सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का एक महत्वपूर्ण बयान है कि वे ‘ढाई मोर्चे’ पूरी तरह फ़तह करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं. एक पाकिस्तान, दूसरा चीन और आधा मोर्चा आंतरिक सुरक्षा से सम्बंधित.
अच्छा लगा सुन कर कि आस्तीन के सांपों पर भी सेना की पूरी नज़र है. निश्चित ही अपने रावत साहब यह भी जानते ही होंगे कि जब पहले दोनों में से किसी मोर्चे पर सीधी लड़ाई की नौबत आयी तो यह अंदरूनी वाला आधा मोर्चा, उस पूरे मोर्चे से ज्यादा ख़तरनाक होगा. तिरुपति से वाया बस्तर, पशुपति तक का प्रस्तावित लाल गलियारा अंततः बीजिंग तक ही जाता है.
सन 62 में चीन के चेयरमैन को अपना चेयरमैन कहने वाले कम्युनिस्ट और उनके लिये तब विदेशों में चंदा जमा करने वाले म. श. अय्यर जैसे लोगों का मोर्चा तब भारत के लिए ज़्यादा बड़ा ख़तरा होगा. तब सारे जंगली और शहरी कम्युनिस्ट, अपने अय्यर जैसे कांग्रेसी दोस्तों के साथ सबसे पहले 2014 का ‘बदला’ लेने जयचंद की तरह तैयार होंगे.
इसी तरह समूची दुनिया को दारुल इस्लाम बनाने का मंसूबा पालने वाले मोमिन भी उन दोनों मोर्चे के साथ मिलकर कथित बाबरी की कथित शहादत का बदला लेने उठ खड़े होंगे. तब केवल कश्मीर ही नही बल्कि हैदराबाद और आगे रामपुर से सिवान और मधुबनी तक के इलाक़ों की बहुतायत मस्जिदें भी ‘सर धड़ से जुदा, सर धड़ से जुदा’ करने के अभियान में हथियार और लाऊड स्पीकर निकाल लेंगी, ‘इंशाअल्लाह इंशाअल्लाह भारत तेरे टुकड़े’ करने को ही.
सो दुनिया की सबसे ताक़तवर हमारी सेना तमाम हालात पर नज़र बना कर रखी हुई है, नज़रिया उसका सु-स्पष्ट है, यह सुकून की बात है. फिर भी एक नागरिक के बतौर सेना से यह प्रार्थना कर ही सकते हैं कि जब तक दोनों पूरे मोर्चों से घोषित युद्ध से बचे हैं, तब तक घरेलू ‘आधे मोर्चे’ को ही फ़तह करने की जुगत भिड़ा लेते तो आगे कम मुश्किलों का सामना करना पड़ता.
आदरणीय रावत जी, हंदवाड़ा-कुपवाड़ा से लेकर दन्तेवाड़ा तक के इस्लामाबाद/ बीजिंग के आधार शिविरों को समूल ख़त्म करना आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है. जेएनयू से इस सफ़ाई अभियान की शुरुआत कर हमारी सेना घोषित शान्तिकाल में ही सारे मोर्चे फ़तह कर सकती है. एक नया स्वच्छ भारत अभियान भीतर से चलाइये सर.