पृथ्वी के भार जितना बोझ दिल में लिए भी
इंसान देख लेता है हवा में उड़ता सफ़ेद रेशों वाला
वो परागकण, जो खोजता रहता है अपने जैसा कोई फूल…
आँधियों के थमने पर चिड़िया फिर निकल पड़ती है
हवाओं को चीरती किसी चिड़े की तलाश में…
बाढ़ में बिखर जाने के बाद भी
नदी नहीं छोड़ती सागर तक की अपनी राह….
और किताब में दबे एक गुलाब के सूख जाने के बाद भी
उसकी महक ज़िंदा रहती है बरसों…
सारी वर्जनाओं के बाद भी
आदम खा लेता है अदन के बाग़ का फल…
आसमानी हवन और ब्रह्माण्ड की सारी हलचल के बाद भी
गूंजता रहता है अंतरिक्ष में ओंकार…
जिस पर सवार होकर उतरती हैं कई अलौकिक कहानियां
इस लौकिक संसार में…..
दुनिया के इस कोने से उस कोने तक सारी कहानियां मेरी ही है
और उन सारी कहानियों की नायिका भी मैं हूँ
लेकिन बावजूद सारी संभावनाओं के
एक असंभव सा बयान आज मैं देती हूँ कि
तुम आग को रख लोगे सीने में,
तुम आँखों से पकड़ सकोगे पानी
हवा भी महकती रह सकती है तुम्हारी साँसों में
लेकिन तुम मुझे कैसे पाओगे
जब मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की…..