नया हस्पताल बहुत आराम का है. काम कम है, जो है वह भी बहुत ही व्यवस्थित. स्टाफ ज्यादा हैं, मरीज कम. यहाँ गाँव देहात, संभ्रांत अंग्रेजों का इलाका होता है, लीचड़ अंग्रेजों का नहीं… तो मरीजों का व्यवहार भी सौम्य है…
पर एक गड़बड़ है… लंदन के लगभग सारे हस्पताल कंप्यूटराइज्ड थे… पर यहाँ अभी भी सारा काम कागज पर होता है. तो थोड़ी झुंझलाहट होती है. अगर किसी मरीज के नोट्स में कुछ नया लिखना है, कोई नई दवाई जोड़नी है, उसका ब्लड प्रेशर पल्स जानना है तो तीन तल्ले चढ़कर वार्ड तक जाना होता है.
कंप्यूटर पर काम होने से काम कितना आसान हो गया है, समझ में आता है. पुराने नोट्स देखने हों, क्या दवाइयाँ चलती हैं जानना हो… एक मिनट का काम है… क्या देहाती हस्पताल है… आज भी कागज पर काम कर रहा है…
मुझे याद है, तीन साल पहले जब मेरे पिछले हस्पताल में कंप्यूटर आया था तो क्या हाल हुआ था. पूरा हस्पताल जैसे जाम हो गया था. किसी को समझ में नहीं आता था कि दवाई कहाँ प्रिस्क्राइब करें, डोज़ कैसे बदलें, लेटर कैसे लिखें.
पहले दिन वार्ड राउंड, डिस्चार्ज लेटर, डिस्चार्ज प्रिस्क्रिप्शन करते-करते सभी पाँच की बजाए आठ बजे घर गए थे. 15 दिन लग गए थे सिस्टम को समझने में… टेस्ट कहाँ आर्डर करना है, रिज़ल्ट कैसे देखना है, सब कितना भारी लगा था… आज उसके बिना काम करना असंभव लग रहा है…
परिवर्तन कठिन होता ही है. पर बिना परिवर्तन के प्रगति नहीं है और बिना परिश्रम के परिवर्तन नहीं है. मुझे अर्थशास्त्र समझ में नहीं आता. साल में एक टैक्स रिटर्न भरना भी भारी लगता है.
पर एक बात समझता हूँ… परिवर्तन किसी को अच्छा नहीं लगता, लेकिन परिणाम अच्छा ही लगता है. कैशलेस हो या GST… आज जो भी कठिनाई हो रही हो, एक बार सिस्टम की आदत लग जाये तो सोचेंगे कि इसके बिना जिंदा कैसे थे?
जब पहली बार कंप्यूटर रिजर्वेशन आया था तो भी लोग ऐसे ही कोसते थे… स्टाफ को समझ में ही नहीं आता था, कैसे करना है. एक-एक टिकट काटने में पंद्रह-पंद्रह मिनट लगते थे. आज सात साल का बच्चा भी घर बैठे कर लेता है…
अव्यवस्थित घर अच्छा तो नहीं लगता लेकिन एक ज़रा से घर की सफाई हो जाती है तो आप अगली सुबह चिल्लाते हो… मेरी चड्ढी नहीं मिल रही… मेरा वॉलेट कहाँ है…
जिन्हें वर्तमान व्यवस्था से शिकायत है वे भी परिवर्तन का कष्ट उठाने के लिए तैयार नहीं हैं. लेकिन परिवर्तन प्रसव की तरह होता है. बिना पीड़ा के विकास नहीं पैदा होगा.