सोशल मीडिया पर अक्सर हिन्दू विरोधियों की तरफ से यह स्टेटस वायरल होता रहता है कि हिन्दू का कोई उद्गम नहीं है…
ईसा ने ईसाई बनाए, बुद्ध ने बौद्ध, महावीर ने जैन, पैगम्बर ने मुसलमान, हिन्दू कहाँ से आये हैं किसी को नहीं पता…
हिंदुत्व का मज़ाक उड़ाने वाले जब इस तरह के तर्क प्रस्तुत करते हैं तो वो अपने ही खोदे हुए गड्ढों में गिर पड़ते हैं.
चलो मान लिया जाए कि ईसा मसीह के बाद ईसाइयों का प्रादुर्भाव हुआ मतलब उसके पहले ईसाई नहीं थे…
बुद्ध से पहले बौद्ध नहीं थे…
मतलब महावीर के पहले कोई जैन न था… तो कुछ तो था…
पैगम्बर से पहले मुसलमान न थे तो कुछ तो थे…
यहीं आपने सिद्ध कर दिया कि हिन्दू सनातन है… मनुष्यता और सभ्यता के प्रादुर्भाव के साथ जो सबसे पहली सभ्यता और जीवन शैली विकसित हुई वो है हिन्दू जीवन शैली… उसके बाद जितनों ने भी सत्य को जाना… निर्वाण प्राप्त किया या जिस पर ज्ञान अवतरित हुआ उनके अनुयायियों ने उसे एक नए “रिलिजन” के नाम पर उसका अनुसरण शुरू कर दिया… लेकिन किसी के भी अनुयायी बनने से पहले आप क्या थे? कभी अपने आप से ये सवाल पूछकर देखिये… बहुत दूर नहीं जाना पड़ेगा… हिंदुत्व की उत्पत्ति तक भी नहीं जाना पड़ेगा बस अपनी उत्पत्ति के एक कदम पहले आप कहाँ थे इतना सा जान लीजिये…
हिंदुत्व की सनातनी अवधारणा, धर्म की धारणा के समानांतर चलती है, यहाँ इसे अवधारणा और धारणा कहना भी हमारे शब्दकोष की कमी है… और मैं कहती हूँ इसे हिन्दू कहना भी हमारी मजबूरी है… हम हिन्दू नहीं थे… हम सभी धर्म को धारण करनेवाले वास्तविक धार्मिक थे… समय के साथ नए नाम मिलते गए लेकिन इससे हमारी धार्मिकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा…
हम समय के साथ अपने धर्म का अनुकरण करते हुए विकास करते चले गए… अच्छा बुरा समय हर युग में रहता है. जीवन को संघर्ष इसीलिए कहा गया है लेकिन उन संघर्षों के कारण जीवन नई ऊंचाइयों को छू सका… हम विकसित और विकसित होते चले गए… फिर कुछ हुए जिन्होंने परमात्मा के वास्तविक रूप के दर्शन पाए… हम उन्हें स्वीकार करते हैं… फिर चाहे बुद्ध हो, महावीर हो, ईसा मसीह हो या पैगम्बर… लेकिन आँख बंद करके उनके पीछे चलते हुए केवल नक़ल उतारने से विकास नहीं होता…
पैगम्बर पर जो ज्ञान अवतरित हुआ होगा वो उनकी मानसिक अवस्था और आत्मिक उन्नति के फलस्वरूप होगा… लेकिन उनकी जीवन शैली को हम उनके उपदेश समझकर चलेंगे तो हम कभी विकास नहीं कर सकेंगे क्योंकि किसी एक मनुष्य की जीवन शैली किसी दूसरे मनुष्य से अवश्यम्भावी रूप से अलग होती है…
वरना यदि जिस रूप में बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ उसी रूप में महावीर को क्यों नहीं… महावीर को जब ज्ञान प्राप्त हुआ था तो उन्हें अपने कपड़ों का भी होश नहीं रहा. जिस व्यक्ति के लिए शरीर तक का महत्त्व न रह जाए उसके लिए वस्त्र छूट जाना स्वाभाविक था. लेकिन जिन्होंने महावीर के बाद जैन रिलिजन को अपनाया वो उनकी तरह नग्न होने की प्रैक्टिस करते रहे … प्रैक्टिस करने से विद्या प्राप्त हो जाएगी ज्ञान नहीं… परमात्मा नहीं… लेकिन यदि उसी तरह से परमात्मा प्राप्त होते हैं तो सभी नग्न क्यों नहीं होते???
और जो भी नग्न हुए वो सभी जैन नहीं थे… ऐसे कई लोग हुए हैं जो परमात्मा में इतने लीन हो गए कि उनके कपड़े भी छूटते चले गए.. लेकिन चूंकि उनके अनुयायी नहीं थे तो उनके नाम से कोई नया रिलिजन नहीं बना…
महावीर की नक़ल उतारने से आप जैन नहीं हो जाओगे…
बुद्ध की नक़ल उतारने से आप बुद्ध नहीं हो जाओगे
ईसा की नक़ल उतारने से आप ईसाई नहीं हो जाओगे
पैगम्बर की नक़ल उतारने से आप मुसलमान नहीं हो जाओगे
लेकिन जब आप वास्तविक धर्म को अपनाओगे (मैं हिन्दू भी नहीं कहती उसे ) तब आप वास्तविक रूप से धार्मिक हो जाओगे… लेकिन जब आप वास्तविक रूप से धार्मिक होओगे तब आपको पता चलेगा कि इन सारे रिलिजन के पहले जो जीवन शैली थी वो हिन्दू जीवन शैली ही थी और हिन्दू जीवन शैली के पहले क्या था जिस दिन आपको पता चलेगा… उस दिन आप खुद निर्वाण को प्राप्त हो जाओगे.. आप पर ज्ञान अवतरित होगा.. और परमात्मा साक्षात आपके अन्दर होगा और बाहर भी….