एक महिला चीन घूमने गयी. सुबह-सुबह उसे पार्क और गली में कई बच्चे, बूढ़े, युवा अपने शरीर को आहिस्ता-आहिस्ता लयबद्ध तरीके से मूव करते दिखे. पूछने पर पता चला कि यह ताई- ची कहलाता हैं. चीन का यह प्राचीन मार्शल आर्ट जिसकी कई मुद्राएँ इतने प्यार से धीमे नृत्य की तरह की जाने वाली हैं कि आपको शायद लगे ही ना कि इस बिना मेहनत के व्यायाम का कुछ फायदा भी हो सकता है. वह महिला इस कला को सीख कर वापस अपने देश अमेरिका ले गई और दर्जनों लोगों को इसका फायदा मिला. उसके के साठ साल के पिता का गठिया काफी हद तक इसे करने से ठीक हो गया.
हर सभ्यता और संस्कृति ने स्वास्थ के लिए ऐसे कुछ तरीके सदियों में विकसित किये. चीन और जापान जैसे देश आज भी इनकी काफी इज्जत करते हैं. हमारे देश का भी एक ऐसा ही अविष्कार है-योग. लेकिन हमें अपनी पुरानी विरासतों को भूलने की एक आदत रहीं हैं. याद तब आती है जब एक काली दाढ़ी वाला इंसान शिल्पा सेट्ठी और मल्लिका शेरावत के साथ स्टेज पर योगा करते दिख जाए. खैर याद आनी चाहिए, चाहे जैसे भी आये. योग दिवस याद दिलाने का एक बेहतरीन तरीका हैं. मेरे निजी अनुभव और मेरे कई जानने वालों को योग हुए से फायदे को देखकर मुझे योगदिवस पर तंज कसने वाले लोग महामूर्ख लगते है इस मामले में.
इनकी दलील होती हैं कि योगदिवस मनाने से बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार कुछ खत्म नहीं होगा. बात भी सही है. लेकिन योग दिवस मनाने से यह समस्याएं बढ़ेंगी नहीं और अगर लोग ढंग से करे तो दवाईयों का खर्चा जरूर कम हो जाए.
फिर ये बताएंगे की बड़ा सुपरफिसियल तरीका हैं यह लोगों तक इस गहरे ज्ञान को पहुंचाने का. तो चचा, आप शुरुवात तो करने दो, जिनको योग की गहराई में उतरना होगा वह खुद ही उतर जाएँगे बस उन्हें कुछ encouragement और कुछ motivation चाहिए होगा जिसके लिए योग दिवस बना है.
फिर आप कहेंगे बच्चों पर जबरदस्ती थोपा जा रहा हैं स्कूल में. खैर आप कहेंगे, तो हम मान लेंगे कि आप बचपनिया परफेक्ट थे और आपके माता-पिता को कोई सी भी अच्छी आदत(महज समय पर होमवर्क करना, स्कूल बंक नहीं करना, हरी सब्जियाँ खाना) शुरुआत में जबरदस्ती नहीं सिखाना पड़ा और आपके बच्चे भी सुपर किड हैं तो उन्हें भी जरूरत नहीं पड़ती होगी किसी ट्रेनिंग की लेकिन जहाँ आपके बच्चे पढ़ते हैं वहाँ असेम्बली में प्रार्थना नहीं होती क्या कभी? कितनी बार जाकर आपने विरोध किया हैं इसका??
आप यह भी कहेंगे कि एक दिन का यह आयोजन मुद्दों से भटकाने का तरीका हैं. लेकिन फिर आप देश के तमाम मुद्दों को छोड़कर अपने परिवार के साथ सप्ताह भर की छुट्टियां भी कैसे मना लेते हैं?? क्या उस बीच देश में मुद्दे खत्म हो जाते हैं??
और योग दिवस के फायदे पर बात ना भी करें तो भी आपने आज तक कोई तो दिवस अपनी मर्जी से सेलिब्रेट किया होगा? क्या फायदा हो गया अपने बच्चे के जन्मदिन पर साढ़े पांच सौ का केक मंगवा कर और हजारों रुपये की पार्टी कर के?? यह सारा पैसा उन गरीबों पर क्यों नहीं लगाया जो भूखे पेट योग नहीं कर सकते?? क्या फायदा होता है जब आप नॉन- सुपरफिसियल लोग बीच- बीच में ओल्ड मोंक की बोतल उठा लेते हैं दोस्तों के साथ?? और क्या फायदा होता है जब नास्तिक होने के बावजूद आप बड़े खुश होते हैं जब दीपावली की छुट्टी मिल जाती है?
गरीबी के मद्देनजर आपको समस्या होती है योग दिवस पर भव्य आयोजन से फिर कैसे आपने आज तक हिम्मत कर ली इस भूखे-नंगो के देश में, मुश्किल से तीस रुपये की लागत से बना ढाई सौ में बिकने वाला पिज्जा, अपने हलक से नीचे उतारने की?? क्यों आप दहेज दिए-लिए किसी शादी में गए और वहाँ से मुर्गे की टाँग चबा कर आये??
इस समय और पैसे को आप दूसरों की भलाई में भी लगा सकते थे क्योंकि देश में समस्या तो इतनी हैं कि आप रात-दिन एक कर मदर टेरेसा बन जाए तब भी काम खत्म ना हो. लेकिन नहीं. आप जहाँ तक अफोर्ड कर सकते हैं, सड़क पर पड़े किसी गरीब के बजाय अपना पैसा और समय अपनी लग्जरी पर लगाते हैं क्योंकि वह आपके हित में होता हैं. उसमें आपकी खुशियाँ होती हैं.
इसी तरह योग, करने वालों के हित में हैं वह भी बिना किसी लागत के, और यह समझने के लिए आइंस्टाइन होने की जरूरत नहीं. इसलिए जो लोग योग दिवस के बदौलत ही मोटिवेट हो पा रहें हैं उनके सामने अपने अंधे बुद्धि का प्रदर्शन कर उनके दिमाग के साथ झोल करने की जरूरत किसी को नहीं होनी चाहिए.
पर नहीं. यहाँ वो औरतों जिनकी हड्डियां तक चर्बी छोड़ रही है और वो पुरुष जिनकी कमर लगातार कुर्सी पर धँस कर काम करने से टेढ़ी हो गयी हैं, चार सौ रूपये (जिससे की एक गरीब आठ-नौ टाइम का खाना खा ले) का नेट पैक भरवायेंगे और योग दिवस का विरोध करेंगे.