सूर्य कितने हैं, चंद्र कितने हैं, सिंह कितने होते हैं
संख्या की नहीं, आवश्यकता पुरुषार्थ की होतीं है
इसलिए मत भूलिए कि पुरुष रावण हुआ है तो राम भी,
पुरुष कंस, दुर्योधन, जरासंध हुआ तो कभी श्याम भी,
मत भूलिए कि यदि खिलजी था कभी तो गौरा और बादल भी गरजे थे,
बेहिसाब है शख्स जो स्त्रियों की रक्षार्थ दुष्टों पर काल बनकर बरसे थे,
मत भूलिए कि अकबर ने हरम सजाए थे
तो प्रताप ने बेगमों के कारवाँ माता कह के लौटाए थे,
माना कि जवाहर ने स्त्री संग बहुत गलत किया था,
लेकिन मत भूलिए विवेकानंद ने दीवानी को माता बना लिया था,
माना प्रकृति ने दुष्ट भी जने है, सज्जन आज भी शील से बने है,
आप सिक्के का एक ही पक्ष देखोगे तो आपका दोष कहलायेगा,
लोहे को लोहा और जहर को जहर ही काटता है, कौन समझायेगा.
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