देने से 24% आदिवासी ही उभर कर सामने आते हैं… लेकिन महतो लोग पता नहीं कहाँ गायब हो जाते है. सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक हम 1950 तक ST (अनुसूचित जनजाति) में सूचीबद्ध थे… फिर हमें ओबीसी में डाल दिया गया.
उसके बाद से ही छोटी-मोटी आवाज़ उठती रही हैं ST में पुनः सूचीबद्ध करने हेतु… लेकिन शामिल न करवाने का ये हवाला दिया जाता कि कुड़मी/ कुर्मी लोग ST की अर्हता को पूरा नहीं करते, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कुड़मी बहुत सक्षम हैं.
सरकारी बात ही माने सच्चाई भी है कि चलो हम सक्षम है… पढ़े-लिखे हैं, जमीनें हैं… लेकिन हमारी हैसियत क्या है झारखण्ड में? हमारे कितने स्कूल कॉलेज हैं? स्कूल कॉलेज पर तो मिशनरियों ने कब्जा कर रखा है.
हमारे कितने बिज़नेस हैं? हम अपनी जमीनों पर कितनी कृषि कर रहे हैं? हमारी राजनीति में क्या हैसियत हैं? हमारे कितने विधायक/ लॉ-मेकर्स हैं? हमारे कितने ब्यूरोक्रेट्स हैं? जब आपके पास सब कुछ है… आबादी है, रुतबा है, ज़मीन है, दिमाग है तो फिर पीछे क्यों हो?
क्या तुम झारखंड के ‘पटेल’ नहीं बन सकते हो? जरा विचारियेगा.