आज विश्व संगीत दिवस है, 21 जून को हर साल पूरा विश्व संगीतमय हो उठता है. क्योंकि केवल एक संगीत ही है जो अस्तित्व के कण कण में बसा हुआ है, चाहे वो सुबह सुबह चिड़िया की चहचहाहट हो, चाहे मंदिर में बजती घंटियां, चाहे किचन में काम करते हुए गुनगुनाती हुई महिला हो या खाने के इंतज़ार में टेबल थपथपाता पुरुष. भजन हो या गज़ल, वेस्टर्न हो या सूफी पूरी दुनिया है संगीत की दिवानी. और संगीत की इस दुनिया को रचने में हमारे बॉलीवुड का सबसे बड़ा योगदान है.
नवरंग – संगीत पर आधारित एक कलात्मक फ़िल्म- अपनी मोहिनी की खोज में दर दर भटकता और उस पर गीत की रचना करता हुआ हीरो जब अपनी पत्नी के सामने इस बात का इज़हार करता है कि उसकी मोहिनी कोई और नहीं, वही है, तो मोहिनी की आंखों में उमड़ आए आंसू संगीत बनकर दर्शकों की ज़ुबान पर चढ़ जाता है और फिर वो भी गुनगुनाने लगता है कि तू छुपी है कहां मैं तड़पता यहां…..
और उसकी मोहिनी का जवाब आज तक हर होली पर गली मोहल्लों के लाउडस्पीकर में बजता है- अरे जा रे हट नटखट, ना खोल मेरा घूंघट, पलट के दूंगी तुझे गारी रे, मुझे समझो ना तुम भोली भाली रे.
गीत गाया पत्थरों ने- वहीं दूसरी ओर पत्थरों को तराशता एक प्रेमी अपनी ही प्रेमिका को भूलाकर एक अनजान औरत की मूर्ति को पत्थरों में उकेरता है तो वो औरत पत्थरों से निकलकर उसकी पत्नी और उसके बेटे की मां के रूप में उसके सामने आकर खड़ी हो जाती है….. सारे पत्थर उस मूर्ति के साथ जीवित हो उठते हैं और एक होकर आवाज़ गुंजती है….. गीत गाया पत्थरों ने….
एवरग्रीन गानों में एक ओर किशोर, मुकेश, मानना डे और रफी तो दूसरी ओर लता आशा, कोई अब कितना भी अच्छा संगीत क्यों न बना ले, इनके स्तर पर पहुंचना अब किसी के बस का नहीं. बीच में अल्का याग्निक, कविता कृष्णमूर्ति और श्रेया घोषाल ने भी खूब रंग जमाया तो दूसरी ओर कुणाल गांजावाला और आतिफ असलम की आवाज़ की मदहोशी ने युवाओं के दिल को धड़काया.
एक दौर सूरज बड़जात्या की फिल्मों के संगीत की दिवानगी का भी था- दिल दिवाना बिन सजना के माने ना, दीदी तेरा देवर दिवाना और फिर मैया यशोदा ये तेरा कन्हैया से लेकर मैं प्रेम की दिवानी हूं और विवाह…. शादी ब्याह और घरेलू फंक्शन का कॉपी राइट जैसे इन फिल्मों के गानों के पास ही था. सबसे खूबसूरत दौर था सूफी संगीत का जोधा अकबर के ख्वाजा मेरे ख्वाजा से लेकर दलेर महेंदी की आवाज़ में मकबूल का तू मेरे रूबरू है…. आत्मा की गहराइयों तक पहुंचाया गया….
इन सबसे हटकर कोई है तो वो है सोनू निगम मोस्ट वर्सेटाइल और अपनी तरह की एक ही आवाज़ जो बार बार कहीं खो जाती है और फिर अचानक कानों में मधुर गीत का रस घोल जाती है.
बहुत सारी फिल्मों और गायकों का ज़िक्र ज़रूर रह गया है लेकिन एक आखिरी सलाम बनता है उन संगीतकार और गीतकार को जिन्होंने इन आवाज़ों की देह में अपने गीत और संगीत की आत्मा डाली.
एक सलाम गुलज़ार, प्रसुन्न जोशी, आनंद बख्शी, निराला, योगेश, साहिर लुधियानवी, मन्ना डे, आर डी बर्मन, सचिन देव बर्मन, प्रितम, जतिन ललित, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, शंकर महादेवन, केलाश खेर, महेन्द्र कपूर, कुमार शानू, हीमेश, शेखर विशाल, नौशाद, ओ पी नैय्यर और अमिताभ को भी जिन्होंने अपनी जादुई आवाज़ में कई गानें गाए हैं.