इरफ़ान खान की बेहतरीन फ़िल्म ‘हिंदी मीडियम’ मैंने अब तक नहीं देखी और न समीक्षा लिखी. कारण साफ़ है कि इस प्रेरक फ़िल्म में एक पाकिस्तानी सबा कमर ने काम किया था. ये बात और है कि फ़िल्म की प्रशंसा करने वालों में अपने कई राष्ट्रवादी मित्र भी थे. आज आने वाली फ़िल्म ‘मॉम’ में भी एक पाकिस्तानी कलाकार सजल अली काम कर रही है.
अब थोड़ा पीछे चलते हैं. 2016 में उरी हमला याद होगा. इसके बाद राष्ट्रवादी मेढकों की टर्र-टर्र से भारत गूंज उठा था. पाकिस्तानी कलाकार वापस चले गए थे. आतिफ असलम ने उस देश को गालियां दी, जिसके भरोसे वो दुनिया में उड़ता-फिरता था. लेकिन क्या है कि भारतीय राष्ट्रवाद सहूलियत के हिसाब से किया जाता है. पड़ोसी भिखमंगों को फिर काम मिलने लगा है. और जब सोनू निगम और अभिजीत इस बात का विरोध करें कि उन्हें काम नहीं मिलता तो हम ही कहने लगते हैं कि सोनू और अभिजीत को भाजपा का टिकट चाहिए इसलिए बवाल काट रहे हैं.
आज तक किसी भी शहर में कांग्रेस ने आतिफ असलम और वीना मलिक के खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं किया. विरोध नहीं किया यानि ये कलाकारों के समर्थन में रहे. यही हाल भाजपा की सांस्कृतिक विंग का रहा. मॉम का कोई विरोध होता दिख नहीं रहा और हिंदी मीडियम की रिलीज के वक्त ‘कमलधारी’ सोए पड़े थे. बहरहाल कांग्रेस ने मधुर भंडारकर के चेहरे पर कालिख पोतने वाले को एक लाख देने का एलान किया है. आक्रोश अपनी नेता की छवि को लेकर है लेकिन अपने देश की इज़्ज़त की कोई चिंता नहीं.
वीना मलिक को बॉलीवुड ने रहने को छत दी. कई फिल्मों में काम दिया. उस निम्न स्तर की अभिनेत्री की पहचान बनाई. आज उसने अहसान का बदला चुकाते हुए कहा कि भारत ने हज़ारो कश्मीरियों का कत्ल किया. भारत और इज़राइल शैतान मुल्क है.
तो भैया ये सहूलियत का राष्ट्रवाद बंद करो. अब क्यों चुप हो जब पाकिस्तानियों को फिर काम मिलने लगा है. दुश्मन देश के कलाकारों को काम दो. दुश्मन देश के क्रिकेट संगठन को आर्थिक मदद देने के लिए उसके खिलाफ जानबूझकर हार जाओ. मैं पूछता हूँ ज्यादा दुश्मन देश के भीतर है कि बाहर.