आशु उवाच : यशराज की दीवार नहीं, यश और राज के लिए ‘दि’ वॉर

पुलक पिचोरी उर्फ़ पप्पू महाराज और गुलक पिचोरी उर्फ़ गप्पू महाराज दोनों सौतेले भाई थे. इनकी माँ एक थी किंतु पिता अलग-अलग थे. लेकिन इन दोनों के बीच प्रेम सगे भाइयों से भी बढ़कर था. इसका श्रेय इनकी माँ को जाता था वो दोनों से ही बहुत प्यार करती थी.

बचपन में घटी एक ख़तरनाक घटना ने एक जैसे संस्कार मिलने के बाद भी इन दोनों भाइयों की विचारधारा में बड़ा भारी अंतर खड़ा कर दिया था. पप्पू जब छोटे थे तो कुछ जबर लोगों ने ज़बरन पप्पू को पकड़ के उनके हाथ पर मेरा बाप चोर है लिख दिया था, जबकि ऐसा था नहीं. इस अपमान की पीड़ा ने पप्पू के बालमन को आक्रोश से भर दिया जिससे वे बड़े होकर ऐंग्री यंग मैन बन गए. पप्पू इस ज़बरिया चिपकाये गए टेटू को छिपाने के लिए अधिकतर फ़ुल बाँह की शर्ट पहनते थे, तो गप्पू अपने ज़बरदस्त शरीर को दिखाने के लिए हाफ़ आस्तीन के कपड़े धारण करते थे. पप्पू अखाड़ेबाज़ी के उस्ताद थे तो गप्पू आँकड़ेबाज़ी में महारथी थे. एक गणित बनाने में माहिर था तो दूसरे को गणित बिगाड़ने में मास्टरी थी.

पुलक पिचोरी- उर्फ़ पीपी- उर्फ़ पप्पू महाराज- अखाड़ेबाज़ी के कारण भीषणवीर थे, तो गुलक पिचोरी- उर्फ़ जीपी- उर्फ़ गप्पू महाराज- आँकड़ेबाज़ी के कारण भाषणवीर की ख्याति से लब्ध थे.

पप्पू अपनी मम्मी के साथ रोज़ मंदिर जाते लेकिन मंदिर के अंदर नहीं जाते वे सीढ़ीयों पर ही मम्मी का इंतज़ार करते क्योंकि पप्पू नास्तिक थे.

गप्पू आस्तिक थे लेकिन कभी मम्मी के साथ मंदिर नहीं जाते. पप्पू बाग़ी थे तो गप्पू त्यागी थे. इन दोनों बच्चों की अलग-अलग विचारधारा के कारण मम्मी की बड़ी फाँसी थी. वे कभी गप्पू की चिंता से त्रस्त हो जातीं, तो कभी पप्पू की चिंता में पस्त हो जाती.

दोनों ही सिंगल थे, जबकि मम्मी उनको दबल करना चाहतीं थीं. लेकिन दोनों ही बच्चे मुझे बहुमत दीजिए, मुझे बहुमत दीजिए की ज़ोरदार आवाज़ें लगाते हुए मम्मी को केंद्र में रखकर घूमते रहते, जिससे मम्मी कन्फ़्यूज़ होकर बच्चों की बहु मत देने की बात से प्रभावित हो कर उन दोनों को बिना बहु के रहने देतीं.

दोनों बेहद परिश्रमी थे, हमेशा भागते रहते- लेकिन एक समस्या से दूर भागता था तो दूसरा समस्या की ओर भागता था. एक का गोल ( लक्ष्य ) ही बोल था, तो दूसरे का बोल ही गोल था.

पुलक टारगेट पर तीर मारने का अभ्यास करते लेकिन तमाम अभ्यास के बाद भी तीर निशाने पर नहीं लगने से वे उदास रहने लगे, और गुलक टारगेट को भेदने में नहीं, बल्कि अंधाधुँध तीर चलाने में विश्वास करते थे इसलिए जहाँ कहीं भी तीर लगता वे उसे ही टारगेट कहके गोला बना देते, और तालियाँ बजाते हुए ख़ुशी से झूम जाते.

एक ही कोख में पलने के बाद भी पुलक और गुलक के स्वभाव का बड़ा भारी अंतर मम्मी को चिंता में डाले रहता. अपने बच्चों की प्रसन्नता के लिए मम्मी कभी पप्पू को पुचकारती तो कभी गप्पू को दुलारती.

पप्पू के साथ रहने वाली मम्मी आजकल गप्पू के घर अपने मंदिर के साथ रह रहीं थीं. इससे उदास रहने वाले पुलक और उदास हो गए. और एक दिन गुलक के मुँह बोले भाई ने मम्मी के मिज़ाज और उनके उसूलों के विरुद्ध एक वक्तव्य जारी कर दिया जिसकी भनक पड़ते ही पप्पू भड़क गए और फ़ोन लगा दिया गप्पू को की भाईऽऽ रीज़ाइन ( साइन ) करते हो या नहीं?

गप्पू ने कहा उस पुल के नीचे मिलो जहाँ आज से पच्चीस साल पहले हम लोगों ने अपनी ज़िंदगी की शुरूवात की थी.

पप्पू पिन्नाते हुए पहुँच गए देखा गप्पू पहले से ही पुल के नीचे गुर्राते हुए खड़े हैं.

पप्पू :- भाई तुमने दलहित-दलहित करके स्वयं के दल के ‘हित’ के लिए, वर्ग की बात करके अच्छा नहीं किया. ये मम्मी जी के उसूलों के ख़िलाफ़ है. तुम साइन करते हो या नहीं ?

गप्पू :- उफ़्फ़ !! तुम्हारे उसूल तुम्हारे आदर्श !! क्या दिया तुम्हारे आदर्शों ने ? दो वक़्त की रोटी, सरकारी गाड़ी, सरकारी बंगला, मुट्ठी भर कार्यकर्ता ? बस !!

मुझे देखो मुझे, आज से पच्चीस साल पहले हम दोनों ने इसी पुल से अपनी ज़िंदगी की शुरूवात की थी, और आज क्या नहीं है मेरे पास ?? रुपए, नौकर चाकर, बैंक बैलेन्स, बंगला, गाड़ी, अगाड़ी, पिछाड़ी. पत्रकार से लेकर चित्रकार तक और कलाकार से लेकर मक्कार तक. सब कुछ है मेरे पास. और क्या है तुम्हारे पास ??

पप्पू :- मेरे पास माँ के उसूल हैं, उसकी दी गई शिक्षा है.

गप्पू :- और मेरे पास ख़ुद माँ है, उसका मंदिर है.

!!! धेंन तिडेंनऽऽऽ ढमढमढमढम ढम !!!! ( म्यूज़िक पीस )

पप्पू :- भाईऽऽऽ तुम साइन करते हो या नहीं ?

पप्पू अगेन- ‘ह’ अक्षर का लोप करते हुए बोले :- भाई दलहित की बात करना माँ के साथ धोखा है. तुम साइन करते हो या नहीं ??

गप्पू :- जाओ पहले उस जनगणना अधिकारी का साइन लेकर आओ जो जनसंख्या करते समय अपने फ़ार्म में हमारी ज़ात, वर्ग, वर्ण, धर्म का उल्लेख करता है.

जाओ पहले उस चुनाव अधिकारी का साइन लेकर आओ जो निर्वाचन का फ़ार्म जमा करने के लिए हमसे हमारी ज़ात, वर्ण, वर्ग, धर्म, अगडा-पिछड़ा, एस॰सी॰, एस॰टी॰, ओ॰बी॰सी॰ का कॉलम भरने के लिए कहता है.

जाओ पहले उस राशन कार्ड वाले का साइन लेकर आओ जो हमारी अमीरी रेखा, ग़रीबी रेखा, ज़ात, धर्म, वर्ग, वर्ण की बात करता है.

जाओ पहले हमारा विधान लिखने वालों का साइन लेकर आओ जिन्होंने ज़ात, वर्ण, वर्ग, धर्म, अगडा-पिछड़ा, एस॰सी॰, एस॰टी॰, बी॰सी॰, ओ॰बी॰सी॰ को हमारे विधानग्रंथ में डिफ़ाइन किया है.

जाओ पहले उस आदमी का साइन लेकर आओ जिसने ज़बरदस्ती तुम्हारे हाथ पर मेरा बाप चोर है लिखा दिया था. इसके बाद तुम जिस काग़ज़ पर कहोगे मैं उस काग़ज़ पर साइन कर दूँगा भाई.

( पिन ड्रॉप साइलेन्स नो म्यूज़िक-ओन्ली हेवी साँसों की आवाज़ )

पप्पू बोले- भाई तुम्हारे दलहित की घोषणा जिसमें ‘ह’ साइलेंट है, तुष्टिकरण का ही रूप है. और तुमने हमेशा माँ के सामने मुझ पर एक वर्गविशेष के तुष्टिकरण करने का आरोप लगा कर अपमानित किया है, और मुझे मातृद्रोहि तक सिद्ध कर दिया. अब वही बात तुम कर रहे हो भाई. जबकि तुम ये बहुत अच्छे से जानते हो कि किसी भी प्रकार का तुष्टिकरण जो वर्गविशेष के उत्थान के नाम पर किया जाता है, मूलतः वर्गविशेष के कल्याण के लिए नहीं, बल्कि स्वयं के लाभ के लिए किया जाता. ये समाज हित के नाम पर स्वाहित को सिद्ध करने की प्रक्रिया है. किसी को तुष्ट कर हम स्वयं पुष्ट होते हैं. तुष्टिकरण सुप्त को जागृत करने के लिए नहीं बल्कि जागृत को सुप्त करने वाला सुवासित इंजेक्शन है. यह औषधि के नाम पर बेचा जाने वाला मादक द्रव्य है.

पप्पू की बात सुनके गप्पू गुम्म हो गए, और बोले तुम तो तुष्टिकरण की प्रकृति को बहुत अच्छे से समझते हो भाई.

पप्पू ने बात काटते हुए कहा- वो इसलिए, क्योंकि इस मादक द्रव्य का इस्तेमाल में वर्षों से कर रहा था. इसमें पहले शिष्ट व्यक्ति को रूष्ट किया जाता है, जब वह व्यक्ति अच्छे से रूष्ट हो जाता है, तब उसे तुष्ट किया जाता है क्योंकि उसकी तुष्टि पर ही हमारी व्यक्तिगत पुष्टि और संतुष्टि टिकी होती है. माँ मेरी इस मक्कारी को समझ गई थी, इसलिए वो मेरा घर छोड़ के तुम्हारे घर में- तुम्हारे साथ रहने लगी. अब तुम भी वही ग़लती कर रहे हो जो मैंने की थी, जिसके दुष्परिणाम आज मैं भुगत रहा हूँ. यदि माँ को इस बात का पता चल गया तो वो तुम्हारा घर भी छोड़ देगी और मेरे घर आएगी नहीं, उसे सड़क पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, जहाँ हर पल उसकी अस्मिता, उसके मान, उसके शील पर ख़तरा मँडराता रहेगा. वह रोज़ ही लुटेरों द्वारा लूटी जाती रहेगी फिर हम दोनों चाहकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे.

पप्पू की बात सुनके गप्पू सोच में पड़ गए और स्वयं को संयत करते हुए बोले- पप्पू तुम मुझे अपना दुश्मन मत समझो, हम एक ही माँ के बेटे हैं. क्या हुआ अगर हमारे पिता अलग हैं तो ?? भले ही हम सौतेले हैं, लेकिन हैं तो भाई ही ना ? पप्पू याद रखो तुम पप्पू नहीं, पुलक हो- जिसका अर्थ होता है पुलकित, प्रसन्न रहने वाला. और मैं गप्पू नहीं, गुलक हूँ- यानि गुलगुलाने वाला जो लोगों को गुदगुदाने का काम करता है. हम दोनों का जन्म ही आनंदित और प्रसन्नचित्त रहने के लिए हुआ है. ये तो अपनी मम्मी ही है जो बेचारी कभी तुम्हारे चक्कर में ख़ुद पप्पू बन जाती है तो कभी मेरे चक्कर में गप्पू बनी घूमती है.

जब माँ, ख़ुद पप्पू और गप्पू बनने के लिए तैयार बैठी है तो फिर तुमको या मुझको गप्पू-पप्पू होने ज़रूरत ही नहीं है. इसलिए अपना यह विषाद त्यागो,और यथा नाम तथा गुण रहो. मैं तुमसे और तुम मुझसे लड़ते रहते हैं इसलिए मम्मी हमसे जुड़ी रहती है, क्योंकि हम उसके बुढ़ापे का सहारा हैं इसलिए हमारी ख़ुशी में ही वो अपनी ख़ुशी देखती है. तभी वो कभी तुम्हारे घर चली जाती है और कभी मेरे घर चली आती है, अपने मंदिर को लेकर. जिस दिन हमने एक दूसरे का विरोध बंद कर दिया, तब याद रखना मम्मी हमारा सबसे बड़ा अवरोध होंगी. माँ अपने बच्चों के बीच बँटना नहीं चाहती, लेकिन यह बिलकुल असम्भव बात है. माँ को ना चाहते हुए भी अपने हृदय के टुकड़े करने पड़ते है, क्योंकि वो इस व्यवहारिक सत्य को जानती है कि यदि वह बच्चों में बँटेगी नहीं तो फिर कटेगी या पिटेगी. और कटने, पिटने से कहीं बहुत अच्छा है बँटना. इसलिए माँ का हम दोनों के घर में से किसी एक के घर में बने रहना उसकी मजबूरी है, जिसे माँ स्वेच्छा का नाम देकर प्रसन्न रहती है.

गुलक, पुलक को प्रसन्न करने की नियत से गद्य छोड़ पद्य पर उतर आए, क्योंकि वे पद्य की दुखी व्यक्ति को प्रसन्न करने की शक्ति से भलीभाँति परिचित थे, वे भावुक होते हुए बोले-
“आधी मम्मी आपकी, और आधी मम्मी बाप की.
दाँव लगाना सीख लो तो सारी मम्मी आपकी..”

गप्पू महाराज के नीतिपूर्ण वचनों से पप्पू महाराज प्रभावित ही नहीं आश्वस्त होते हुए बोले यानी गप्पू ही पप्पू है, और पप्पू ही गप्पू है ?

गप्पू ने इस अनगढ़ वाक्य को शास्त्रीय सूक्ति में बदलते हुए कहा “सफल पप्पू, गप्पू कहलाता है, और असफल गप्पू, पप्पू के नाम से जाना जाता है.” फिर दोनों भाई समवेत स्वर में बोले ..हम दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. इस सिक्के को सम्हाल कर रखना माँ की ज़िम्मेदारी ही नहीं मजबूरी भी है क्योंकि बाज़ार में मम्मी नहीं सिक्का ही चलता है.

– आशुतोष राणा

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