मुझे शुरू से ही ज्योतिष में रूचि रही है लेकिन आता नहीं है. आज ऐसे ही कुछ वर्ष पुराना वाकया याद आ गया है. यह ऐसा वाकया है जिसका मैंने दो-चार लोगों के सिवाय किसी से भी जिक्र नहीं किया है. अब क्योंकि यह विषयवस्तु कुंडली और उस पर की गयी भविष्यवाणी से सम्बंधित था, इसलिए मैंने कभी इसका जिक्र फेसबुक पर नहीं किया.
मेरे ख्याल से ये वाकया फरवरी 2014 का है और उस वक्त मौसम तो जरूर ठंड का था लेकिन राजनैतिक गर्मी अपने पूरे उफान पर थी. सारे देश के साथ, राजनैतिक दलों का भी सिर्फ एक ही केंद्र बिंदु, नरेंद्र मोदी जी थे. मीडिया, कांग्रेस वा अन्य विपक्षी दलों के साथ, स्वयं बीजेपी के महारथी भी यह जानने का कयास लगा रहे थे कि इस मोदी का होगा क्या?
जैसा कि राजनीति में होता हैं कि भयातुर नेता सबसे पहले, अपने विरोधी नेता की कुंडली ढूंढते हैं और फिर उसको लेकर पहुंच जाते है एक से एक ज्ञानी पंडित और तांत्रिक के पास. वहीं आसन जमा लेते हैं और मोटी दक्षिणा दे कर बँचवाने लगते है विरोधी की कुंडली.
कैसा होगा? जीतेगा या हारेगा? सरकार बना पायेगा कि नहीं बना पायेगा? कौन सा कमजोर योग है और उसका तोड़ क्या है? कौन सी माँ का आह्वान किया जाये, किस सिद्ध पीठ पर अनुष्ठान किया जाये कि उसका अहित हो और उसे रोका जा सके?
यही सब मोदी जी के लिए भी हुआ था. टीवी के पंडितों से लेकर, बनारस और दक्षिण भारत के पंडितों के पास मोदी जी की कुण्डलियाँ, उनसे विरोध रखने वाले नेताओं द्वारा बँचवाई गयी थी.
यह सब तो ठीक था लेकिन मुसीबत यह थी उस काल में मोदी जी की 5-6 कुण्डलियाँ इस पांडित्य बज़ार में घूम रही थीं और लोग अपने-अपने हाथ आई कुंडली और जजमान से उनके संबंधों के हिसाब से फलादेश दे रहे थे.
मुझे व्यक्तिगत रूप से पता है कि कुछ तो विंध्याचल देवी से लेकर बगुलामुखी देवी, दतिया तक, अनुष्ठान और तंत्र साधना में, अपने-अपने जजमानों के पक्ष में निर्णय दिलवाने के लिए बैठ गए थे.
खैर, मेरा इतना सब लिखने का मकसद यह था कि इन सच्ची झूठी कुंडलियों ने मोदी विरोधी नेताओ को 16 मई तक खूब नचाया. अब मैं आता हूँ उस वाकये पर जिसका मैं जिक्र करना चाहता हूँ.
हुआ यूँ कि मेरी किसी से मुलाकात हुयी, जिन्हे मैं जानता था. वो कोई पण्डित या पेशेवर ज्योतिषी नहीं हैं लेकिन ज्योतिष विद्या में अदभुत हैं और उनकी कीर्ति एक ख़ास तबके में दूर-दूर तक फैली हुयी है.
उनसे वार्ता के क्रम में, एक जिज्ञासु और मोदी जी के समर्थक होने के कारण मैंने उनसे पूछा, “क्या आपने मोदी की कुंडली का अध्ययन किया है? इतने लोग मोदी की कुंडली का फलादेश दे रहे हैं और पूजा-पाठ भी करा रहे हैं, आप यह बताइये इसमें असली कौन सी है?”
वो कुछ मुस्कराते हुए चुप हो गये. मैंने फिर थोड़ी देर बाद उनसे फिर पूछा, लेकिन वो मुझे टालते रहे.
जब काफी देर हो गयी और उनके जाने का समय आया तब उन्होंने गाडी मैं बैठते हुए कहा, “मोदी की सारी कुण्डलियाँ जो बाजार में घूम रही है, वह गलत हैं. वो कुण्डलियां बाज़ार में फेंकी गयी हैं, ताकि लोग अपना यह शौक भी पूरा कर ले.”
फिर वह गाड़ी में बैठ गए. मैं अब भी कुछ और जानने के लिए उत्सुक था लेकिन मैं अपनी सीमा भी जानता था, इसलिए केवल अपनी आँखों से ही निवेदन किया.
पता नहीं उनका क्या मूड आया कि मेरी तरफ मुँह कर के बोले, “योग से छेड़छाड़ हो जाती है क्योंकि योग के परिणामों पर असर बहुत से अन्य कारणों का भी पड़ता है, लेकिन प्रारब्ध नहीं बदलता.”
ठिठके और फिर कहा, “जितना अपयश और लांछन लगेंगे उतना ही यह शक्तिशाली होता जायेगा.”
फिर एक योग का नाम बताया जिसको मैंने पहली बार सुना था और अब उस का स्मरण भी नहीं है और कहा, “यह समझ लो कि इस योग का जातक 100 गज (हाथी) का बल रखता है और इसका शत्रुहन्ता योग इतना प्रबल है कि इसे एक कमरे में, 100 लठैतों के साथ, निहत्था बंद कर दिया जाये तो भी सुबह दरवाजा यही खोलेगा.”
उसके बाद वो मौन हो गये और चले गए.
आज (दो वर्ष पूर्व जून 2015 में) ललित मोदी के ट्वीट देख रहा था. उनको पढ़ कर कई जाने-पहचाने चेहरों पर शिकन आनी स्वभाविक है. नाम देख लीजिये और आप समझ जायेंगे कि मैं कहना क्या चाहता हूँ. क्या कांग्रेस, क्या बीजेपी सब के नाम इस काजल की कोठरी में दिख रहे हैं.
मोदी निर्मोही है, विश्वासघात और शत्रुता कभी भूलता नहीं है. सब के नंबर लगेंगे. कौन, कब और कैसे, वो निर्णय सिर्फ मोदी ही करेंगे.
मोदी के संदर्भ में, मैं तो सभी इष्ट मित्रों और शत्रुओं से कहता हूँ कि समय काल को फांदने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और न ही उतावली में अपने निर्णयों के लिए उतावले होना चाहिए. समय बहुत है और अभी बहुत कुछ देखना है.