महावीर वाणी में ओशो कहते हैं – “रूसी वैज्ञानिक किरलियान ने हाई फ्रिक्वेंसी फ़ोटोग्राफ़ी’ विकसित की है. वह शायद आने वाले भविष्य में सबसे अनूठा प्रयोग सिद्ध होगा. अगर मेरे हाथ का चित्र लिया जाए, हाई फ्रिक्वेंसी फ़ोटोग्राफ़ी’ से तो मेरे हाथ का चित्र साफ़ नहीं आता, मेरे हाथ के आसपास जो किरणें हाथ से निकल रही हैं, उनका चित्र भी आता है.
और आश्चर्य की बात तो यह है कि अगर मैं निषेधात्मक विचारों से भरा हुआ हूँ तो मेरे हाथ के आसपास जो विद्युत-पैटर्न, जो विद्युत के जाल का चित्र आता है, वह रुग्ण, बीमार, अस्वस्थ और केआटिक’ अराजक होता है, विक्षिप्त होता है. जैसे किसी पागल आदमी ने लकीरें खींची हों.
अगर मैं शुभ भावनाओं से, मंगल भावनाओं से भरा हुआ हूँ, आनंदित हूँ, पाजिटिव हूँ, प्रफुल्लित हूँ, प्रभु के प्रति अनुग्रह से भरा हुआ हूँ, तो मेरे हाथ के आसपास जो किरणों का चित्र आता है, किरलियान की फ़ोटोग्राफ़ी से, वह रिद्मिक, लयबद्ध, सुन्दर, सिमिट्रिकल, सानुपातिक, और एक ही व्यवस्था में निर्मित होता है.”
किरलियान फोटोग्राफी ने मनुष्य के सामने कुछ वैज्ञानिक तथ्य उजागर किये हैं. किरलियान ने मरते हुए आदमी के फोटो लिए, उसके शरीर से ऊर्जा के छल्ले बाहर लगातार विसर्जित हो रहे थे, और वो मरने के तीन दिन बाद तक भी होते रहे. मरने के तीन दिन बाद जिसे हिन्दू तीसरा मनाता है.
अब तो वह जलाने के बाद औपचारिक तौर पर उसकी हड्डियाँ उठाना ही तीसरा हो गया. यानि अभी जिसे हम मरा समझते हैं वो मरा नहीं है. आज नहीं कल वैज्ञानिक कहते हैं तीन दिन बाद भी मनुष्य को जीवित कर सकेगें.
और एक मजेदार घटना किरलियान के फोटो में देखने को मिली कि जब आप क्रोध की अवस्था में होते हो तो तब वह ऊर्जा के छल्ले आपके शरीर से निकल रहे होते हैं. यानि क्रोध भी एक छोटी मृत्यु तुल्य है.
एक बात और किरलियान ने अपनी फोटो से सिद्ध की कि मरने से ठीक छह महीने पहले ऊर्जा के छल्ले मनुष्य के शरीर से निकलने लग जाते हैं. यानि मरने की प्रक्रिया छ: माह पहले शुरू हो जाती है, जैसे मनुष्य का शरीर मां के पेट में नौ महीने विकसित होने में लेता है वैसे ही उसे मिटने के लिए छ: माह का समय चाहिए. फिर तो दुर्घटना जैसी कोई चीज के लिए कोई स्थान नहीं रह जाता, हां घटना के लिए जरूर स्थान है.
भारत में हजारों साल से योगी मरने के छ:माह पहले अपनी तिथि बता देते थे.
ये छ: माह कोई संयोगिक बात नहीं है. इस में जरूर कोई रहस्य होना चाहिए. कुछ और तथ्य किरलियान ने मनुष्य के जीवन के सामने रखे, एक फोटो में उसने दिखाया है, छ: महीने पहले जब उसने जिस मनुष्य को फोटो लिया तो उसके दायें हाथ में ऊर्जा प्रवाहित नहीं हो रही थी. यानि दाया हाथ उर्जा को नहीं दर्शा रहा था. जबकि दांया हाथ ठीक ठाक था, पर ठीक छ: माह बाद अचानक एक ऐक्सिडेन्ट के कारण उस आदमी का वह हाथ काटना पड़ा.
यानि हाथ की ऊर्जा छ: माह पहले ही अपना स्थान छोड़ चुकी थी.
भारतीय योग तो हजारों साल से कहता आया है कि मनुष्य के स्थूल शरीर में कोई भी बीमारी आने से पहले आपके सूक्ष्म शरीर में छ: माह पहले आ जाती है. यानि छ: माह पहले अगर सूक्ष्म शरीर पर ही उसका इलाज कर दिया जाये तो बहुत सी बीमारियों पर विजय पाई जा सकती है.
इसी प्रकार भारतीय योग कहता है कि मृत्यु की घटना भी अचानक नहीं घटती वह भी शरीर पर छ: माह पहले से तैयारी शुरू कर देती है. पर इस बात का एहसास हमें क्यों नहीं होता.
पहली बात तो मनुष्य मृत्यु के नाम से इतना भयभीत है कि वह इसका नाम लेने से भी डरता है. दूसरा वह भौतिक वस्तुओं के साथ रहते-रहते इतना संवेदन हीन हो गया है कि उसने लगभग अपनी अतीन्द्रिय शक्तियों से नाता तोड़ लिया है. वरन और कोई कारण नहीं है.
पृथ्वी का श्रेष्ठ प्राणी इतना दीन हीन. पशु पक्षी भी अतीन्द्रिय ज्ञान में उससे कहीं आगे है. सनातन धर्म में उसे हमेशा से पूर्वाभास या शकुन की तरह जाना गया लेकिन आधुनिक समाज ने उसे अन्धविश्वास कह कर नकार दिया. लेकिन जैसे ही उस पर कोई विदेशी वैज्ञानिक अपनी शोध करके उसकी पुष्टि करता है तो तो हम तुरंत हाँ में हाँ मिलाने लगते हैं.
जैसे साइबेरिया में आज भी कुछ ऐसे पक्षी हैं जो बर्फ गिरने के ठीक 14 दिन पहले वहां से उड़ जाते हैं. न एक दिन पहले न एक दिन बाद.
जापान में आज भी ऐसी चिड़िया पाई जाती है जो भुकम्प के12 घन्टे पहले वहाँ से गायब हो जाती है.
और भी न जाने कितने पशु-पक्षी हैं जो अपनी अतीन्द्रिय शक्ति के कारण ही आज जीवित हैं.
भारत में हजारों योगी मरने की तिथि पहले ही घोषित कर देते हैं. जैसे विनोबा भावे जी ने महीनों पहले कह दिया था कि में शरद पूर्णिमा के दिन अपनी देह का त्याग करूंगा.
ठीक महाभारत काल में भी भीष्म पितामह ने भी अपने देह त्याग के लिए दिन चुना था. कुछ तो हमारे स्थूल शरीर पर ऐसा घटता है, जिससे योगी जान जाते हैं कि अब हमारी मृत्यु का दिन करीब आ गया है.
आम आदमी उस बदलाव को क्यों नहीं कर पाता. क्योंकि वह अपने दैनिक कार्यो के प्रति सोया हुआ है. योगी थोड़ा सजग हुआ है. वह जागने का प्रयोग कर रहा है. इसी से उस परिर्वतन को वह देख पाता है महसूस कर पाता है.
एक उदाहरण. जब आप रात को बिस्तर पर सोने के लिए जाते है. सोने ओर निंद्रा के बीच में एक संध्या काल आता है, एक न्यूटल गीयर, पर वह पल के हज़ारवें हिस्से के समान होता है. उसे देखने के लिए बहुत होश चाहिए. आपको पता ही नहीं चल पाता कि कब तक जागे ओर कब नींद में चले गये. पर योगी सालों तक उस पर मेहनत करता है. जब वह उस संध्या काल की अवस्था से परिचित हो जाता है. मरने के ठीक छ: महीने पहले मनुष्य के चित्त की वही अवस्था सारे दिन के लिए हो जाती है. तब योगी समझ जाता है अब मेरी बड़ी संध्या का समय आ गया. पर पहले उस छोटी संध्या के प्रति सजग होना पड़ेगा. तब महासंध्या के प्रति आप जान पायेंगे.
और हमारे पूरे शरीर का स्नायु तंत्र प्राण ऊर्जा का वर्तुल उल्टा कर देता है. यानि आप साँसे तो लेंगे पर उसमें प्राण तत्व नहीं ले रहे होगें. शरीर प्राण तत्व छोड़ना शुरू कर देता है. ध्यान में बैठिए व सज़ग हो जाओ.