सरफ़रोशी की तो नहीं, लेकिन कातिल पर अपने बाजुओं का ज़ोर आजमाने की तमन्ना ज़रूर है

एक साल पहले लिखा, आज भी प्रासंगिक है, लगता है समय बस बीता है, बदला बिलकुल नहीं.

कमलेश तिवारी मुद्दे पर जब जगह-जगह बड़ी संख्या में ‘शांतिपूर्ण’ प्रदर्शन हो रहे थे तब मैंने एक छोटी सी पोस्ट लिखी थी. WhatsApp पर बहुत वायरल हुई थी.

बात कुछ यूं थी कि मुसलमान क्यों रास्ते पर उतरता है, हिन्दू क्यूँ नहीं.
मुसलमान नौकरी कम करता है, तिजारत ज्यादा. काम बंद कर के आता है.
बिज़नस मैन भी हो तो सभी स्टाफ जो मुस्लिम ही होता है, लेकर उतरता है.

हिन्दू नौकरीपेशा आदमी है. सेठ होगा खुद तो उतरेगा ही नहीं, नौकर से कहेगा, ‘मोर्चे में जाएगा? चल, काम छोड़ दे! कॉर्पोरेट में होगा तो डरेगा कि HR वाले रेकॉर्ड खराब करेंगे. सरकारी नौकर है तो सोचेगा भी नहीं.

पिछले साल मध्यप्रदेश में जो एक बवाल हुआ उसमें प्रत्यंतर देख लिया. रमजान चल रहा है, आरती नहीं करनी है आप को – वाद छिड़ा, पुलिस आई, और हिंदुओं पर शांति भंग करने के लिए FIR हुई. हिन्दू भी ज़िद पर आए, तभी जाकर मुस्लिमों पर भी FIR हुई. पेपर में रिपोर्ट आया.

इसमें एक हिन्दू लड़के का नाम आया. उसके बॉस ने बुलाकर कहा तू रिज़ाइन करता है या मैं निकाल दूँ? पुलिस रेकॉर्ड वाला आदमी मेरे यहाँ नहीं चाहिए.

मुझे यह किस्सा जिन्होंने बताया, उन्होंने कई और इज्जतदार लोगों को साथ जुटाकर बॉस के बॉस से बात की और लड़के की नौकरी बनी रही. कह रहे थे कि लड़का दहाड़े मार कर रो रहा था. सभी ठेकेदारों ने हाथ खड़े कर दिये.

ये मित्र भी एक ठेकेदार संगठन से जुड़े हैं लेकिन यहाँ व्यक्तिगत हैसियत (personal capacity) में गए थे. हताश स्वर में कह रहे थे कि एक अच्छा कार्यकर्ता खो दिया हमने.

कुछ दिनों पहले एक पोस्ट लिखी थी, ‘रिहाई मंच’ पर. यह संगठन मुस्लिम युवाओं की रिहाई का काम करता है. ऐसी भी क्या बात है कि ऐसे संगठन स्थापित करना पड़े जिसके जगह-जगह ऑफिस हो, जुड़े हुए वकील हो…

…याने कोई न कोई लड़के हमेशा कोई न कोई लफड़ा करते रहेंगे और उनकी रिहाई में ये बिज़ी रहेंगे. जकात के पैसे इनके लिए भी आवंटित होते हैं. मतलब यह भी हुआ कि समाज को यह हमेशा लफड़े में व्यस्त रहना मंजूर है. अब इनके लफड़ों के शिकार कौन हैं यह देखना मज़ेदार होगा लेकिन समझना मुश्किल नहीं.

हमें यह कब समझ में आयेगा कि हम पर हमला करने वाले लड़ाई के बाद की लड़ाई की भी तैयारी (कानूनी लड़ाई तथा जेल में सेटिंग और परिजनों की संभाल) कर आते हैं. हम तो न तैयार रहते हैं, लेकिन जो हमारे बचाव को जान जोखिम में ड़ाल कर खड़े होते हैं, उनके साथ कैसा व्यवहार करते हैं, यह उदाहरण से स्पष्ट हुआ ही होगा.

दो तीन वर्षों से ADL के बारे में लिख रहा हूँ. यहूदियों की अमेरिका स्थित संस्था है. यहूदियों की कानूनी सहायता करती है. धन है, वकीलों को फुल टाइम नौकरी पर रखती है और त्याग, दायित्व आदि आदर्शों की बातें न कर के सीधा मार्केट रेट से सैलरी देती है और उसी हिसाब से काम करा लेती है. धाक है उस संगठन की.

अब कृपया यह न कहें कि यहूदियों के पास पैसों की कमी नहीं. बात सच है लेकिन पैसों की कमी हिंदुओं के पास भी नहीं. बिना कोई तकलीफ से प्रचुर धन मिल सकता है. In fact, हिन्दू मेरे प्रॉजेक्शन से दस गुना धन ऐसे ही खर्चते होंगे. तो कमी किस बात की है ?

कमी है तो विश्वास और नीयत की. और बहुतायत है तो स्वार्थ और निजी महत्ता बनाए रखने की.

वैसे हमें जरूरत है एक ऐसे संगठन या संस्था की जो बहुआयामी कार्य करे. कानून की लड़ाई में अपने योद्धाओं का साथ दे. उद्योजकों या कंपनी मालिकों से बात करें.

यकीन मानिए, अगर किसी मुस्लिम स्थापन में नौकरी करने वाला लड़का आगजनी करते हुए रंगे हाथ भी पकड़ा गया तो भी उसकी नौकरी जाने वाली नहीं, उसको यह पूरा विश्वास है और वो गलत भी नहीं होता।

संस्था की परियोजना लगभग एक वर्ष से तैयार है. फेसबुक पर कई मान्यवरों से चर्चा हुई है लेकिन उसके लिए जो बल चाहिए उसकी लेवल ऊपर की है.

हाँ, सब का कहना यही है कि यह योजना पर्फेक्ट है और बिलकुल कार्यान्वित करने योग्य है. संगठनों के पास भी यह पहुँच चुकी है ऐसा मुझे कहा गया है लेकिन… जाने दीजिये, बार बार पृच्छा करने से अपनी ही बेइज्जती करवाने या फिर दोस्ती खराब करने का मेरा स्वभाव नहीं.

लेकिन फिर भी उम्मीद नहीं हारी है मैंने. निराश अवश्य हूँ, पर हताश नहीं. भारत से हिन्दू मिटा नहीं है अब तक, बस हमें उसे मिटने नहीं देना है. सरफरोशी की मुझे कोई तमन्ना नहीं, लेकिन कातिल पर अपने बाजुओं का भी ज़ोर आजमाने की तमन्ना जरूर है. जय हिन्द!

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