1960-70 के दशक में इंदिरा गांधी एक करिश्माई नेता के रूप मे उभरी. 1969 में बैंकों के “राष्ट्रीयकरण” और 1970 में राजाओं के “प्रिवीपर्स” को खत्म करने से पूरे देश में उनकी लोकप्रियता बढ़ गयी. 1971 में “गरीबी हटाओ” के लोकलुभावन नारे के नाम पर चुनाव लड़ा, और उनको लोकसभा में ऐतिहासिक रूप से 352 सीटें मिली. दिसम्बर 1971 में पाकिस्तान को पराजित कर बांग्लादेश के निर्माण से विपक्षी भी उन्हे “दुर्गा” कहने को मजबूर हो गये. अगले माह उनको भारत रत्न दिया गया. इस समय वे अपने शासनकाल के चरम बिंदु पर थी.
पर कहा जाता है कि जरूरत से ज्यादा सफलता हर कोई पचा नहीं पाता यही उनके साथ भी हुआ. इंदिरा गांधी ने रायबरेली से लोकसभा का चुनाव लड़ा था उनके खिलाफ समाजवादी नेता ‘राजनारायण’ खड़े हुऐ थे पर वे चुनाव हार गये. हारने पर वे धांधली का आरोप लगाकर कोर्ट चले गये. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनके आरोपों को सही पाया.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 12 जून 1975 को भ्रष्ट तरीके अपनाने के आरोप में रायबरेली से इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया. इसी दौरान 25 जून 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जयप्रकाश नारायण की रैली हुई. पूरा रामलीला मैदान अज्ञेय की कविता- “सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” से गूंज रहा था. जेपी उस समय इंदिरा गांधी की निरकुंशता, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ आंदोलन छेड़े हुऐ थे. इंदिरा दोहरे संकट मे फंस गयी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे क्या करे.
तब उन्होंने अपने विश्वसनीय सलाहकार सिद्धार्थ शंकर रे, जो उस समय पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री थे, से सलाह ली. उन्होंने इंदिरा को देश मे आपातकाल लगाने का सुझाव दिया. “रे” की सलाह पर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 25-26 जून 1975 की आधी रात को राष्ट्रपति ‘फखरूद्दीन अली अहमद’ से आपातकाल के आदेश पर हस्ताक्षर करवा कर देश पर आपातकाल थोप दिया. लाखों लोगों के साथ हजारों नेताओं और कार्यकर्ताओं को जेलों में ठूंस दिया गया. प्रेस पर सेंसरशिप लागू कर दी गई. रामलीला मैदान में एकत्र सभी राजनेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. ये खबर देश तक न पहुंचे इसलिये रात में ही अनेक अखबारों के ऑफिस की बिजली काट दी गयी.
देश का पूरा शासनतंत्र संजय गांधी के हाथ में था और वे अपने विश्वसनीय साथियों विद्याचरण शुक्ल, ओम मेहता और बंसीलाल की सहायता से पूरे देश पर नकेल कस रहे थे. विद्याचरण शुक्ल सूचना प्रसारण मंत्री थे उन्होने आदेश जारी कर सरकार के खिलाफ कुछ भी लिखने बोलने पर प्रतिबंध लगा दिया. रेडियो पर किशोर कुमार के गीतो पर रोक लगा दी गयी क्योकि उन्होंने सरकार की प्रशंसा में गीत लिखने से इंकार कर दिया था, गुलजार की फिल्म “आंधी” के प्रसारण को भी प्रतिबंधित कर दिया. सारे मौलिक अधिकार रद्द कर दिये गये, यहां तक कि जीवन का अधिकार भी रद्द कर दिया गया.
संजय गांधी ने देश पर अपना पांच सूत्रीय कार्यक्रम थोप दिया जिसमें सबसे विवादास्पद मुद्दा था ‘नसबंदी’ का. लोगों की जबरन ‘नसबंदी’ करवाई गयी. कई नाबालिग और अविवाहित लोगों की भी ‘नसबंदी’ कर दी गयी. चलती बस को रोककर उसमें सवार पुरुषों को उतारकर और गांवों को घेरकर भी ‘नसबंदी’ की गयी.
इसके अलावा जो चार मुद्दे और थे; वयस्क शिक्षा, दहेज और जाति उन्मूलन, वृक्षारोपण उनको लेकर भी जमकर जोर जबर्दस्ती की गयी. पूरे देश मे हाहाकार मच गया .
भारी दमन और अत्याचार के बाद भी जनता का विरोध जारी रहा. खासकर ‘नसबंदी’ के मुद्दे ने इंदिरा सरकार की लोकप्रियता को रसातल मे पहुंचा दिया. संजय गांधी 35 साल तक इमरजेंसी जारी रखना चाहते थे. पर इंदिरा गांधी बढ़ते जनविरोध को भांप गयी और उन्होंने संजय गांधी की एक नही सुनी क्योकि उनको शायद अपनी गलती का अनुभव हो गया था.
18 जनवरी 1977 को उन्होंने लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा कर दी. मार्च 1977 में लोकसभा चुनाव हुए जिसमें इंदिरा और संजय दोनों की जबर्दस्त पराजय हुई. 21मार्च 1977 को कार्यवाहक राष्ट्रपति ‘श्री बीडी जत्ती’ ने आपातकाल को खत्म कर दिया.
लालू यादव ने भी आपातकाल का विरोध किया था और जेल गये थे उसी दौरान उनकी पत्नी राबड़ीदेवी ने एक बेटी को जन्म दिया. बेटी का जन्म मेटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्योरिटी एक्ट के दौरान हुआ था जिसे संक्षिप्त मे “मीसा” कहा जाता था. इस दौर को याद रखने के लिये उन्होंने अपनी बेटी का नाम “मीसा” रख दिया.
बिहार में आजकल लालू के बेटे बेटियों के यहां छापे पड़ रहे हैं और उनकी सम्पत्ति जब्त हो रही है उसमें “मीसा भारती” का नाम प्रमुख रूप से सुना जा रहा है ये वही “मीसा” है जिनका जन्म आपातकाल के दौरान हुआ था और उस समय इस ‘मीसा एक्ट’ को व्यंग्य के तौर पर “मेटेनेंस ऑफ इंदिरा संजय एक्ट” के नाम जाना जाता था.