स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था, “यदि पृथ्वी पर कोई ऐसी भूमि है, जिसे मंगलदायनी पुण्यभूमि कहा जा सकता है, जहाँ ईश्वर की ओर अग्रसर होने वाली प्रत्येक आत्मा को अपना अंतिम आश्रयस्थल प्राप्त करने के लिए जाना ही पड़ता है, तो वो भारत है.”
कहते हैं कि एक बार एक जर्मन इस भारत भूमि पर अपनी आध्यात्मिक पिपासाओं को शांत करने आया था. उसने इस देश के ऋषि-मुनियों के चरणों में बैठ कर लम्बे समय तक साधनाएं की पर ईश्वर का साक्षात्कार नहीं कर पाया.
उसे यही लगा कि उसका शरीर और मन जो बरसों-बरस तक पश्चिम के तमोगुणी संस्कारों में रहा और पला है इस कारण वह ईश्वर का साक्षात्कार और अपने अंतःस्थ में उसकी अनुभूति नहीं कर पा रहा है. वह हरिद्वार गया और पवित्र गंगा में जल समाधि ले ली.
अपने पीछे वो एक पत्र छोड़ कर गया, जिसमें उसने लिखा, “मैं स्वयं अपने शरीर का त्याग कर रहा हूँ. गंगा के पावन जल में अपने शरीर को अर्पित करने से उस मंगलमय की कृपा से मुझे भारत में पुनर्जन्म का सौभाग्य प्राप्त हो और उस नवीन निर्मल शरीर से मैं ईश्वर का साक्षात्कार करने योग्य हो जाऊं.”
अपनी आध्यात्मिक पिपासाओं को शांत करने के लिये भारत भूमि का रुख करने वाला वो जर्मन अकेला नहीं था. सेमेटिक लोगों के आदि पुरुष आदम, फिर नूह और ईसा ने इसी भूमि का रूख किया था, पैगंबरे-इस्लाम को इसी ज़मीन से वलियों की खुशबू आती महसूस हुई थी और हजरत हुसैन के प्यासे लबों पर इसी देश का नाम था.
सवाल है कि इस भूमि और इस भूमि के धर्म में ऐसा क्या है जो देवताओं से लेकर हर जागृत आत्मा को इसकी ओर खींच ले आता है. इसका सबसे सुंदर जवाब तलाशा है यूनिवर्सिटी ऑफ़ सैन फ्रांसिस्को में मीडिया स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर वामसी जुलुरी ने अपनी किताब “रिआर्मिंग हिन्दुइज़्म” में.
वामसी हिन्दू नहीं हैं पर इस किताब के द्वारा हमको एहसास करा रहे हैं कि आप और आपका हिन्दू धर्म कितना ऊँचा है, इतना ऊँचा जिसके पासंग न तो कोई और मज़हब है न कोई सभ्यता और न ही कोई जीवन-दर्शन.
ऊपर मैंने जो प्रश्न उठाया है उसका जवाब बड़े सहज शब्दों में देते हुए वो कहते हैं –
“मेरे लिये हिन्दू धर्म का मतलब धर्म से बढ़कर है. यहाँ तक कि वो जीवनशैली से भी बढ़कर है. मेरे लिये तो हिन्दू धर्म का मतलब आवश्यक रूप से बुद्धिमतापूर्ण जीवन को जानने का तरीका है”.
पूरी किताब का सार-संक्षेपण करेंगे तो वो कहते कि किसी भी अन्य बात से ज्यादा हिन्दू धर्म का आशय मनुष्य की उच्चतम मेधा और उसके ज्ञान से है. अब जिस धर्म का आशय ही मनुष्य की उच्चतम मेधा और उसके ज्ञान से है, वो धर्म जिस भूमि पर पुष्पित और पल्लवित हुआ है वहां आने की चाह कौन नहीं रखेगा.
इसी उच्चतम मेधा और ज्ञान से परिपूर्ण धर्म की विश्व को प्रदत्त एक धरोहर योग भी है जिसने दुनिया को सबसे अधिक प्रभावित किया है.
मोदी जी ने अपने एक भाषण में ये कहा भी था कि “मुझे विश्व के जितने लोगों से मिलना होता है, मेरा अनुभव है कि देश की बात करेंगे, विकास की बात करेंगे, Investment की चर्चा करेंगे, राजनीतिक परिदृश्य की चर्चा करेंगे, लेकिन एक बात अवश्य करते हैं, मेरे साथ योग के संबंध में तो एक-दो सवाल जरूर पूछते हैं”.
सहज भाषा में कहूं तो योग हिंदुत्व की बिना पैसे की मार्केटिंग है. 21 जून, 2015 को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का आगाज़ हुआ और पूरी दुनिया में हमारे पूर्वजों के इस ज्ञान ने भारत और हिंदुत्व का डंका बजा दिया. दुनिया के 192 देशों ने भारत और हिंदुत्व की इस विरासत को अपनाया तो स्वतः ही भारत और दुनिया भर के हिन्दुओं का सर गर्व से ऊंचा हो गया.
आलेख का शीर्षक जिस गीत से लिया गया है है उसकी एक पंक्ति है “इसी पूर्ण में पूर्ण जगत का जीवन मधु सम्पूर्ण फलेगा”. इस पूर्ण (हिन्दू धर्म) में सारे जगत को समाहित होते देखने का एक दिव्य अवसर 21 जून है.
योग रूपी धरोहर को संजोकर हमारे लिये रखने वाले तमाम ऋषि-मुनि तथा इसे वैश्विक स्वीकृति दिलवाने वाले श्री नरेंद्र मोदी जी को नमन करते हुये भारत और दुनिया भर के सारे हिन्दुओं (यहाँ हिन्दू का अर्थ है उच्चतम मेधा और ज्ञान से परिपूर्ण मस्तिष्क वाला) को ‘विश्व योग दिवस’ की शुभकामनायें.