जन्मदिवस विशेष : अजित सिंह, जिनका काम समाज के लिए प्रकाश स्तम्भ और पाथेय

हमारे देश ने सैकड़ों सालों तक विदेशी आक्रमण का दंश झेला है पर इसके बावजूद हमारा समाज और राष्ट्र जीवन बचा रहा तो इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह हमारा सर्वसमावेशी चिंतन और वसुधैव कुटुंबकम का भाव रहा है और जो समाज के हर वर्ग और समुदाय की हित-चिंता करता था, उनके सुख-दुःख में शामिल रहता था.

सबके लिए जीना, सबका सम्मान करना और सबकी उन्नति के लिए सहयोग करना ये हमारी संस्कृति रही है. प्रभु राम की करुणा दलित, वंचित, वनवासी यहाँ तक कि पशु-पक्षी सबके लिए थी जिसने श्री राम के नाम को अमर कर दिया पर आज दुर्भाग्यवश हमारी चिंतन और सोच पाश्चात्य चिंतन में ढ़ल गई है जो मनुष्य को अर्थकामी, स्वार्थी और कामार्थी बनता है.

समाज को साथ लेकर चलने का जो संस्कार हमारे ऋषियों ने हमें सौंपा था, हम उससे दूर हो गये. इसी का परिणाम है कि आज हमारा समाज कई तरह की समस्याओं से घिर गया है. मतांतरण, नक्सलवाद, जातियों की बीच परस्पर घृणा और नफरत तथा इन सबके परिणाम स्वरुप जन्मी कुटिल राजनीति हमारे राष्ट्र के ऊपर काली छाया बनकर मंडरा रही है.

प्रश्न है समाधान क्या है? समाधान यही है कि हम इस भाव को आत्मसात कर लें कि हम सब भारत माँ की संतान होने के नाते एक विशाल परिवार के सदस्य हैं, इसलिये इस परिवार में किसी का सुख हमारा सुख और किसी का दुःख हमारा दुःख है. और फिर ऐसी ही भावना रखते हुए ‘सेवा और सहयोग’ हमारा स्वभाव बने और ये स्वभाव जाति, भाषा और सामाजिक रुतबे की बाधाओं से परे हो.

हमारे अग्रज तुल्य मित्र अजित सिंह अपने उदयन स्कूल के माध्यम से यही काम पूरे मनोयोग से कर रहे हैं. समाज के वंचित, पीड़ित मुसहर परिवार के बच्चों को सिर्फ शिक्षा नहीं बल्कि शिक्षा के साथ संस्कार, भोजन और फिर रोजगार के लिये हुनर सिखाने का काम उदयन स्कूल कर रहा हैं.

सेवा भाव से समाज में जागरण तथा परिवर्तन संभव है तथा संपन्न एवम् शिक्षित समाज अपने अहम् भाव को छोड़कर पिछड़े तथा निर्धन समाज के मन से छोटेपन के भाव को दूर कर सकता है, इसे अजित सिंह ने अपने उदयन स्कूल के माध्यम से संभव कर दिखाया है.

अजित सिंह से व्यक्तिगत मुलाकात केवल एक बार हुई है और वहीं उनसे उदयन स्कूल की संकल्पना से साकार होने तक की कहानी सुनी थी. उनके कुछ विचारों से कुछ लोगों के मनभेद हो सकते हैं पर उनका काम उनको हमसे, आपसे और हम सबके बहुत ऊपर लेकर खड़ा करता है, हम सब जहाँ बस कुछ लिख कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं, वहीं ये बंदा अकेला है जिसके शब्द को उसके कर्म मजबूती देते हैं.

बाकी जो काम वो कर रहे हैं वही काम अगर हिन्दू समाज ने कुछ शताब्दी पहले शुरू किया होता तो आज नक्सलवाद, धर्मांतरण, जातियों के बीच के झगड़े जैसी चीजें नहीं होती. अजित जी की एक बड़ी सफलता फेसबुक से खोज-खोज कर योग्य लोगों को अपने साथ जोड़ना भी है.

हम पद, रुतबे, प्रतिष्ठा में बड़े होने के साथ-साथ कर्तव्यपालन, समरसता, परस्पर सहयोग और समाज के वंचित, वनवासी और पिछड़े तबके के विकास में भी अग्रणी बनें इस भाव को अब जगाना आवश्यक है अन्यथा हमारी उपेक्षा से यही लोग मतांतरित होकर हमारे समाज और राष्ट्र के लिये संकट बनेंगे या फिर नक्सली, माओवादी बन कर देश और समाज के लिये नासूर बन जायेंगे.

आज हम जिस भागदौड़ की जिंदगी में हैं, उसमें हमारे पास ‘वक़्त’ छोड़ के सबकुछ है, इसलिए चाहते हुए भी हम समाज को कुछ नहीं दे सकते और बहुत कोशिश कर वक़्त निकाल भी लें तो भी अकेले कुछ नहीं कर सकते.

इसलिए जरूरी है कि कई हाथ एक साथ जुड़ें. ये विचार तो अच्छा है पर इसे धरातल पर उतारना मुश्किल है, ऐसे में अजित जी का काम एक प्रकाश स्तम्भ और पाथेय की तरह है जो ऐसे काम करने की इच्छा रखने वालों का हमेशा मार्गदर्शन करती रहेगी.

आज उनका जन्मदिन है, जिन्होनें सैकड़ों होंठों को मुस्कान, कई हाथों को काम और कईयों को सम्मान से जीना सिखाया है उनके दीर्घ जीवन की कामना के लिये ईश्वर से प्रार्थना करना तो बनता है.

भगवान आपके अभियान में और सफलता दें और आपको दीर्घायु करें इन मंगलकामनाओं के साथ हम सबकी ओर से आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत शुभकामनायें.

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