नायब तहसीलदार शिवा त्रिपाठी ज़िल्ला-कुशीनगर; 2600 साल पहले जहाँ बुद्ध इस दुनिया को विदा कह गये, जहाँ अज्ञेय जैसे भारी कवि पैदा हुआ, वहीं पहली पहली पोस्टिंग पर आयी यह मैडम ज़िंदादिल, संवेदनशील प्रशासन का चेहरा बनकर आयीं.
हीरामन का ज़िला भी यही लगता है बेहद ग़रीब और पिछड़ा ज़िला,जहाँ हर तीसरा आदमी क़र्ज़ में डूबा है हर दूसरा आदमी कोर्ट कचहरी या अस्पताल में फँसा है जहाँ मुसहर जाति के लोगों की भारी तादाद रहती है जो दुनिया के उन ग़रीब प्रजातियों में से हैं जो आज भी भूख से दम तोड़ रही है और उनकी बस्तियों तक जाते जाते सरकारी योजनाएँ भी, क से कबूतर किस चिड़ियाँ का नाम है वहाँ के बच्चे नहीं जानते..
शिवा त्रिपाठी दिल्ली विश्वविद्यालय की रिसर्चर हैं एक तेज़ तर्रार प्रशासनिक अधिकारी हैं और उससे ज़्यादा एक संवेदनशील इंसान. जिन तक गाँव जवाँर का कोई भी आदमी अपनी परेशनियाँ लेकर बिना हिचक के पहुँचता है और दुआएं देता हुआ लौटता है.
आप जैसे संवेदनशील अधिकारीयों की उन इलाक़ों में बेहद ज़रूरत हैं जहाँ आज भी प्रशासन आम जनता से नौ हाथ की दूरी बनाकर चलता है. मुसहर लोगों के दुःख दर्द को लोगों के सामने लाने के लिए शुक्रिया साहेब..
– दीपक जायसवाल