भाजपा ने श्री राम नाथ कोविंद जी को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिये उम्मीदवार घोषित किया है… यह घोषणा स्वागत योग्य है.
इसमें कोई शक नही है कि भाजपा के पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में नरेंद्र मोदी और अमित शाह द्वारा प्रस्तावित कोविंद जी के नाम ने सभी को चौका दिया है.
इस नाम को लेकर जहां विपक्ष बुरी तरह हिल गया है वहीं खुद भाजपा के समर्थक भी बेहद आश्चर्यचकित है.
मुझे, विपक्ष को लकवा लगना, पूरी तरह से समझ में आता है क्योंकि भाजपा के इस निर्णय ने, विपक्ष को उस मुहाने पर धकेल दिया है जहाँ पीछे सिर्फ गहरी खाई है जिसमें गिरना तय है. विपक्ष वहां से सिर्फ रामनाथ कोविंद जी का हाथ पकड़ कर ही अपने को बचा सकता है.
पिछले दिन से जो विपक्ष से प्रतिक्रियाएं मिल रही है उससे साफ जाहिर है कि कांग्रेसी, वामपंथी और उनके राजनैतिक व गैर राजनैतिक सहयोगी मानसिक अवसाद में चले गये हैं. उन से बहुत अच्छी हालत उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, मायावती औए लालू यादव की भी नहीं है.
यह सब यही बताता है कि राष्ट्रपति पद के लिये जो राजनीति हो रही थी उसमें मोदी-शाह द्वय द्वारा, वर्तमान और भविष्य की मांग पर, भावनात्मकता से परहेज़ कर के अपने चयन का आधार बनाया है.
जहां तक भाजपा के समर्थकों का दर्द है वह बहुत सूक्ष्म कारणों से है. कुछ तो रामनाथ कोविंद जी को एक दलित के रूप में राष्ट्रपति पद के लिये स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और कुछ राम मंदिर आंदोलन से आगे न बढ़ पाने के कारण स्वीकार नहीं कर पा रहे है.
इसके साथ यह भी सत्य है कि यह दर्द सबसे ज्यादा, राष्ट्रवादी विचारधारा के लिबास में कट्टर पुरातनपंथी सवर्णवादी समुदाय को है, जो आडवाणी जी के नाम पर अपनी श्रेष्ठता की कुंठा को निकाल रहे है.
यह सबको समझना होगा कि राष्ट्रवादिता ब्राह्मण, ठाकुरों, बनियो या कायस्थों की धरोहर नहीं है. भाई बस करें, हिंदुत्व की परिभाषा को जाति में विभाजित करके अपने आप को आक्रांताओं से बार बार मत हरवाईये.