39 ways to serve and participate in Jihad और 44 ways to support Jihad ये किताबें पढ़ी हैं आप ने? 39 ways… मुहम्मद बिन अस सलीम की लिखी हैं, वे एक सऊदी strategist थे. 44 ways… अनवर अल औलकी की है, ड्रोन अटैक में उनका सफाया किया गया था.
दोनों किताबें लगभग समान है. नेट पर मुफ्त मिलती हैं. 39 ways… की भाषा जरा क्लिष्ट है क्योंकि अरबी से इंग्लिश अनुवाद हुआ है. 44 ways… के लेखक अनवर अल औलकी को इंग्लिश पर अच्छा प्रभुत्व था और वे इंग्लिश भाषी लेकिन मुस्लिम मूल के अमेरिका और इंग्लैंड के मुसलमानों को radicalize कर रहे थे. स्वाभाविक है कि उनकी भाषा सरल है और वे बात-बात में अरबी संदर्भ देना टाल जाते हैं – अपना ऑडियन्स उन्हें पता है. उसके हिसाब से ही लिख रहे हैं.
दोनों किताबों की index दे रहा हूँ. आप को समझ आयेगा किस तरह से जिहादियों को प्रेरित किया जाता है. इतना ही नहीं, लेकिन उसके मरने के बाद उसके परिवार को किस तरह से समाज की जिम्मेदारी समझ कर संभाला जाता है, इज्जत दी जाती है यह सब देखने लायक है.
औलकी के किताब की प्रस्तावना का अनुवाद दे रहा हूँ. बस इतना बताइये, क्या हम बिना अर्थव्यवस्था के इस सिस्टम का मुक़ाबला कर सकते हैं? क्या एक अर्थव्यवस्था आवश्यक नहीं है?
——- अनुवाद पेश है ——-
जिहाद से बड़ा कोई काम नहीं है इस्लाम में और उम्मत का उद्धार जिहाद करने में ही है. आज जब मुसलमानों की ज़मीनें काफिरों से कब्जाई गई हैं, और जुल्मी हुक्मरानों के जेल मुसलमान युद्ध कैदियों से ठसाठस भरे हैं, जब अल्लाह का शासन विश्व से गायब है और उसे उखाड़ने के लिए इस्लाम पर हमले हो रहे हैं, ऐसे में जिहाद करना हर मुसलमान का कर्तव्य बन जाता है. माँ-बाप मना करें तो भी बच्चों को भी जिहाद करना चाहिए, पति मना कर दे तो भी पत्नी को जिहाद करना चाहिए और देनदार ने मना किया तो भी कर्जदार को जिहाद करना चाहिए.
(इस्लाम में संतान के लिए माँ-बाप की आज्ञा, पत्नी के लिए पति की आज्ञा और कर्जदार के लिए देनदार की आज्ञा का बहुत महत्व है और उनकी अवज्ञा गुनाह माना जाता है. जन्नत खतरे में पड़ जाती है और जहन्नुम की गैरंटी हो जाती है. लेकिन जिहाद के मार्ग में ये आड़े आयें तो इन तीनों की आज्ञा तोड़ने से भी पाप नहीं लगता यह मनोवैज्ञानिक पैंतरा समझ लेना चाहिए).
प्यारे भाइयो और बहनों, मुद्दा यह है कि आज हमारा शत्रु ना ही कोई देश है या कोई समुदाय. आज हमारा शत्रु है कुफ़्र का एक सिस्टम, जिस की पहुँच वैश्विक है. आज कुफ़्फ़ार हमारे विरोध में ऐसे षडयंत्र रच रहे हैं जैसे पहले कभी नहीं हुआ था. क्या हम उसी रोमन और मुस्लिमों के बीच उस महायुद्ध की तरफ जा रहे हैं, जिसका उल्लेख पैगंबर ने किया था?
इस मुद्दे पर दुबारा ज़ोर दे रहा हूँ : आज हर सक्षम मुसलमान के लिए जिहाद कर्तव्य है. इसलिए अल्लाह की मर्जी पाने को इच्छुक एक मुसलमान होने से आप का कर्तव्य बनाता है कि आप जिहाद करने के या जिहाद की सहायता करने के तरीके खोजें. यहाँ 44 तरीके दिये जा रहे हैं जो हमारे भाइयों और बहनों को जिहाद फी सबील्लिल्लाह की मदद करने में काम आएंगे.
——- अनुवाद समाप्त ——-
अखलाख का वध करने वालों का क्या हश्र हुआ सब जानते हैं. उनके परिजनों को मदद करने के लिए तुफ़ैल चतुर्वेदी ने क्या कष्ट उठाए यह भी कोई राज नहीं. उनकी राह में क्या रोड़े डाले गए और वे भी अपनों द्वारा, यह भी एक दु:खपूर्ण याद है.
हिन्दू कायर नहीं, लेकिन कायरों से हारा ज़रूर है. कभी-कभी तो यूं लगता है कि मोदी जी की आधी एनर्जी तो आंतरिक विरोधियों से लड़ते ही खप जाती होगी.
सहमत हैं तो इसे शेयर अवश्य करें ताकि दूसरों को भी सच्चाई क्या है यह समझ में आए. आप के कमेंट्स का भी स्वागत है.
और हाँ, कुछ महत्व की बातें – इन किताबों का उर्दू में अनुवाद हुआ हो तो मुझे पता नहीं, लेकिन क्या आप को लगता है नहीं हुआ होगा आज तक? मतलब जो और जिस हिसाब से ISIS को जॉइन करने जा रहे हैं उनको किस दर्जे का मोटिवेशन मिल रहा है यह देखिये.
क्या आप ने इनके विरोध में किसी मुसलमान को सार्वजनिक मंच से आवाज बुलंद करते देखा है? क्या मीडिया ने इनके बारे में लिखा है? क्या मीडिया में लिखने वाले मुस्लिम पत्रकार कभी इन किताबों के बारे में बात करते दिखे हैं? क्या उन्हें पता नहीं होगा अगर ये उर्दू में मिलती हैं तो?
क्या ये बातें करना, ये सवाल उठाना नफरत – HATE है?