क्या ये बेजोड़ बात नहीं है कि जिस टैक्स पर जम्मू-कश्मीर छोड़कर हर सरकार, और हर पार्टी का समर्थन है, उसके पास होने के पहले दिन से ही ज्ञानपुञ्जों ने क्रिस्टल बॉल देखकर कह दिया कि 500 का सामान लो, उस पर 28% टैक्स दो और सरकार की जय बोलते रहो.
ये वही गिरोह है, जो इतने बार आपातकाल चिल्लाने के बावजूद आपातकाल को देश में आता नहीं देख रहा. ये वही लोग हैं जो डिमोनेटाइजेशन के कारण लोगों को दंगे करते देखना चाहते थे, लेकिन वो भी नहीं हुआ. ये वही हैं जिन्होंने मोदी के, योगी के आते ही देश में हिन्दुओं के हाथों में नंगी तलवारें और भागते मुसलमानों की भीड़ देखी थी.
जब ये एक लाइन में 500 रूपए के सामान पर 28% का टैक्स कह देते हैं तो इनसे पूछिए कि ऐसा कौन सा सामान इन्होंने देख लिया है? इनसे पूछिए कि किस लिस्ट में कौन सा सामान देखा जिस पर 28% टैक्स लगा हुआ है और आम आदमी वो ख़रीदता है.
80% वस्तुओं पर 18% टैक्स है, 60% चीज़ों पर अधिकतम 5% टैक्स का प्रावधान है. इनसे पूछिए कि कौन सा लेख पढ़ा, कहाँ देखी वो लिस्ट. हमको भी देखना है.
165 देशों में यही टैक्स है. हमारे देश में बहुत देर से आया है. हमारी ज़रूरतों के हिसाब से बनाया गया है. अगर आप महीने में लाख रूपए कमाते हैं, और उसी हिसाब से ख़र्च करते हैं तो आपकी जेब पर सौ-दो सौ से ज्यादा का फ़र्क़ नहीं पड़ेगा.
फेसबुक पर एक पैराग्राफ़ की विवेचना पढ़ने से पहले दो-चार न्यूज़ साइट भी पढ लीजिए, हर जगह विस्तार से बताया गया है.
मैं ये नहीं कह रहा कि ये पहले दिन से ही ग़ज़ब कर देगा! मैं ये नहीं कह रहा कि लागू करने में दिक़्क़त नहीं होगी. ना ही ये कह रहा कि डिमोनेटाइजेशन एकदम सफल क़दम था. मैं ये नहीं कह रहा कि मैंने क्रिस्टल बॉल देख लिया है.
हाँ, ये जरूर है कि मैं फेसबुक पर झाड़ू मारते हुए ‘500 रूपए के सामान पर 28% का टैक्स’ लिखकर लोगों को बहकाता नहीं. इन अंधों को साइट सीइंग का गाइड मत बनाइए, खुद देखने निकलिए. इन्होंने व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के ‘मोदी-विरोध’ पाठ्यक्रम से ऑनर्स किया है, और आजकल फेसबुक पर इंटर्नशिप कर रहे हैं.
इनको माफ कर दीजिए. अपने विवेक का इस्तेमाल कीजिए. ये बटर-स्मूद नहीं होगा. ये टैक्स तंत्र को पूरी तरह से बदलने का उपक्रम है. इसमें बहुत मुश्किलें हैं, लेकिन इसके परिणाम दूरगामी हैं. आपको ये नहीं पता कि यूपी के बॉर्डर पर सामान से लदे ट्रक को 200 रूपए से 20000 तक की घूस देनी होती है बैरिकेड पार करने के लिए.
सड़क के किनारे ट्रकों के जाम लगे देखे हैं? ट्रक ड्राइवर को ट्रक के नीचे प्याज़ काटते देखा है? अपने गाँव के दुकानदार को कभी टैक्स भरते देखा है? रेस्तराँ का बिल पढ़ने की कोशिश की है कभी? कभी नमक के पैकेट पर लिखा देखा है कि मूल्य सिर्फ बिहार, झारखण्ड और फलाने राज्य के लिए है, नॉर्थइस्ट में एक रूपया ज्यादा? क्या आपको पता है कि लगभग 500 तरह के टैक्स हैं फ़िलहाल अलग-अलग राज्यों में?
नहीं पता होगा, क्योंकि आप व्हाट्सएप्प पर घूमते मैसेज को तथ्य मानकर फेसबुक पर मसखरी करते हैं ‘हैशटैग भक्त’ लिखते हुए. परसाई के व्यंग्य की लाइन उठाकर चेपना बहुत ही आसान है, क्योंकि उसको आप कहीं भी घुसेड़ दीजिएगा और चूँकि नाम में परसाई है तो वो हर जगह सही हो जाएगा!
दिमाग़ परचून की दुकान पर बेच आए हो क्या? बेचे भी तो जीएसटी कितना दिया?