Not in My Name : कामरेड, यह लड़ाई खद्दर से रेशमी सूट पहनने की लालसा से ज्यादा कुछ नहीं

बुधवार की शाम प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में ऐसी शख्सियतों का जमावड़ा था जो साल में कभी-कभार ही नज़र आती हैं… क्योंकि वे उस इलीट तबके से आते हैं जो IIC या India Habitat Center में अपनी शाम गुजारना पसंद करते हैं… उनके लिए प्रेस क्लब दोयम दर्जे का स्थान है.

बहरहाल, आज इनमें सेकुलरिज्म के झंडाबरदार महान पत्रकार, लेखक, रंगकर्मी औऱ न जाने कितनी शक्लें थीं. कुछ जानी-मानी और कुछ अनजानी.

ये सब कुछ देर पहले ही क्लब से महज आधा किलोमीटर दूर जंतर-मंतर पर जुटे थे. मकसद था– मोदी सरकार को लताड़ना और स्लोगन था—- Not in My Name….

जी, बिल्कुल..लोकतंत्र में विरोध की आवाज़ तो होनी ही चाहिए….. लेकिन मार्क्स, लेनिन, फिदेल कास्त्रो ओर चे ग्वेवारा का चोगा पहनकर इस देश में क्रांति का अलख जगाने वालों से मेरा सवाल सिर्फ इतना भर है कि—- कामरेड, ये भी तो बताओ कि जब 1984 में इसी दिल्ली समेत देश के कई शहरों में बेगुनाह, निरीह औऱ मासूम सिखों का कत्लेआम हो रहा था, तब आप कहाँ थे???  याद कीजिये, ऐसा कोई एक भी जलसा, प्रदर्शन उस समय की सरकार के ख़िलाफ़ किया था??? नहीं न…

चलिये, बात करते हैं, 1989 की जब कश्मीर से हिंदुओं को अपनी ही ज़मीन से बेदखल कर दिया गया…. कश्मीरी पंडितों की महिलाओं की आबरू को आपके इन्हीं अलगाववादियों ने तार-तार करके रख दिया, जिनके मानवाधिकार के लिए आज आप सबसे बड़े चौधरी बने हुए हैं… चारमिनार से डनहिल तक का सफर करने वाले कामरेड, ये तो बताओ कि तब भी आपकी अंतरात्मा नहीं जागी कि इन कश्मीरी पंडितों के लिए भी एक बार जंतर-मंतर पर जलसा किया जाए?? इसलिए कि वे मुसलमान नहीं थे???

वाह कामरेड, आपकी क्रांति तो उस वेश्या से भी ज्यादा लालची और खतरनाक है, जो पैसों के बदले में अपना जिस्म तो सौंपती है… लेकिन आप तो कंबल के भीतर छुपकर मलाई खाने के रास्ते पर चल रहे हैं…. इसे अगर आप क्रांति कहते हैं, तो चे ग्वारा की आत्मा जरूर पछता रही होगी कि मेरी मशाल भारत में आज किन गलीज़ हाथों ने थाम रखी है…

भगत सिंह और उससे भी पहले नरेन्द्रनाथ दत्त यानी स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि— किसी भी राष्ट्र में क्रांति का उदय तभी होता है जब वह मज़लूमों की आवाज़ बनकर उभरे, न कि किसी खास समुदाय की कमियों व बुराइयों की वकालत करते हुए….. स्वार्थ के आते ही क्रांति का मकसद ख़त्म हो जाता है और उसका हश्र एक नवजात शिशु की मौत से ज्यादा कुछ नहीं होता…

माफ करना कामरेड, आप भी उसी रास्ते पर जा रहे हो… यह लड़ाई खद्दर से रेशमी सूट पहनने की लालसा से ज्यादा कुछ नहीं है. नाम नहीं लेना चाहता लेकिन कई ऐसे बड़े नाम हैं जो कहने को वामपंथी हैं, लेकिन अगर आज उन्हें सरकारी संस्थानों में अपने मनमाफिक पद मिल जाये, तो वे उन्हीं टीवी चैनलों पर मोदी के जयकारे लगाते हुए नज़र आएंगे जिन पर वे आज शाम मोदी को पहले पानी और फिर शराब पीकर कोस रहे थे…

ये दोहरा चरित्र है जिसे आज की युवा पीढ़ी बखूबी समझती है, इसलिए वे लाल सलाम की गफलत में आने की बजाय अपने कैरियर को तवज़्ज़ो देती है…

बात खत्म करता हूँ इस घटना को आपसे साझा करते हुए…. Not in My Name के इस जलसे से शामिल होकर पत्रकारिता जगत की एक नामचीन हस्ती भी क्लब आई थी, उनके साथ कुछ जानी-मानी मोहतरमाएँ भी थीं… जाहिर है कि व्हिस्की के गिलास में आइस क्यूब के साथ सोडा मिलाते हुए उन्होंने देश के प्रधानमंत्री को कोसने में कोई कसर बाकी नहीं रखी और उस मेज पर उनकी ही बात का समर्थन करने वालों की तादाद थी…

गला तर होने के बाद जब उन्होंने बिल मंगवाया, तो उसकी रकम देखने के बाद उनका पारा सातवें आसमान पर था… वेटर पर सारी भड़ास निकालते हुए वे बोले—- इतना बिल तो ऊपर जा चुका मेरा बाप भी नहीं दे सकता… वेटर खामोश रहा और इस नामचीन हस्ती ने वह बिल पास बैठी एक मोहतरमा की तरफ बढ़ा दिया जिसने अपने पर्स से गांधीजी वाले करारे नोट निकालकर भुगतान किया…
तो ये था, सरकार के खिलाफ जंतर-मंतर से शुरु हुई क्रांति का सफरनामा… कामरेड, मुबारक़ हो आपको ये क्रांति!!!!!!

– वरिष्ठ पत्रकार श्री नरेन्द्र भल्ला

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