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कल फेसबुक पर ईद की बधाई देती एक पोस्ट देखी. हालांकि पोस्ट उनका नहीं था पर कॉपी-पेस्ट कर अपनी वाल पर चिपकाया था तो भाव यही प्रकट हुआ. पोस्ट के कुछ अंश शहद की चाशनी में घोल कर लिखा गया है. पोस्ट में एक जगह लिखा गया है,
“बंटवारे में हिंदुस्तान को चुन कर हम, हिंदुओं पर भरोसा करने वालों, को अगर इस मुल्क में आज खतरा महसूस होता है तो समाज के तौर पर ये हमारी विफलता है“.
मैडम, किसने चुना और क्या चुना ज़रा इतिहास के पन्ने पलट कर देख लीजिये. 1945 में ब्रिटेन में कंजरवेटिव पार्टी की सत्ता चली गई और उसकी जगह वहां लेबर पार्टी सत्ता में आई. लेबर पार्टी ने सत्ता में आते ही भारत में चुनाव कराने की घोषणा कर दी.
मुस्लिम लीग उस समय कमजोर थी, उसने स्थिति को अपने अनुकूल बनाने के लिये मुस्लिम मानस को दारुल-इस्लाम का सपना दिखाया और सांप्रदायिक वैमनस्य को बढ़ावा देना शुरू किया.
इसके नतीजे में जो कुछ चंद राष्ट्रवादी मुस्लिम नेता और कुछ अन्य दलों के मुस्लिम नेता थे, वो मुस्लिम भारत की स्वर्णिम कल्पना सजाये लीग की गोद में बैठने लगे. पश्चिमोत्तर सीमाप्रांत के अब्दुल कय्यूम खान जो कई पीढ़ियों के निष्ठावान कांग्रेसी और गांधी के चेले थे ने झट से अपना पाला बदल लिया और जिन्ना की गोद में जाकर बैठ गये.
यही पंजाब में भी हुआ जब वहां के कांग्रेस समिति के प्रमुख सदस्य इफ्तिखारुद्दीन भी लीग के पाले में चले गये. फिर वहीं जमात-अहमदिया के खलीफा भी मुस्लिम लीग के पक्ष में जम कर बैटिंग करने लगे.
मौलाना आज़ाद जैसे धूर्त नेता, जिनको पता था कि कांग्रेस में रहना ज्यादा मुफीद है, ने इस अवसर को सौदेबाजी में बदल लिया और गांधी को ब्लैकमेल करने लगे कि मुस्लिम मानस को और तृप्त करो, नहीं तो हम सब लीग में चले जायेंगे. धूर्त मौलाना की एक मांग ये भी थी कि आज़ाद भारत में प्रधानमंत्री क्रम से हिन्दू और मुसलमान बने.
अब चुनाव हुये तो क्या दृश्य था इसे भी देखिये. चुनाव में कांग्रेस को लगभग 91 प्रतिशत वोट हिन्दुओं के मिले, जो कुछ वोट उसे मुस्लिम इलाकों से मिले, वो कहाँ से मिले ये भी सुन लीजिये.
उत्तर-पश्चिमी सीमांत प्रांत तथा असम में कांग्रेस को बहुमत मिला जो प्रायः मुस्लिम बहुल थे और जहां मुस्लिम लीग यह दावा कर रही थी कि ये पाकिस्तान के हिस्से हैं.
उधर मुस्लिम लीग को भारत के मुस्लिम समाज की ओर से बम्पर समर्थन मिला और केन्द्रीय व्यवस्थापिका में इसने 30 आरक्षित स्थानों पर कब्जा कर लिया, कांग्रेस के कथित राष्ट्रवादी मुसलमानों की जमानतें जब्त हो गई.
इस चुनाव ने तय कर दिया कि भारत में किसका मानस किसकी ओर है. लीग ने जहाँ-जहाँ बम्पर वोट पाये दुर्भाग्य से बंटवारे के बाद वो हिस्से भारत में रह गये और जहाँ लीग को नकार दिया गया था उसे पाकिस्तान में दे दिया गया.
बिहार और उत्तर-प्रदेश के मुस्लिमों ने लीग के लिये खुल कर बैटिंग की थी पर दुर्भाग्य से वो बंटवारे के बाद पाकिस्तान न जा सके, यही हाल बंबई समेत सारे देश का था. मुंबई में लीगी नेताओं के सम्मलेन में एक मुस्लिम नेता ने कहा कि ये अधिकार किसी को नहीं है कि हमें उन दासों के अधीन सौंप दें जिनपर हमने 500 साल से भी अधिक हुकूमत की है.
उधर मद्रास से मुहम्मद इस्माईल सीना ठोंक कर कहने लगे हमें हिन्दू के अधीन छोड़ोगे तो हम जिहाद के लिये तैयार बैठे हैं. उधर शौकत हयात खान कहने लगे कि युद्ध क्या होता है ये हम हिन्दुओं को दिखा देंगें और फिर अंगरेजी हुकूमत भी उनको न बचा पायेगी. फिर सर फ़िरोज़ नून खान कहने लगे कि हमको हिन्दू राज्य के अधीन रखा तो ऐसा विनाश करेंगें कि हलाकू खान की बर्बरता भी शर्मा जाये.
निष्ठाएं रातों-रात नहीं बदला करती, ये सारे उन्मादी नारे और धमकियाँ उनकी हैं जिनके इलाके दुर्भाग्य से पाकिस्तान में न जा सके थे और यही तारीख का सच है.
बहरहाल, जिस फेसबुक पोस्ट से बात शुरू की थी, उस पोस्ट के अंत में लिखा है, “ये मिट्टी नारंगी नहीं है बल्कि इंद्रधनुषी है. जिसे रंग नहीं दिखते वो वर्णांध (colour blind) होता है“.
ये मिट्टी नारंगी ही है, इतिहास को भूलकर और सच का गला घोंटकर सिर्फ विनाश हासिल होता है, ये बात समझ में आई तो ठीक… वर्ना इस देश की फिज़ा में इन्द्रधनुषी रंग देखने वाले लाहौर के हिन्दू भी थे पर जब उनकी बेटियां और बहुएँ लाहौर के अनारकली बाजार में नीलाम हुई तो उनका वर्णांध दूर हो गया.