तब आप करने लगते हैं संभोग में समाधि की जगह राजनीति

जब आपकी ज़िंदगी में सेक्युलर अंधेरा छाता है, तो आप चरम एकांतिक क्षणों को भी बाज़ारू और भड़काऊ बना देते हैं, संभोग में समाधि की जगह राजनीति करने लगते हैं…

आप क्या सीखते हैं, सेकुलर होकर? आप सीखते हैं, अपनी संस्कृति पर शर्मिंदा होना. भीड़ का हिस्सा बन जाना, अपनी पहचान को उसमें मिटा देना, नष्ट होते जाना, अपनी परंपरा, पूर्वजों पर हंसना, उनका मज़ाक बनाना.

आप सीखते हैं कि जेएनयू जैसी जगह में अगर कोई छात्र तिलक लगाकर वर्ग में आ जाए, तो उसे Single out करो, पूरी क्लास में उसे बेइज्ज़त करने की कोशिश करो और कहो- ये देखो, यह है सांप्रदायिक संघी.

आप सेकुलर होते हैं, तो आप अपनी संस्कृति तक को भूल जाते हैं. पिछले 50 वर्षों में भारत के मोहम्मडन इतने अ-भारतीय हो गए, यह हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू के सेकुलरिज्म की देन है. वे अपनी संस्कृति को भूल ऊंचे पांयचे, अद्भुत दाढ़ी, गोल टोपी, चेक वाले अरबी गमछे जैसे कट्टर प्रतीकों को अपनाने लगे, यह सेकुलर देन है.

आप जो यदा-कदा कुछ किस्से सुनते हैं न, फलां जगह मोहम्मडन ने हिंदू रीति-रिवाज से फलां बूढ़ी का अंतिम संस्कार किया, फलां जगह मोहम्मडन ने मंदिर की देखभाल की, ये वही लोग बचे हुए हैं, जो गलती से सेकुलर नहीं हो पाए हैं, जो अब भी अपनी संस्कृति से जुड़े हैं.

ये वही लोग हैं, जो अब भी संबोधन में राम-राम बोलते हैं, अल्लाह-अल्लाह नहीं. ये वही लोग हैं, जो हनुमानजी की ध्वजा भी उतने ही धज से निकालते हैं. दंगल में लड़ते हैं और ये वही हैं जो ज़ाकिर हुसैन बनते हैं, मंच पर चढ़ने से पहले उसे माथे से छूते हैं, गुरु के पैर छूते हैं, सरस्वती वंदना गाते हैं और किसी बेवक़ूफ़ से सर्टिफिकेट लेने नहीं जाते, अपने ईमान और अपने मज़हब का….

यही होता है सेकुलर बनना कि भारत में पुराण, वेद और महाभारत की ऐतिहासिकता तक प्रश्नांकित होती है और इंडोनेशिया सबसे बड़ा मोहम्मडन मुल्क होने के बावजूद अपने एयरपोर्ट पर समुद्र-मंथन के दृश्य को मूर्ति के तौर पर चित्रित करता है… और किसी नामुराद की चिंता नहीं करता.

सेकुलरिज़्म से बचिए, सांस्कृतिक राष्ट्रवादी बनिए… वरना, कुरआन की आयत तो है ही लिटमस-टेस्ट के लिए…

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